By अंकित सिंह | Jun 27, 2020
बिहार में चुनावी बिसात बिछने लगा है। सभी पार्टियां अपने-अपने किले को मजबूत करने में जुटी हुई हैं। मुख्य मुकाबला महागठबंधन और एनडीए के बीच माना जा रहा है। महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, हम, आरएलएसपी और वीआईपी जैसी पार्टियां शामिल है तो वहीं सत्ताधारी एनडीए में भाजपा, जदयू और लोजपा है। इन सबके बीच भाजपा के पूर्व नेता और केंद्रीय मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने भी बिहार में अपने राजनीतिक दांवपेच की शुरुआत कर दी है। आज बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तीसरे मोर्चे के गठन की घोषणा कर दी। अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बताया कि प्रदेश की बदहाल स्थिति को देखते हुए उन्हें तीसरे मोर्चे के गठन के लिए विवश होना पड़ा। उन्होंने ताल ठोकते हुए कहा कि यह मोर्चा प्रदेश में एनडीए और महागठबंधन का विकल्प बनेगा। आखरी तक यशवंत सिन्हा इस बात से कतराते रहे कि आखिर इस मोर्चे में कौन कौन शामिल हो रहा है।
यशवंत सिन्हा ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तीसरे मोर्चे को लेकर पहले ही से ही ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया था। इसका खुलासा उन्होंने आज के संवाददाता सम्मेलन में किया। यशवंत सिन्हा ने इस मोर्चे का ऐलान एक नए नारे से किया। यह नारा था- इस बार बदले बिहार। यशवंत सिन्हा ने हुंकार भरते हुए कहा कि हम बिहार का गौरव फिर से स्थापित करने के लिए आ रहे है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह मोर्चा अगले बिहार विधानसभा चुनाव में भाग लेगा। वो इस बात से कतराते रहे कि वे खुद चुनाव में उतरेंगे या नहीं। उन्होंने यह जरूर कहा कि यह भविष्य तय करेगा अभी इस पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है जैसी परिस्थितियां होगी उसी हिसाब से इस पर विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वे कुछ दिनों से अपने साथी नेताओं और बुद्धिजीवियों के साथ मिलकर बिहार के उत्थान के लिए नई योजनाएं बना रहे थे। अब वक्त आ गया है कि हम बिहार के गौरव को वापस लौटाने के लिए लड़ाई लड़ेंगे।
यशवंत सिन्हा ने यह भी कहा कि वह बिहार में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, भ्रष्टाचार इत्यादि जैसे मुद्दों को उठाएंगे। हालांकि उन्होंने थर्ड फ्रंट की बात पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह भविष्य तय करेगा कि हम पहले हैं या दूसरे हैं या फिर तीसरे। उन्होंने कहा कि बेहतर बिहार-बदलो बिहार के लिए चुनाव लड़ेंगे। लेकिन इस मोर्चे में कौन शामिल होगा, किन-किन नेताओं से इसको लेकर बात हुई है इसको लेकर यशवंत सिन्हा ने चुप्पी साध ली। उन्होंने कहा कि आज सिर्फ चुनाव लड़ने की बात करूंगा। आगे आपके सभी सवालों का जवाब दिया जाएगा। उन्होंने वर्चुअल कैंपेनिंग का विरोध करते हुए कहा कि यह एक खर्चीला व्यवस्था है। चुनाव आयोग को परंपरागत प्रचार को बढ़ावा देना चाहिए। अगर वह इस व्यवस्था को लागू करते है तो यह गलत होगा। इससे धनवान दलों और नेताओं को मदद मिलेगा और गरीब उम्मीदवारों के लिए गलत साबित होगा।
आपको बता दें कि यशवंत सिन्हा भाजपा के कद्दावर नेता रहे हैं। वे 2014 तक पार्टी में सक्रिय रहे। प्रशासनिक अधिकारी से राजनेता बने जसवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पहले वित्त मंत्री रहे और फिर विदेश मंत्री बनें। वे हजारीबाग से सांसद भी रहे हैं। भाजपा के प्रखर नेताओं में से एक माना जाता था। 2014 के चुनाव में खुद ना लड़ने का फैसला लेकर उन्होंने अपने बेटे जयंत सिन्हा को हजारीबाग से चुनावी मैदान में उतारा। इस चुनाव में जयंत सिन्हा ने जीत हासिल की। 2019 के चुनाव में भी हजारीबाग से जयंत सिन्हा भाजपा के उम्मीदवार बने और चुनाव जीता। 2014 से लेकर 2019 तक यशवंत सिन्हा के लिए स्थितियां बदल चुकी थी। यशवंत सिन्हा भाजपा से और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से बगावत कर चुके थे। उन्होंने खुलकर पार्टी की व्यवस्था और सरकार की नीतियों की आलोचना की।