गोवर्धन पूजा पर्व को अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली के अगले दिन मनाये जाने वाले इस त्योहार की विशेष छटा ब्रज में देखने को मिलती है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था तो गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह पर्व अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाये जाने वाले इस पर्व के दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सवों को भी मनाने की परम्परा है। इस दिन भगवान को तरह−तरह के व्यंजनों के भोग लगाये जाते हैं और उनके प्रसाद का लंगर लगाया जाता है। इस दिन गाय−बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूलमाला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली चावल लगाकर पूजा करते हैं तथा परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन गाय की पूजा करने से सभी पाप उतर जाते हैं और मोक्ष प्राप्त होता है।
कथा− एक बार श्रीकृष्ण गोप−गोपियों के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि हजारों गोपियां गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर गोपियों ने बताया कि मेघों के स्वामी इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है। श्रीकृष्ण बोले− यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं, तब तो इस उत्सव की कुछ कीमत है। गोपियां बोलीं− तुम्हें इन्द्र की निन्दा नहीं करनी चाहिए। इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है।
श्रीकृष्ण बोले− वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है, हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। सभी गोप−ग्वाल अपने−अपने घरों से पकवान ला−लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधि से गोवर्धन की पूजा करने लगे। इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरी पूजा न होकर गोवर्धन की पूजा की जा रही है तो वह कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी कि गोकुल में जाकर इतना पानी बरसायें कि वहां पर प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो जाये।
मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलाधार वर्षा करने लगे। श्रीकृष्ण ने सब गोप−गोपियों को आदेश दिया कि सब अपने−अपने गायों बछड़ों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंच जाएं। गोवर्धन ही मेघों की रक्षा करेंगे। सब गोप−गोपियां अपने−अपने गाय−बछड़ों, बैलों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंच गये। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर धारणकर छाता सा तान दिया। सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं गिरी।
ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म ले लिया है। उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नहीं है। श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा−याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी यह यह गोवर्धन पर्व के रूप में प्रचलित हो गया।
-शुभा दुबे