By डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Aug 11, 2020
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अयोध्या के पास बनने वाली मस्जिद के शिलान्यास में मैं नहीं जाऊंगा, क्योंकि मैं योगी हूं और हिंदू हूं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उन्हें निमंत्रित भी नहीं किया जाएगा। ताजा खबर यह है कि मस्जिद बनाने वाले सुन्नी वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी ने दावा किया है कि उन्हें निमंत्रण भेजा जा रहा है और उन्हें उसे स्वीकार करना चाहिए। इसके लिए उसने तर्क दिया है। तर्क यह है कि मस्जिदों के शिलान्यास की इस्लाम में कोई परंपरा नहीं है। इस्लाम के चारों प्रमुख संप्रदायों की यही मान्यता है। जो शिलान्यास अयोध्या के धन्नीपुर गांव में होगा, वह होगा मस्जिद के साथ बनने वाले अस्पताल, लायब्रेरी, सामूहिक रसोईघर, संग्रहालय और शोध केंद्र का ! मैं खुद मानता हूं कि मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें मुसलमानों के इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।
हालांकि मैं यह भी सोचता हूं किसी मस्जिद या मंदिर से किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का क्या लेना-देना ? उनके उद्घाटन या शिलान्यास के लिए इन कुर्सीधारियों को बुलाने की तुक क्या है ? राजनीति के दलदल में फंसे हुए इन लोगों का आचरण क्या अनुकरण के योग्य होता है ? अयोध्या में जो मंदिर और मस्जिद बनेंगे, वे क्या इन नेताओं की मेहरबानी से बन रहे हैं ? वे तो अदालत के फैसले की वजह से बन रहे हैं। ऐसे अवसर पर कुर्सीधारियों को बुलाना क्या सिद्ध करता है ? क्या यह नहीं कि आप धर्म को राजनीति के चरणों में लिटा रहे हैं ?
योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि वे योगी और हिंदू हैं, इसलिए मस्जिद के शिलान्यास में नहीं जाएंगे, यह भी तर्कसंगत नहीं है। ‘योग दर्शन’ या ‘योग वाशिष्ठ’ या किसी अन्य योग-ग्रंथ में क्या यह लिखा है कि योगी किसी मंदिर या मस्जिद में जाए या न जाए ? जब योग-दर्शन की रचना हुई, तब भारत में हिंदू नाम का कोई प्राणी ही नहीं था और मूर्ति-पूजा नाम की कोई चीज नहीं थी। कोई मंदिर भी नहीं था। ‘हिंदू’ नाम तो आपको हजार-डेढ़ हजार साल पहले विदेशी मुसलमानों ने ही दिया है। आप अपने नामदाता का तिरस्कार क्यों कर रहे हैं ? आप मुख्यमंत्री हैं। आप सबके हैं। आपका प्रेम और सम्मान सबको समान रूप से क्यों नहीं मिलना चाहिए ? मैं न तो मूर्ति-पूजा करता हूं, न ‘नमाज’ पढ़ता हूं और न ही ‘प्रेयर’ करता हूं लेकिन मैं मंदिर में भी जाता हूं, मस्जिद में भी, गिरजे में भी, गुरुद्वारे में भी और साइनेगॉग में भी ! इसीलिए कि इनमें जाने वाले हर व्यक्ति के प्रति मेरा प्रेम है।
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक