By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 04, 2018
कातोवित्स। सोमवार को पोलैंड में आधिकारिक रूप से शुरू हुए सीओपी24 शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र ने चेताया कि विश्व विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने की अपनी योजना की राह से दूर है। बेलगाम ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के मनुष्य के तरीकों पर चर्चा करने के लिए कई देश पोलैंड में एकत्रित हुए हैं। हाल ही में एक के बाद एक पर्यावरण संबंधी घातक रिपोर्टें सामने आईं जिनमें दि्खाया गया कि भूमंडलीय तापमान में बेलगाम इजाफे को रोकने के लिए मानव को अगले दशक के भीतर अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में जबरदस्त कटौती करनी होगी। इन रिपोर्टों पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने प्रतिनिधि मंडलों से कहा, “हम अब भी बहुत कुछ नहीं कर रहे हैं, न ही तेज गति से बढ़ रहे हैं।”
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खतरे की जद में आने वाले देश फिजी, नाइजीरिया और नेपाल के नेता सीओपी24 जलवायु वार्ता में अपने-अपने देश का मामला रखेंगे। सीओपी24 का लक्ष्य 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में जिन वादों पर सहमति बनी थी उन पर और चर्चा करना है। मेजबान पोलैंड खुद कोयले से प्राप्त होने वाली ऊर्जा पर बहुत ज्यादा निर्भर है। वह ‘‘जीवाश्म ईंधन’’ छोड़ने के लिये उचित व्यवस्था के अपने एजेंडा पर जोर देगा और आलोचकों का कहना है कि यह उसे दशकों तक प्रदूषण फैलाने की मंजूरी देने जैसा होगा। उल्लेखनीय है कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले करीब 200 राष्ट्रों को वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे, और संभव हो सके तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की सुरक्षित सीमा तक रखने की सहमति बनी थी।
करीब 200 देशों के प्रतिनिधि दो हफ्ते तक इस बात पर चर्चा करेंगे कि व्यावहारिक रूप से इन लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जा सकता है जबकि विज्ञान की दृष्टि से देखें तो जलवायु परिवर्तन की दर मानवीय प्रयासों को धता बताते हुए बहुत तेजी से बढ़ रही है। यहां धन एक बड़ा विवाद बना हुआ है। पेरिस समझौते के तहत अमीर देशों के विकासशील देशों का वित्तपोषण करने की उम्मीद थी ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्थाओं को हरित तौर-तरीकों पर आधारित बना सकें। लेकिन समझौते से अलग होने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले ने कमजोर राष्ट्रों के बीच भरोसे को तोड़ा जिन्हें डर है कि उनकी मदद के लिए पर्याप्त नकद नहीं है।
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विश्व बैंक ने सोमवार को 2021-25 के लिए जलवायु कार्य निवेश में 200 अरब डॉलर की घोषणा की जो हरित पहलों के लिए बेहर प्रेरणादायी है लेकिन इसे राष्ट्र के वित्तपोषणों का सहारा चाहिए होगा। संरा की जलवायु पर विशेषज्ञ समिति का कहना है कि सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पाने की आशा तभी की जा सकती है जब जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक आधा कर दिया जाए।