By अंकित सिंह | Jan 19, 2022
उत्तर प्रदेश में भी किसान आंदोलन का असर देखने को मिला। इसके साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ऐसे जिले हैं जहां के किसान लगातार गाजीपुर बॉर्डर पर डटे रहें। इसके अलावा लखीमपुर खीरी हिंसा कांड ने भी उत्तर प्रदेश में किसानों को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले और दूसरे चरण में चुनाव होने हैं। गाजीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान खूब डटे रहे। लेकिन यह बात भी सच है कि पंजाब की तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान फिलहाल चुनावी मैदान में दम भरते दिखाई नहीं दे रहे हैं। हालांकि राजनीतिक दलों में किसान संगठनों के समर्थन लेने की होड़ जरूर मची हुई है। अखिलेश यादव भी एक टीवी कार्यक्रम के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता और किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले राकेश टिकैत को अपने साथ जुड़ने के लिए निमंत्रण दे चुके हैं। इसी कड़ी में अब भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय राज्य मंत्री डॉक्टर संजीव बालियान भी भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत से भी मुलाकात कर चुके हैं।
उत्तर प्रदेश के किसी किसान संगठन ने अब तक चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान नहीं किया है। हां, यह जरूर है कि राकेश टिकैत लगातार योगी सरकार के खिलाफ हुंकार भरते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन वह किस पार्टी का समर्थन कर रहे हैं इस पर सीधे-सीधे अपने पत्ते नहीं खोल रहे। राकेश टिकैत और नरेश टिकैत की ओर से लगातार किसान आंदोलन के दौरान किसानों से भाजपा नेताओं का बहिष्कार करने का आह्वान किया जा रहा था। लेकिन नरेश टिकैत और संजीव बालियान की मुलाकात ने उत्तर प्रदेश की सियासी हलचल को जरूर बढ़ा दी है।
उत्तर प्रदेश में तब भी सियासी हलचल तेज हो गई थी जब चौधरी नरेश टिकैत की ओर से सपा-आरएलडी गठबंधन के प्रत्याशी को समर्थन देने की अपील की थी। हालांकि अपने अपील के 24 घंटे के भीतर ही नरेश टिकैत ने यू-टर्न ले लिया। नरेश टिकैत ने साफ तौर पर कहा कि हम किसी भी दल का चुनाव में समर्थन नहीं कर रहे हैं। आपके लिए यह जानना भी जरूरी है कि बुढ़ाना विधानसभा सीट के अंतर्गत नरेश टिकैत का गांव सिसौली पड़ता है यहां से सपा-आरएलडी के प्रत्याशी राजपाल बलयान सिसौली पहुंचे थे। इसी दौरान नरेश टिकैत ने गठबंधन को अपना समर्थन देते हुए लोगों से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशियों को जिताने की अपील की थी। हालांकि, बाद में वह पूरी तरह से पलट गए और उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हमारा किसी भी प्रत्याशी का समर्थन नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा तय करेगा कि हम इस बार के चुनाव में किसी राजनीतिक दल का समर्थन करेंगे या नहीं करेंगे।
मामला चाहे जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि इस बार के चुनाव में किसानों की अहमियत बढ़ गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल भगवान की तरह किसानों की परिक्रमा लगा रहे हैं। चाहे सत्तारूढ़ भाजपा हो या फिर कांग्रेस, सपा, बसपा, आरएलडी या आम आदमी पार्टी, सभी किसानों को खुश करने में जुटे हुए हैं और एक से बढ़कर एक वायदे किए जा रहे हैं। जब किसान आंदोलन चल रहा था तब विपक्षी दलों ने उनके सहयोग में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ऐसे में अब चुनाव आ गया है तो अब विपक्षी दलों को जीत के लिए किसानों का समर्थन जरूरी है। यही कारण है कि किसान संगठनों पर विपक्षी दल लगातार डोरे डाल रहे हैं। दूसरी ओर चुनाव आते ही योगी सरकार ने भी किसानों के हित में खूब फैसले लिए। गन्ने के मूल्य में भी ₹25 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर दी।
फिलहाल सवाल यही है कि क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश इस बार किसान आंदोलन की तल्खी से चुनाव का रुख मोड़ देगा या फिर ध्रुवीकरण की सियासत को नई दिशा देगी। उत्तर प्रदेश जीतने के लिए सभी दल फिलहाल सब कुछ दांव पर लगाने की कोशिश में हैं।