राधिका और प्रणव रॉय पर लगे आरोप गलत, उन्होंने अपने दम पर तरक्की की है

By कुलदीप नैय्यर | Jun 14, 2017

सेबी से छिपा कर शेयरों के लेन−देन और आईसीआईसीआई बैंक को 48 करोड़ रूपए का घाटा लगाने के कथित आरोप में जो छापे केद्रींय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने एनडीटीवी के मालिकों के यहां डाले हैं उसे टीवी चैनल ने ''वही पुराने'' झूठे आरोप पर आधारित विरोधी को परेशान करने वाली कार्रवाई बताया है। मैं चैनल की राय से सहमत हूं। राधिका राय, चैनल की सह−मालकिन और मैंने 'इंडियन एक्सप्रसे' में साथ काम किया है और मैं सोच नहीं सकता कि वह ऐसे काम में शामिल हो सकती है जिसका आरोप उस पर लगाया गया है। 

मुझे लगता है कि यह मनगढंत आरोप है। राधिका और प्रणय राय उस तरह के लोगों में नहीं हैं क्योंकि वे अपने दम पर तरक्की करने वाले लोग हैं। शायद उन्होंने कोर्इ तकनीकी गलती की होगी। लेकिन सीबीआई ने राधिका राय प्रणय राय होल्डिंग्स प्राईवेट लिमिटेड, प्रणय राय, उनकी पत्नी राधिका राय और आईसीआईसीआई बैंक के अनजान अधिकारी के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाघड़ी और भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। आरोप के मुताबिक, आरआरपीआर होल्डिंग्स ने जनता से एनडीटीवी के 20 प्रतिशत शेयर खरीदने के लिए इंडिया बुल्स प्राइवेट लिमिटेड से कथित तौर पर 500 करोड़ रूपए का कर्ज लिया। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि आरआरपीआर होल्डिंग्स ने इंडिया बुल्स का कर्ज चुकाने के लिए 19 फीसद सालाना ब्याज पर आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रूपए का कर्ज लिया था। सीबीआई का आरोप है कि एनडीटीवी के प्रमोटरों ने अपने कंपनी के सभी शेयरों की जमानत पर यह कर्ज लिया था। जांच एजेंसी के मुताबिक शेयरों के गिरवी रखने की जानकारी सेबी, स्टाक एक्सचेंज और सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय को नहीं दी गई। सीबीआई के मुताबिक कंपनी में 61 प्रतिशत मताधिकार पूंजी तैयार करने के लिए किया गया यह कार्य बैंकिग रेगलेुशन एक्ट की धारा 19 (2) का उल्लंघन है क्योंकि इस धारा के मुताबिक ऐसे शेयर 30 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए। आईसीआईसीआई बैंक ने दस प्रतिशत ब्याज की माफी भी दी।

 

चैनल ने कहा कि कर्ज चकुा दिए गए हैं और उसने एक दस्तावेज भी प्रस्तुत किया है जो उसके दावे की पुष्टि करता दिखाई देता है। ''एनडीटीवी और इसके प्रमोटरों ने आईसीआईसीआई बैंक या किसी अन्य बैंक का कर्ज चुकाने में कोर्इ चूक नहीं की है, ''एनडीटीवी की वेबसाइट पर जारी बयान में कहा गया है। ''हम ईमानदारी और आजादी के उच्चतम मानदंडों का पालन करते हैं। स्पष्ट तौर पर, एनडीटीवी की टीम की आजादी और निडरता सत्तारूट पार्टी के नेता पचा नहीं पाए और सीबीआई का छापा मीडिया की आवाज बंद करने का एक और प्रयास है'', चैनल ने कहा।  

 

नरेंद्र मोदी की सरकार कुछ समय से एनडीटीवी के पीछे पडी़ है क्योंकि यह उन कुछ थोड़े से चैनलों में से है जिसने सरकार की मर्जी के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया है और यह पहली दफा नहीं है जब उसे निशाना बनाया गया है। पिछले साल, सरकार की ओर से इसके हिंदी चैनल पर लगाई गई एक दिन की पाबंदी को चुनौती देने के लिए एनडीटीवी को सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पडी़ थी। सरकार ने चैनल को एक दिन प्रसारण बंद रखने का आदेश जनवरी 2016 के पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए आतंकी हमले से संबंधित संवेदशील विवरण दिखाने के लिए दिया था। 

 

नवंबर 2016 में सूचना−प्रसारण मंत्रालय ने चौबीस घंटे तक चैनल को ब्लैक आउट (पर्दें से गायब रहने) का अभूतपूर्व आदेश यह कह कर दिया था कि पठानकोट के आंतकी हमले के कवरेज में चैनल ने ''सामरिक रूप से संवेदनशील जानकारी'' बता दी थी। एनडीटीवी की दलील थी कि चैनल का कवरेज सरकार की ओर से दी गई आधिकारिक जानकारी पर आधारित था और ऐसी ही जानकारी दिखाने वाले दूसरे चैनलों को दंडित नहीं किया गया।

 

बाद में, एनडीटीवी का प्रतिनिधि सूचना तथा प्रसारण मंत्री से मिला और यह दलील दी कि चैनल को यह सबूत पेश करने का उचित मौका नहीं दिया गया कि इसने कोर्इ भी ऐसी जानकारी दर्शकों के सामने नहीं लाई जो बाकी चैनलों और अखबारों की ओर से उस समय दी गई जानकारी से अलग था। जाहिर है, पत्रकारों, संपादकों और प्रेस कौंसिल ने पाबंदी की आलोचना की और इसकी तुलना सत्तर के दशक में लगाए गए आपातकाल के दौरान प्रसे की आजादी समेत अन्य मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से की। सरकार ने चैनल पर लगी एक दिन की पाबंदी अंतिम क्षण में हटा ली।

 

एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने उस समय कहा था कि एक दिन की पाबंदी पहले कभी नहीं लगाई गई थी और लगता है कि केद्रींय सरकार ने मीडिया के कामकाज में दखलंदाजी और कवरेज से सहमत नहीं होने पर मनमाना दंड का अधिकार खुद को दे दिया है। पाबंदी को सही ठहराते हुए सूचना प्रसारण मंत्री वेकैया नायडू ने दलील दी, ''यह देश की सरुक्षा के हित'' में था और सरकार के खिलाफ आलोचना की जो झड़ी लगाई गई है, वह ''राजनीति प्रेरित'' है।

 

हाल के छापे को लेकर भी नायडू का बयान कमोबेश यही था। किसी भी तरह के राजनीतिक हसतक्षेप से इंकार करते हएु उन्होनें कहा कि, अगर कोर्इ गलती करता है तो आप इसलिए सरकार से चुप बैठने की उम्मीद नहीं कर सकते कि गलती करने वाला मीडिया से है।'' उन्होनें कहा कि कानून अपना काम कर रहा है।

 

मैं कानून के अपना काम करने के खिलाफ नहीं हूं। लेकिन मैं, बाकी पत्रकारों की तरह, यह जानना चाहूंगा कि चैनल ने ऐसा क्या किया जिसके कारण सरकार या प्रधानमंत्री ने अपना गुस्सा दिखाया। यह साफ है कि  सबसे ऊपर बैठे व्यक्ति की सहमति के बगैर ऐसा नहीं हुआ होगा। सूचना प्रसारण मंत्री तो अपने नेता के लिए अनुचित काम करने वाले व्यक्ति हैं। आखिरकार, ऊपर से आ रहे आदेशों को उन्हें लागू करना ही होगा।

 

विरोध की आवाज दबाने के लिए सरकार राजद्रोह के कानूनों का उपयोग करती रही है। 2005 में कानून बनने के बाद से अब तक देश भर में सूचना की आजादी के लिए सकिय्र 51 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। एनडीटीवी के कवरेज ने मोदी के हिंदु राष्ट्रवादी भाजपा के सदस्यों को नाराज किया है, जिनमें से कई चैनल पर भाजपा विरोधी होने का आरोप लगाते हैं। छापे के कुछ दिन पहले ही एनडीटीवी के न्यूज एंकर की भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के साथ  प्रसारण के दौरान ही झड़प हो गई और पात्रा के इस आरोप के बाद कि एनडीटीवी का ''एजेंडा'' है, एंकर ने उन्हें 'शो' से बाहर जाने के लिए कहा।

 

एक तरफ, मोदी लोकतंत्र को मजबूत करने की बात करते हैं और दूसरी ओर, वह इसे कमजोर करने के लिए हर चीज करने को तैयार हैं। अपने पसंदीदा कार्यकम्र 'मन की बात' में ही हाल ही में उन्होंने कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र के लिए स्वस्थ आलोचना बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन उनकी सरकार की ओर से की जा रही हर कार्रवाई, खासकर मीडिया पर हमले, से तानाशाही की गंध आती है। लोगों पर उनका जादू धीरे−धीरे खत्म हो रहा है। यह बात वह जितनी जल्दी समझ लें, उनके और उनके सर्मथकों के लिए बेहतर है।

 

- कुलदीप नैयर

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