By कमलेश पांडेय | Jan 04, 2022
मनुष्य की दृष्टिहीनता एक प्राकृतिक अभिशाप है, लेकिन महान फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुई ब्रेल की लगन व मेहनत से विकसित हुई ब्रेल लिपि ने इस अभिशाप को कमतर करने में एक बड़ा योगदान दिया है। बता दें कि मिस्टर लुई ने महज 15 साल के खेलने-कूदने के उम्र में ही अंधे व्यक्तियों के लिए बरदान बन चुकी ब्रेल लिपि की खोज की थी। यही वजह है कि उनके सम्मान में वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के द्वारा विश्व ब्रेल दिवस मनाने की घोषणा की गई। जिसके दृष्टिगत पूरी दुनिया सहित भारत में भी पहली बार विश्व ब्रेल दिवस विगत 4 जनवरी, 2019 को मनाया गया था। उसके बाद से ही प्रतिवर्ष विश्व ब्रेल लिपि दिवस मनाया जाने लगा। तब से यह चौथा वर्ष है जब वर्ल्ड ब्लाइंड यूनियन (डब्ल्यूबीयू) विश्व ब्रेल दिवस मनाएगा। इस यूनियन द्वारा नवम्बर 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा आधिकारिक रूप से अनुमोदित किए जाने के बाद ही विश्व ब्रेल दिवस मनाने की शुरुआत की गई।
आपको मालूम होना चाहिए कि देश-दुनिया में लाखों अंधे लोगों को पढ़ने-लिखने में सक्षम बनाने वाले महान फ्रांसीसी वैज्ञनिक लुई ब्रेल खुद भी एक दृष्टिहीन व्यक्ति थे। जिससे चलते वो स्वयं भी पढ़ने लिखने में अक्षम थे। हालांकि, इससे उनका हौसला पस्त नहीं हुआ, बल्कि अपनी लगन व मेहनत से मात्र 15 साल की आयु में ही उन्होंने ब्रेल लिपि की खोज कर ली और फिर उसके निरन्तर विकास के वास्ते खुद को झोंक दिया। बता दें कि विश्व ब्रेल दिवस को अंधे और आंशिक रूप से देखे जाने वाले लोगों के लिए संचार के साधन के रूप में ब्रेल के महत्व के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए आधिकारिक तौर पर नामित किया गया था। जिससे अंधे लोगों के बीच वर्ष दर वर्ष जागरूकता बढ़ रही है।
# पहली बार 1829 में प्रकाशित हुआ था ब्रेल का काम
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1824 में लुई ब्रेल ने पहली बार सार्वजनिक रूप से अपने काम को दुनिया के पटल पर प्रस्तुत किया, जिसकी काफी सराहना हुई। कुछ साल बाद ही लुई ब्रेल ने एक प्रोफेसर के रूप में सेवा की और अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण समय ब्रेल लिपि प्रणाली का विकास और विस्तार करने में बिताया। गौरतलब है कि ब्रेल ने 1829 में पहली बार ब्रेल लिपि प्रणाली प्रकाशित की। उसके आठ साल बाद उनकी इस भाषा पर एक बेहतर संस्करण प्रकाशित हुआ।
# कोविड-19 के दौर में ब्रेल लिपि की उपयोगिता
वैश्विक महामारी कोविड 19 ने आवश्यक जानकारी व सूचनाएँ, सर्वसुलभ साधनों में उपलब्ध कारने की महत्ता को एक बार फिर से उजागर कर दिया है, जिनमें ब्रेल लिपि और सुनने वाले अन्य संसाधन भी शामिल हैं। यह इसलिये भी हरेक इंसान के पास उपलब्ध होना बहुत आवश्यक हैं, ताकि वो ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक अहम जानकारी हासिल कर सकें और कोविड-19 महामारी के फैलाव का ख़तरा कम कर सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वैश्विक महामारी की एक समावेशी जवाबी कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिये अपने स्तर पर अनेक गतिविधियाँ व कार्यक्रम चलाए हैं, जिससे ब्रेल लिपि की भी प्रासंगिकता बढ़ी है।
ब्रेल लिपि के जन्मदाता लुइस ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 को फ्रांस में हुआ था। उनके पिता की घोड़े की काठी बनाने की दुकान थी। वो चार भाई-बहन थे, जिसमें वे सबसे छोटे थे। एक दिन महज तीन साल के लुइस दुकान में खेल रहे थे, उसी दौरान उन्होंने चमड़े के टुकड़े में नुकीले औजार से छेद करना चाहा। लेकिन वह औजार उनके हाथ से फिसलकर उनकी आंख में जा लगा। इससे उनकी आंख में गंभीर चोट आई। कुछ दिन में ही उसमें इन्फेक्शन हो गया। जो धीरे-धीरे दूसरी आंख में भी फैल गया। इस एक्सीडेंट के दो साल बाद उनके पांच साल के होते-होते लुइस की आंखों की रोशनी बिल्कुल चली गई। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने नाम से एक लेखन शैली (स्टाइल) विकसित की, जिसे आगे चल कर ब्रेल के नाम से जाना गया। कहने का तातपर्य यह कि लुइस ब्रेल ने ही ब्रेल लिपि को जन्म दिया था। इस लिपि के माध्यम से नेत्रहीन व्यक्ति, दृष्टिहीन या आंशिक रूप से नेत्रहीन व्यक्ति पढ़ सकते हैं। इस दिवस का उद्देश्य ब्रेल के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार