दूसरी पारी में काफी बदले-बदले हुए नजर आ रहे हैं योगी आदित्यनाथ

By अजय कुमार | Apr 30, 2022

उत्तर प्रदेश जिसकी कभी देश के पिछड़े राज्यों में गिनती हुआ करती थी। जातिवाद दंगा फसाद, मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत चरम पर रहती थी। वह राज्य पूरे देश को आइना दिखा रहा है। जातिवाद यहां कम हो गया है और धार्मिक उन्माद पर भी योगी सरकार ने लगाम लगा दी है। आज स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश में सभी को अपने धर्म का पालन करने की तो खुली छूट मिली हुई है, लेकिन उसके ऐसा करते समय किसी दूसरे को परेशानी ना हो इसका भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है। इसीलिए प्रदेश में शांति पूर्ण ढंग से मंदिर मस्जिद से लाउडस्पीकर उतारे जा रहे हैं। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने अब नई पहल करते हुए नमाजियों से ईद की नमाज ईदगाह और मस्जिद के अंदर ही पढ़ने की अपील की है। कई प्रमुख धर्म गुरुओं ने सड़क पर नमाज नहीं अदा करने का आह्वान करते हुए कहा कि इससे और लोगों को परेशानी होती है। सबसे बड़ी बात है कि यह सब बहुत शांतिपूर्वक तरीके से हो रहा है, जिस कारण विपक्ष इसे मुद्दा भी नहीं बना पाया है। प्रदेश में शांति का माहौल है। सभी धार्मिक आयोजन हर्षोल्लास के साथ मनाया मनाए जा रहे हैं, वहीं राजस्थान, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में कहीं लाउडस्पीकर पर विवाद हो रहा है, तो कहीं रामनवमी की शोभा यात्रा पर हमला।

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बहरहाल, जब देश के कुछ हिस्सों में धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकर को लेकर विवाद जारी है, तब उत्तर प्रदेश में उन्हें हटाने और उनकी आवाज नियंत्रित करने का काम काफी शांतिपूर्ण माहौल में हो रहा है। यह काम वह मुख्यमंत्री कर रहा है जिसके ऊपर हमेशा हिंदूवादी होने का आरोप लगता रहा है, लेकिन लाउडस्पीकर के मामले पर क्या हिंदू, क्या मुसलमान सभी योगी की वाहवाही कर रहे हैं। कहीं कोई टकराव नहीं है, कहीं कोई विरोध देखने को मिल रहा है।


उल्लेखनीय है कि इस अभियान को सभी समुदायों और उनके धर्मगुरुओं का सहयोग और समर्थन मिल रहा है। यह सच है कि योगी सरकार का लाउडस्पीकर विरोधी अभियान अदालती आदेशों के अनुपालन के क्रम में बिना किसी भेदभाव के चलाया जा रहा है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि अन्य राज्यों की सरकारें यही काम सियासी गुणा भाग के चलते नहीं कर पा रहीं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर जो काम सहज-सरल तरीके से उत्तर प्रदेश में हो सकता है, वही काम अन्य राज्यों में क्यों नहीं हो सकता और वह भी तब, जब उच्चतम न्यायालय समेत विभिन्न उच्च न्यायालय लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को नियंत्रित करने के आदेश पारित कर चुके हैं। जब ध्वनि प्रदूषण का जरिया बने लाउडस्पीकर आम लोगों की परेशानी बढ़ा रहे हैं, तब इसका कोई औचित्य नहीं कि उन्हें लेकर जो नियम-कानून और न्यायिक आदेश हैं, उनकी अनदेखी हो।

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लाउडस्पीकर हटाए जाने के मामले में कई राज्य सरकारें अदालत के आदेश को लागू करने में आनाकानी कर रही हैं, उसे देखते हुए उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट सभी राज्यों को अपने 2005 के अपने आदेश का पालन करने का निर्देश दे। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्य यह कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं कि इस मामले में केंद्र सरकार को कानून बनाना चाहिए। यह बहानेबाजी और वोट बैंक की सियासत के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि इस संदर्भ में एक कानून बना हुआ है और उसकी संवैधानिकता भी परखी जा चुकी है। इसी बहानेबाजी के कारण कुछ लोगों को राजनीति करने का मौका मिल रहा है। महाराष्ट्र और राजस्थान इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं।


लब्बोलुआब यह है कि राज्य सरकारों को यह समझना होगा कि लाउडस्पीकर कोई धार्मिक इंस्ट्रूमेंट नहीं, बल्कि लाउडस्पीकर है। किसी धर्म में लाउडस्पीकर को मानता नहीं दी गई है। बल्कि साफ कहा गया है ऐसी इबादत से कोई फायदा नहीं जिससे दूसरा परेशान हो। अच्छा हुआ कि योगी सरकार ने यह फरमान भी जारी कर दिया है कि आगे से लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। लाउडस्पीकर को लेकर विवाद के बीच कुछ लोग यह कह सकते हैं कि विशेष अवसरों को छोड़कर धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने की छूट मिलना चाहिए, तो इस पर ऐसे लोगों को सरकार के सामने अपना पक्ष रखना चाहिए। इसके बाद हो सकता है कि सरकार इसमें कुछ गुंजाइश तलाशे। फिर भी यह नहीं भूलना चाहिए कि एक तो किसी भी मत-मजहब में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल आवश्यक नहीं और दूसरे, आज के इस संचार युग में लाउडस्पीकर के बगैर कहीं आसानी से बिना शोरगुल के अपनी आवाज आप अपने अनुयायियों तक पहुंचा सकते हैं। वास्तव में यह मानने में हर्ज नहीं कि जैसे कई धार्मिक गतिविधियां शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन गई हैं, वैसे ही लाउडस्पीकार का बेजा इस्तेमाल भी अपनी 'ताकत' का इजहार करने का बहाना बन गया है।


कहीं पर भी लाउडस्पीकर का इस्तेमाल प्रशासन की अनुमति से होना चाहिए और उसकी आवाज नियंत्रित होनी चाहिए। किसी को भी इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती कि वह लाउडस्पीकर के जरिये पूरे मोहल्ले को अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधि गाने बजाने से जबरन अवगत कराए। यह सभ्य समाज की निशानी नहीं है। अभी भी यदि कुछ लोग लाउडस्पीकर को अपनी धार्मिक आस्था से जोड़कर देख रहे हैं तो उन्हें समझना होगा कि उनके लिए धर्म से ऊपर उठकर सोचने का समय आ गया है। 21वीं सदी में ऐसी किसी गतिविधि की छूट नहीं दी जा सकती है, जो किसी व्यक्ति या समाज के लिए परेशानी का सबब बने।


-अजय कुमार

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