जनप्रतिनिधियों से ज्यादा ब्यूरोक्रेसी पर भरोसा करते दिख रहे हैं योगी आदित्यनाथ

By अजय कुमार | May 12, 2020

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना महामरी से निपटने के लिए क्या सही दिशा में चल रहे हैं ? कोरोना से लड़ने के लिए सीएम ने जिस टीम-11 का गठन किया था, क्या वह टीम सही तरीके से काम कर रही है या फिर इससे भी बेहतर परिणाम निकल सकते थे ? योगी जी का जनप्रतिनिधियों से अधिक ब्यूरोक्रेसी पर भरोसा करना क्या उचित है ? यह सवाल हम नहीं बल्कि विपक्ष के साथ-साथ बुद्धिजीवी तबका भी उठा रहा है। ऐसे लोगों को लगता है कि जब कोरोना महामारी से 'लड़ाई’ बड़ी है तो फिर योगी की टीम छोटी क्यों है। यह सच है कि कोरोना महामारी से निपटने के मामले में अन्य राज्यों के मुकाबले योगी सरकार काफी आगे दिखाई दे रही है, लेकिन क्या हालात इससे भी बेहतर नहीं हो सकते थे ? यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्य राज्यों के मुकाबले प्रदेश की करीब 23 करोड़ जनता की समस्याओं को सुनने-समझने और उसके समाधान का काम इतना आसान नहीं है। जमीनी हकीकत भी इसी ओर इशारा कर रही है। तमाम मोर्चों पर वह नतीजे नहीं आ रहे हैं, जैसे नतीजे सीएम योगी देना और देखना चाहते हैं। योगी की टीम-11 मुख्यमंत्री के उन आदेशों को भी अमलीजाना नहीं पहना पाती है, जिसकी घोषणा सीएम मीडिया से रूबरू होते हुए या सोशल मीडिया के माध्यमों से करते हैं। जनता से जुड़े तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर मुख्यमंत्री की उम्मीद के अनुसार नतीजे नहीं आ रहे हैं। 


बात लॉकडाउन के दौरान पटरी से उतर गई स्वास्थ्य सेवाओं की कि जाए तो लॉकडाउन के दौरान प्रदेश की जनता की कोरोना के अलावा तमाम स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को देखते हुए योगी जी ने जब सरकारी अस्पतालों में ई-ओपीडी शुरू करने की बात कही तो इसे नौकरशाही ने शुरू तो करा दिया, लेकिन ई-ओपीडी में डॉक्टरों से सम्पर्क के लिए जो टेलीफोन या मोबाइल नंबर जारी किए गए, उनकी संख्या इतनी कम रखी गई कि मरीज का डॉक्टरों से सम्पर्क स्थापित करना लगभग असंभव हो गया। एसजीपीजीआई में 11 विभागों की ओपीडी शुरू हुई है और प्रत्येक विभाग के डॉक्टर से सम्पर्क के लिए सिर्फ एक-एक टेलीफोन नंबर दिया गया है। इस वजह से यह फोन लगातार बिजी रहते हैं। यही कारण था कि एसजीपीजीआई, लखनऊ में पहले ही दिन ई-ओपीडी व्यवस्थता बुरी तरह चरमरा गई। यही हाल कमोवेश अन्य अस्पतालों में चल रहा है, जहां-जहां ई-ओपीडी सेवाएं चालू हैं।

 

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इसी तरह से योगी सरकार ने सभी तरह की सरकारी वसूली पर रोक लगा दी है, लेकिन बिजली बिल से लेकर हाउस टैक्स तक जमा करने के लिए संबंधित विभाग उपभोक्ता को नोटिस पर नोटिस भेजता जा रहा है। यही हाल राशन वितरण व्यवस्था का है। लॉकडाउन के दौरान जिन लोगों ने नए राशन कार्ड के लिए ऑनलाइन एप्लाई किया था, वह कोटेदार से लेकर सप्लाई आफिस तक चक्कर लगाने को मजबूर हो रहे हैं। लाखों लोगों को ऑनलाइन राशन कार्ड आवेदन के बाद भी लिस्ट में नाम नहीं चढ़ पाने के कारण अनाज नहीं मिल पा रहा है। कोटेदार कहता है कि सप्लाई आफिस में पता करें और सप्लाई ऑफिस वाले यह कहकर टरका देते हैं कि जहां आवेदन किया है, वहां जाकर पता करें, वह ही बताएगा। इसको लेकर कोई स्पष्ट गाइड लाइन कहीं दिखाई नहीं देती है।


ताज्जुब तो तब होता है जब योगी सरकार द्वारा एक तरफ लोगों को मास्क पहनना अनिवार्य और कहीं थूकते हुए पकड़े जाने पर जुर्माने और सजा तक का प्रावधान कर देती है वहीं पान मसाले की बिक्री से रोक हटा देती है, जबकि पान मसाला खाने के बाद आदमी सबसे अधिक थूकता है जो संक्रमण का सबसे बड़ा कारण है। जब सरकारी स्तर पर इस तरह के फैसले लिए जाएंगे तो आम जनता में सरकार की नीयत पर सवाल तो उठेंगे ही। आखिर जनता की जान की कीमत पर तो किसी सरकार को राजस्व वसूली बढ़ाने की छूट नहीं दी जा सकती है। पान मसाला चालू करने से बेहतर होता योगी सरकार शराब पर ही कुछ और ज्यादा टैक्स लगा देती, जैसा दिल्ली सरकार ने किया था, लेकिन न जाने क्यों इस मामले में योगी सरकार ने कदम पीछे खींच लिए। शराब की कीमत में मात्र पांच से तीस रूपए तक की मामूली बढ़त यह बताती है कि योगी सरकार शराब की कीमत बढ़ाने के मामले में कहीं न कहीं दबाव में थी। अगर नहीं तो फिर इसे योगी की टीम-11 की बड़ी चूक माना जाना चाहिए।


यह वह समय है जब योगी को टीम-11 की बजाए पूरी की पूरी ब्यूरोक्रेसी और अधिकारियों/कर्मचारियों का विश्वास जीत कर आगे बढ़ना चाहिए था। यहां सपा सपा प्रमुख और पूर्व सीएम अखिलेश यादव का जिक्र जरूरी है, जिन्होंने भी योगी की टीम-11 को लेकर सवाल खड़े किए हैं। अखिलेश यादव, कोरोना वायरस से निपटने के लिए मुख्यमंत्री योगी द्वारा गठित टीम-11 की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि अगर टीम-11 इतनी सशक्त है तो यूपी में लगातार अपराधों में वृद्धि कैसे हो रही है। सपा अध्यक्ष पूछते हैं कि कैसे लॉकडाउन के दौरान यूपी में अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। बलात्कारों के बारे में टीम इलेवन बताये कि बच्चियों का जीवन और सम्मान सुरक्षित क्यों नहीं है ? प्रतापगढ़ में 16 वर्षीय युवती नाबालिग की हत्या। अलीगढ़ में किशोरी ने की आत्महत्या सहित अन्य जनपदों में एक माह में ही दर्जनों बलात्कार की घटनायें हो चुकी हैं। टीम-11 क्या कर रही है?


सपा प्रमुख अखिलेश इस बात से भी नाराज हैं कि योगी सरकार ने प्रदेश के राज्य कर्मचारियों के डीए वृद्धि और छह भत्तों पर बिना सोचे-समझे रोक लगा दी हैं। इससे कर्मचारियों की आर्थिक हालत बिगड़ेगी। अखिलेश कहते हैं कि कोरोना संक्रमण से मुकाबले के लिए हर नागरिक लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहा है और यथासामर्थ्य गरीबों, मजबूर लोगों की मदद भी कर रहा है। राज्य कर्मचारियों ने भी संकट की इस घड़ी में सरकार का पूरा साथ दिया है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के सहायता कोष में स्वेच्छा दान के साथ अपने वेतन से की गई कटौती भी उन्होंने स्वीकार कर ली है। इसके बावजूद प्रदेश में जून 2021 तक डीए बढ़ोत्तरी और छह भत्तों पर भी रोक लगा दी है। अखिलेश ने कहा कि बेहतर होता कि सरकार अपनी फिजूलखर्ची तथा नेकनामी दिखाने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापनों पर रोक लगाती। उन्होंने सवाल किया कि विज्ञापनों पर रोक लगाने में भाजपा नेतृत्व हिचक क्यों रहा है?


सपा मुखिया ने कहा कि दूसरे राज्यों में उत्तर प्रदेश के लाखों श्रमिक रोजगार की तलाश में गये थे। अब उनमें से ज्यादातर अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए हैं। ऐसी स्थिति में जब सब तरफ से आवाज उठने लगी और सपा ने यह मांग बार-बार उठायी है तो भाजपा सरकार उन्हें अपने राज्य में वापस लाने के लिए तैयार तो हो गई लेकिन अब उनके खान-पान, आवास और इलाज की व्यवस्था प्राथमिकता के आधार पर करनी होगी।

 

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पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि कोरोना महामारी के समय देश का सबसे बड़ा आबादी वाला प्रदेश उत्तर प्रदेश राम भरोसे चल रहा है, कोरोना की जंग कैसे लड़ी जाये, इसके लिये क्या रणनीति हो, यह जिम्मेदारी प्रदेश के मुट्ठी भर आईएएस अधिकारीयों को सौंप कर सत्तारूढ़ दल के जन प्रतिनिधि और सूबे के मंत्री पूरी तरह गायब हैं, ले दे कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चेहरा नजर आ जाता है लेकिन सूत्रों का दावा था कि मुख्यमंत्री जो भाषा बोलते हैं उसकी स्क्रिप्ट भी नौकरशाहों द्वारा तैयार की गयी होती है, जबकि नौकरशाही कुछ कर ही नहीं रही है, वह तो सिर्फ टाइम पास में लगी है।


खैर, बात अखिलेश-मायावती के आरोपों से इतर की जाए तो यह सच है कि फैसले सड़क पर जनता की समस्याओं को देखकर नहीं, ड्राइंग रूम में हो रहे हैं। कोरोना महामारी के इस माहौल में नीचे के सरकारी कर्मचारी किसी काम को हाथ लगाने से कतरा रहे हैं। ऐसे ही भुक्तभोगी एक कर्मचारी ने बताया कि प्रदेश के तमाम नौकरशाह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से आदेश तो लिखा कर जारी करा देते हैं, लेकिन उनके आदेशों का कैसे पालन हो रहा है, इसको स्वयं जांचने की बजाए नीचे के कर्मचारियों को जमीन पर काम करने को छोड़ देते हैं। यह सब कोरोना के डर के चलते होता है। जब नौकरशाह और अन्य बड़े अधिकारी अपना काम ईमानदारी से नहीं करते हैं तो छोटे कर्मचारी भी लकीर पीट कर निकल जाते हैं।


यह तो उत्तर प्रदेश की बानगी है, गौरतलब हो कि पिछले ही दिनों मुख्यमंत्री ने इन्हीं हालातों के कारण नोएडा के कलैक्टर को हटा कर एक युवा डीएम को कार्य भार सौंपा था। नोएडा की बात करें तो कुछ चुनिंदा इलाकों को कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलने पर कन्टेनमेंट जोन घोषित किया गया परन्तु अपनी मशक्कत बचाने के लिये पूरे नोएडा को बंद कर दिया गया। गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार उन्हीं इलाकों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए जहाँ कोरोना के मरीज हैं लेकिन सेक्टरों में बंटे पूरे नोएडा का हाल बेहाल है। पॉवर सप्लाई जो आवश्यक सेवा में आता है, के अधिकारी भी कोरोना संक्रमण से घबराये हुये हैं, आपात स्थिति में उनके फोन या बंद होते हैं अथवा घंटी बजती रहती है। इस विभाग की जिम्मेदारी भी लाईन मैन जैसे छोटे कर्मचारी जोखिम उठा कर निभा रहे हैं।


सबसे हैरानी की बात तो यह है कि नौकरशाह एवं अन्य बड़े सरकारी अधिकारी तो लापता हैं ही, सांसद, विधायक और पार्षद भी जनता से कन्नी काट कर घरों में ‘कैद’ हो गए हैं। जनता की सुध लेने वाला कोई नहीं है। जनता अपनी समस्याएं लेकर कहां जाए उसे पता ही नहीं है। क्योंकि जनप्रतिनिधियों ने तो मोदी के ‘जान है तो जहान है’ के फार्मूले को ही अंगीकार कर लिया है। उन्हें न तो इस बात से मतलब है कि उसका मतदाता बेहाल है, न इस बात की चिंता कि उसके क्षेत्र की क्या दुर्दशा हो रही है। कुछ तो यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि वह 60 वर्ष से ऊपर के हैं, इसलिए डॉक्टर की सलाह पर घर में रहने को मजबूर हैं। कुल मिलाकर ऐसा लगा रहा है कोरोना महामारी के दौर में जनप्रतिनिधियों की कोई भूमिका ही नहीं है। हाँ, इससे इत्तर कुछ जनप्रतिनिधि पूरी तत्परता से जुटे हुए हैं, लेकिन ऐसे जनप्रतिनिधियों की संख्या उंगली पर गिने जाने लायक है। उम्मीद है कि अगले लोकसभा या फिर 2022 में जब उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव होंगे तो ऐसे नाकारा जनप्रतिनिधियों को पार्टी दोबारा चुनाव मैदान में नहीं उतारेगी। वैसे, कुछ जनप्रतिनिधि ऐसे भी हैं जो नाम गुप्त रखने की शर्त पर उलटे सवाल दागते हुए कहते हैं कि जब योगी जी को हमसे अधिक भरोसा नौकरशाही पर है, उन्हें हमारी जरूरत ही नहीं है तो हम घर पर बैठने के अलावा क्या कर सकते हैं। हम अपने क्षेत्र में जाएंगे तो जनता समस्याएं बताएगी, वह समस्याएं इसलिए हल नहीं हो पाएंगी क्योंकि ब्यूरोक्रेसी बीच में आड़े आ जाएगी।


-अजय कुमार

 

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