By अभिनय आकाश | Jan 23, 2020
देशभर में सीएए और एनआरसी को लेकर घमासान मचा है। एक तरफ जहां कांग्रेस समेत तमाम दल सीएए के विरोध में आकर खड़े हैं वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने सीएए पर कोई कदम भी पीछे नहीं खींचने की बात दो टूक कर दी है। बीजेपी का साथ छोड़ कांग्रेस और एनसीपी के सहारे महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज उद्धव ठाकरे ने रजा अकादमी सहित कई मुस्लिम संगठनों से मुलाकात की। रज़ा अकादमी ने कहा कि महाराष्ट्र को “भाजपा सरकार द्वारा पारित असंवैधानिक अधिनियम” के खिलाफ केरल और पंजाब के नेतृत्व का पालन करना चाहिए।
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रजा अकादमी सहित कई मुस्लिम संगठनों ने कहा गया कि “महाराष्ट्र के पूरे मुस्लिम समुदाय और धर्मनिरपेक्ष नागरिकों की ओर से, हम उलमा और इस्लामिक विद्वान अनुरोध करते हैं कि आप अपने स्वयं से अनुरोध करें और एक संकल्प को पारित करें। भाजपा सरकार द्वारा पारित किया गया असंवैधानिक और असंवैधानिक अधिनियम, जिसका न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अभूतपूर्व तरीके से विरोध किया गया है। सूफी मुस्लिम संगठन रज़ा अकेडमी के नेतृत्व में सेकड़ों सुन्नी उलेमाओं ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात कर विधानसभा में सीएए और एनआरसी के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करने की अपील की। बता दें कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख ने उन्हीं रज़ा अकादमी के नेताओं से मुलाकात की, जिसने अगस्त 2011 में आजाद मैदान में एक तथाकथित विरोध प्रदर्शन किया था जो देखते ही देखते हिंसक दंगों में बदल गया था।
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क्या है रजा अकादमी
रजा अकादमी सुन्नी समुदाय का मुस्लिम संगठन है। इसकी स्थापना मुंबई में 1978 में मोहम्मद सइद नूरी ने की। मुस्लिम समुदाय के बरेलवी मूवमेंट की विचारधारा से संगठन तालुक्क रखता है। अहमद रजा खान-बरेलवी द्वारा लिखे गए साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए उनके नाम पर रजा अकादमी की शुरुआत की गई थी। सैटेनिक वर्सेस किताब के लेखक सलमान रुश्दी के खिलाफ संगठन ने 1988 में फतवा जारी किया था। इस फतवे के बाद संगठन सुर्खियों में आया। संगठन ने 1992 में भारत और इज्राइल के बीच हुए राजनीतिक समझौते का विरोध जताते हुए मुंबई में मोर्चा निकाला था।
अकादमी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाइक से इज्राइल से समझौता तोड़ने की मांग की थी। साल 2012 में रजा अकादमी की अगुवाई में कई मुस्लिम संगठनों ने मिलकर असम व म्यांमर में फैली हिंसा के खिलाफ आजाद मैदान में रैली निकाली थी। रैली के दौरान हुई हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई थी और 92 लोग घायल हो गए थे। रैली का आयोजन असम और म्यांमार में मुस्लिमों पर कथित अत्याचार के विरोध में किया गया था। कुछ मौलवियों के भड़काऊ भाषण के बाद भीड़ भड़क गई थी और उसने जमकर तोड़फोड़ की थी और मुंबई में अमर जवान स्मारक को क्षतिग्रस्त कर दिया था।