विश्व धरोहरें सिर्फ इमारत भर नहीं हैं, यह अपने आप में लंबा इतिहास समेटे हुए हैं

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Apr 18, 2020

वैश्विक महामारी कोरोना के भूचाल में पर्यटन के क्षेत्र में गौरवपूर्ण हमारी विश्व धरोहर भी सन्नाटे का दंश झेल रही है। इस बार जानिये अपनी विश्व धरोहर के बारे में। बहुविध सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के देश भारत में कदम-कदम पर सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतिमान देश की गरिमा को बढ़ाते हैं। हमारे सांस्कृतिक एवं एतिहासिक स्मारक और ऐसी ही अन्य विशेषताओं वाले किले, महल, इमारतें, मीनारें, छतरियां, धार्मिक स्थल, एतिहासिक शहर, गगन चुम्बी पहाड़ और उनका सौंदर्य, मीलों बहती नदियाँ और उनके किनारे फलती-फूलती सभ्यताएं, रमणिक झीलें, प्राकतिक सम्पदा से भरपूर हरे-भरे सघन वन और जंगल, अप्रतिम सौंदर्ययुक्त प्राकृतिक घाटियां और उपवन, आदिवासी एवं लोक जीवन की विचित्रता पूर्ण रंगबिरंगी सांस्कृतिक परंपराएं, भव्य उत्सव और मेले, मीलों पसरा रेगिस्तान, देश के तीन ओर समुंदर की अथाह जल राशि सब कुछ मिल कर हमारे देश को दुनिया में एक अलग ही पहचान दिलाती हैं।


सांस्कृतिक धरोहर स्थलों में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, शिलालेख, गुफा आवास, विश्व महत्व वाले स्थान, इमारतों का समूह, अकेली इमारत, मूर्तिकारी-चित्रकारी-स्थापत्य की झलक वाले स्थल, ऐतिहासिक, सौन्दर्य एवं मानव विज्ञान तथा विश्व दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों को शामिल किया जाता है। प्राकृतिक धरोहर स्थल में वन क्षेत्र, जीव, प्राकृतिक स्थल, भौगोलिक महत्व के ऐसे स्थान जो नष्ट होने के करीब हैं, वैज्ञानिक महत्व की जगह आदि को शामिल किया जाता है। जो स्थल सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, उन्हें मिश्रित धरोहर में शामिल किया जाता है।

 

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विश्व धरोहर दिवस के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को देखें तो संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनेस्को संस्था की पहल पर एक अन्तर्राष्ट्रीय संधि की गई, जिससे विश्व के सांस्कृतिक, प्राकृतिक स्थलों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता दर्शाई गई। वर्ष 1982 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ माउंटेस एंड साईट (ईकोमार्क) नामक संस्था ने टयूनिशिया में अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया गया तथा इसी सम्मेलन में सर्वसम्मति से निर्णय लेकर विश्व में प्रतिवर्ष ऐसी संरक्षित धरोहर के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए 18 अप्रैल को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत दिवस आयोजित करने की घोषणा की गई। तब से लेकर आज तक निरंतर इस दिवस को मनाया जा रहा है।


किसी भी स्थान विशेष की धरोहर को संरक्षित करने के लिए ‘अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिसर‘ तथा ‘विश्व संरक्षण संघ' द्वारा आकलन कर विश्व धरोहर समिति से सिफारिश की जाती है। समिति की बैठक वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है। यूनेस्को द्वारा अब तक विश्व में जुलाई 2019 तक 1121 धरोहर स्थलों का चिन्हिकरण कर उन्हें विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। इनमें से 869 सांस्कृतिक महत्व की धरोहर, 213 प्राकृतिक, 39 मिले-जुली धरोहर और 138 अन्य स्थल हैं। करीब 142 राष्ट्रीय पार्टियों में स्थित समस्त विश्व धरोहरों का वर्गीकरण पांच भूगोलीय भूमंडलों में किया गया है। भूगोलीय भूमंडलों में अफ्रीका, अरब राज्य जिनमें आस्ट्रेलिया और ओशनिया भी शामिल हैं, यूरोप और उत्तरी अमेरिका विशेषतः संयुक्त राज्य और कनाडा तथा दक्षिणी अमेरिका एवं कैरीबियन आते हैं। रूस एवं कॉकेशस राष्ट्र यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका भूमंडल में शामिल किए गए हैं।

 

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विश्व परिदृश्य को देखें तो अफ्रीका में 74, अरब राज्य में 62, एशिया प्रशांत में 183, यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में 416 तथा दक्षिणी अमेरिका एवं कैरीबियन में 117, इटली में 49, स्पेन में 44, जर्मनी एवं फ्रांस में 38, चीन में 45 विश्व धरोहर स्थल हैं। विश्व में करीब 226 हैरिटेज सिटी घोषित की गई हैं। ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक संपदा से भरपूर हमारे अपने भारत देश में 40 स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। विश्व धरोहर में शामिल होने का सिलसिला वर्ष 1983 से वर्ष 2019 तक अनवरत चलता रहा।


भारतीय सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से भारत में वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश में आगरा का ताजमहल एवं किला, महाराष्ट्र में अजंता एवं एलोरा की गुफाएं, वर्ष 1984 में ओडिशा राज्य का कोणार्क मंदिर व तमिलनाडु के महाबलीपुरम के स्मारक, वर्ष 1985 में असम का कांजीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य तथा असम का मानस राष्ट्रीय अभ्यारण्य, वर्ष 1986 में गोवा का पुराना चर्च, कनार्टक में हम्पी के स्मारक, मध्यप्रदेश खजुराहो के मंदिर एवं स्मारक व उत्तर प्रदेश में फतेहपुर सीकरी, वर्ष 1987 में महाराष्ट्र में एलीफैंटा की गुफाएं, तमिलनाडु का चोल मंदिर, कर्नाटक में पट्टाइक्कल के स्मारक, पश्चिवन राष्ट्रीय अभ्यारण्य, वर्ष 1989 में मध्य प्रदेश स्थित सांची के बौद्ध स्तूप, वर्ष में दिल्ली का हुमायूं का मकबरा एवं कुतुबमीनार तथा मध्य प्रदेश में भीमवेटका, वर्ष 2002 में बिहार में महाबोधि मंदिर बौधगया, वर्ष 1999 में पश्चिय पर्वतीय रेल दार्जिलिंग, वर्ष 2004 में गुजरात में चंपानेर पावागढ़ का पुरातत्व पार्क तथा महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, वर्ष में उत्तराखंड में फूलों की घाटी एवं तमिलनाडु में भारतीय पर्वतीय रेल नीलगिरी, वर्ष 2007 में दिल्ली का लाल किला, वर्ष 2008 में हिमाचल प्रदेश में भारतीय पर्वतीय रेल कालका-शिमला, वर्ष 2012 में पश्चिमी घाट कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, वर्ष 2014 में गुजरात में रानी की वाव पाटन तथा हिमाचल प्रदेश में ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान कुल्लू एवं वर्ष 2016 में चंडीगढ़ कैपिटल कॉम्पलेक्स को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।


देश के परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक विविधताओं वाले राजस्थान में वर्ष 1985 में भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय अभ्यारण्य प्रथम बार विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। इसके उपरांत वर्ष 2010 में जयपुर के जंतर-मंतर तथा वर्ष 2013 में आमेर का किला, झालावाड में गागरोन का किला, चित्तौडगढ़ किला, राजसमंद का कुंभलगढ़, सवाई माधोपुर का रणथंभौर दुर्ग तथा जैसलमेर का सोनार किला विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया। इस प्रकार अब तक राजस्थान में आठ स्थल विश्व धरोहर में अपना स्थान बना चुके हैं।


भारत की धरोहरों को विश्व विरासत सूची में शामिल कराने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। काशी (बनारस) में विकास प्राधिकरण ने 71 ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों की सूची तैयार की है। उत्तराखंड के दून को तथा मध्य प्रदेश के चंदेरी को भी इस सूची में शामिल करने लिए प्रयास किए जा रहे हैं। दिल्ली को हैरिटेज सिटी में शामिल करने के लिए वर्ष 2010 में रोडमैप तैयार कर लिया गया था। दिल्ली के साथ-साथ अहमदाबाद तथा पंजाब के शहर चंडीगढ़ को भी हैरिटेज सिटी का दर्जा दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं।


विश्व विरासत दिवस पर केवल संरक्षित धरोहरों का स्मरण ही पर्याप्त नहीं है, वरन् प्रत्येक का प्रयास होना चाहिए कि वह इस दिवस को आवश्यक रूप से मनाए, इसके लिए आप अपने शहर या शहर के नजदीक स्थल को देखने जाएं, अपने बच्चों को दिखाएं तथा आपके यहां आने वाले मेहमानों को भी इन स्थलों की सैर कराएं। विद्यालय प्रबंधक भी ऐसे स्थलों या उपलब्ध संग्रहालय का अवलोकन बच्चों का सामूहिक रूप से करा सकते हैं। राजस्थान में सरकार द्वारा संचालित संग्रहालयों को देखने के लिए इस दिन किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है। इसका उद्देश्य यही है कि बच्चे और वहां के नागरिक अधिकाधिक संग्रहालयों में जाएं तथा वहां संजोई गई अपनी समृद्ध विरासत को देखें और समझें। ऐसे स्थलों को देखकर हमें हमारी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं भौगोलिक संपदा पर गर्व होगा और हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हम जिस देश-प्रदेश के निवासी हैं, वह कितनी समृद्ध विरासत अपने में संजोए है।


-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार भी हैं और पर्यटन पर अनेक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं)


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