Yes, Milord! इतिहास में तीसरी बार महिला जजों की बेंच करेगी सुनवाई, समान स्वास्थ्य सेवा पर मांगा रिप्लाई, इस हफ्ते के कुछ खास जजमेंट/ऑर्डर

By अभिनय आकाश | Dec 02, 2022

सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक इस सप्ताह यानी 28 नवंबर से 02 दिसंबर 2022 तक क्या कुछ हुआ। कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।

महिला जजों की बेंच शादी से जुड़े विवाद की करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शादी से जुड़े विवाद और जमानत के मामलों से जुड़े ट्रांसफर वाली याचिकाओं की सुनवाई के लिए महिला जजों की एक बेंच बनाई। इसमें शिकार जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह तीसरा मौका है, जब पूरी तरह महिला जजों की बेंच बनाई गई है। दो जजों वाली बेंच सुप्रीम कोर्ट की अदालत संख्या-11 में बैठ रही है। बेंच के सामने आए 32 मामलों में से शादी से जुड़े विवाद और जमानत वाली 10-10 ट्रांसफर वाली याचिकाएं हैं। ट्रांसफर याचिका ऐसी याचिका होती है, जिनमें किसी मामले को राज्य एजेंसियों से केंद्रीय एजेंसी या किसी हाई कोर्ट ने दूसरे हाई कोर्ट या हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किये जाने का अनुरोध किया है।

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कानून मंत्री के बयान पर सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के लिए दोवारा सिफारिश भेजे जाने के बाद केंद्र सरकार की ओर से की गई देरी पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि यह नियुक्ति के तरीके को ही विफल कर देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून मंत्री किरण रिजिजू के पिछले दिनों दिए बयान पर भी निराशा जताई और कहा कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। कानून मंत्री ने हाल में कलीजियम सिस्टम की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसा मत कहिए कि सरकार फाइलों पर बैठ जाती है। ऐसा है तो सरकार को फाइल ही मत भेजिए। कलीजियम सरकार को यह नहीं कह सकता है कि उसके भेजे भेजे गए नामों को तुरंत मजूरी दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है, सरकार जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए एनजेएसी को मंजूरी न मिलने से नाराज है। लेकिन ये जजों की नियुक्ति के मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम को न मानने का कारण नहीं हो सकता। 

समान स्वास्थ्य सेवा

देश में एक समान स्वास्थ्य सेवा मानदंड लागू करने की मांग उठी है। इसके लिए दिशा निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र-राज्यों से जवाब मांगा। याचिका में शीर्ष कोर्ट से कहा गया है कि वह संविधान व क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010  (CEA) के अनुसार देश के नागरिकों को एक समान स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के दिशा निर्देश जारी करे। जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को चार सप्ताह का वक्त दिया है।

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जबरन धर्मांतरण

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि जवरन धर्म परिवर्तन गंभीर विषय है। धर्म की स्वतंत्रता के को किसी खास धर्म में परिवर्तन करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है। मध्यप्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड और हरियाणा ने पहले ही जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बना रखे हैं। केंद्र ने कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।

जज के अश्लील वीडियो के प्रसार पर रोक

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और मीडिया प्लेटफॉर्म को निचली अदालत के एक जज से जुड़े कामुक वीडियो के सर्कुलेशन पर रोक लगाने का आदेश दिया है। LiveLaw की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने "अपमानजनक वीडियो को साझा करने, वितरण करने, फॉरवर्ड करने या पोस्ट करने पर रोक लगा दी है। तत्काल उल्लेख किए जाने के बाद मामले की सुनवाई की गई। तब तक सोशल मीडिया पर एक वीडियो कई बार शेयर किया जा चुका था, जिसमें एक जज को एक महिला के साथ दिखाया गया था, जिसे उसकी सहयोगी के रूप में पहचाना गया था।  यशवंत शर्मा की बेंच ने आदेश में कहा कि वादी को इससे भारी नुकसान की आशंका को देखते हुए मामले में तत्काल सुनवाई की गई। 

ज्ञानवापी सर्वे केस में बहस पूरी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) से सर्वे कराने के वाराणसी की अदालत के आदेश और सिविल वाद की वैधता को लेकर दाखिल याचिकाओं पर दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया है। हाईकोर्ट ने फैसला आने तक सर्वे कराने के वाराणसी की अदालत के आदेश पर लगी रोक बढ़ा दी है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमिटी की याचिकाओं की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया कर रहे हैं। याची अधिवक्ता पुनीत कुमार गुप्ता का कहना था कि प्लेसेज ऑफ वरशिप ऐक्ट 1991 की धारा 4 के तहत सिविल वाद पोषणीय नहीं है।  स्थापित कानून है कि कोई आदेश पारित हुआ है और अन्य विधिक उपचार उपलब्ध नहीं है तो अनुच्छेद 227 के अंतर्गत याचिका में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि दोनों अधिवक्ता 227 में याचिका दाखिल करने के पक्ष में कोई कानून नहीं दिखा सके।

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