नीतीश की यूटर्न वाले नेता की छवि क्या 2024 में उनकी राह में रोड़े नहीं अटकायेगी?

By टीम प्रभासाक्षी | Aug 10, 2022

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़ने के बाद, एक बार फिर उन्हें कुछ लोगों द्वारा 2024 के आम चुनाव में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कहा जाने लगा है। लेकिन ज्यादातर विपक्षी दल अब भी जद (यू) नेता को उनके कई 'यू-टर्न' के मद्देनजर संदेह की नजर से देखते हैं। विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा रखने वाले नेताओं में से एक हैं और इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हैं। जनता दल (यू) के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पटना में कहा, “यदि आप देश में शख्सियतों का आकलन करें, तो नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं। हम आज कोई दावा नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनमें प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण हैं।’’


राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता शरद यादव ने भी कहा कि नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि, नीतीश कुमार ने अगले लोकसभा चुनावों में उनके प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा होने से जुड़े सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया। राजद नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को "पलटू राम" कहा था, जब वह 2017 में राजद-जद (यू)-कांग्रेस महागठबंधन से बाहर हो गए थे और भाजपा से हाथ मिला लिया था।

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शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि जहां तक भ्रष्टाचार के आरोपों का सवाल है, नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर बेदाग रहा है, लेकिन एक बात जो उनके खिलाफ है, वह कई बार गठबंधन बदलते रहे हैं। राज्यसभा सदस्य चतुर्वेदी ने कहा, "नीतीश कुमार एक ऐसे सहयोगी रहे हैं, जो अक्सर अपना मन बदलते रहते हैं। एक चीज उनके खिलाफ है, वह है भरोसा...।’’ उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे भी भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़े रहे और बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान खासकर कोविड-19 महामारी के समय स्वच्छ प्रशासन दिया। उन्होंने कहा, "विपक्ष में कई योग्य नेता हैं और यह 2024 में देखा जाएगा कि चीजें किस प्रकार आकार लेती हैं।"


वाम और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने बिहार के घटनाक्रम का स्वागत किया, लेकिन नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। राकांपा नेता मजीद मेमन ने कहा कि नीतीश कुमार, शरद पवार और ममता बनर्जी सहित उन कुछ लोगों में से एक हो सकते हैं, जिन्हें 2024 में प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के रूप में देखा जा सकता है। राज्यसभा के पूर्व सदस्य मेमन ने कहा, "कुछ क्षेत्रीय नेता हैं। नीतीश कुमार भी उनमें से एक हैं। निश्चित रूप से, वह एक दावेदार हैं। लेकिन अंतत: यह एक सर्वसम्मत फैसला होगा कि भाजपा को कौन चुनौती देगा।" 


कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे जद (यू) के पूर्व नेता आरसीपी सिंह ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री भले ही सात जन्म ले लें, लेकिन वह कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। भाजपा के राज्यसभा सदस्य विवेक ठाकुर ने नीतीश कुमार के राजग से बाहर जाने को 'छुटकारा मिलना’’ करार दिया। उन्होंने कहा, "नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा की कोई सीमा नहीं है। वह न तो बिहार और न ही अपनी पार्टी के लिए काम करते हैं, वह केवल अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए काम करते हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री पद के लिए कोई रिक्ति नहीं है।’’ भाजपा नेता ने कहा कि नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन पर वेब सीरीज 'पलटू राम पार्ट 1, पार्ट 2 और पार्ट 3' बनाई जा सकती है। कांग्रेस से निलंबित नेता संजय झा ने कहा कि 2024 में ममता बनर्जी की तुलना में नीतीश कुमार संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर अधिक स्वीकार्य चेहरा होंगे।


सरकारें बदलने की कला में माहिर


देखा जाये तो बिहार के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के साथ ही नीतीश कुमार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह सरकारें बदलने की कला में माहिर हैं। बिहार का मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम, कुछ लोगों के लिए 2017 में हुई घटनाओं का पुन: पलटना है। उन्होंने 2017 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीत महागठबंधन को छोड़ दिया था और फिर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत गठबंधन में शामिल हो गए थे। कई लोगों के लिए यह महाराष्ट्र में हुई घटनाओं का दोहराव है जहां शिवसेना-कांग्रेस-राकांपा सरकार को हटाकर भाजपा ने शिवसेना से बगावत करने वाले विधायकों के साथ सरकार बना ली। मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज के पूर्व प्रोफेसर व राजनीति विज्ञान के जाने माने विशेषज्ञ रणबीर समद्दर ने कहा, "बिहार महाराष्ट्र के सिक्के का दूसरा पहलू बन गया है।"

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धर्मनिरपेक्ष समाजवादी मंच को छोड़ कर दक्षिणपंथी पार्टी के साथ जाने और बाद में उसे भी छोड़ कर वापस आने जैसे कदमों से नीतीश कुमार की सुशासन वाले व्यक्ति के रूप में छवि भले ही प्रभावित हुई हो लेकिन असंभव को संभव करने की उनकी राजनीतिक क्षमता निश्चित रूप से कम नहीं हुई है। सीपीआईएमएल (एल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, "अगर वह अपने नए कदम के साथ उस गति को कायम रखते हैं... तो बिहार में 2024 का आम चुनाव भाजपा के लिए संघर्ष का वास्तविक मैदान साबित होगा, जहां 40 महत्वपूर्ण सीटें हैं।’’


रिकॉर्ड आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे नीतीश कुमार (71) ने अपना सफर बिहार विद्युत बोर्ड में एक इंजीनियर के रूप में शुरू किया था और बाद में वह समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के तहत राजनीति में शामिल हो गए और 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भाग लिया। समाजवादी पार्टी के कई विभाजन और विलय के बाद, नीतीश कुमार ने जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया। जद (यू)-भाजपा गठबंधन ने बिहार में समाजवादी लालू प्रसाद के राजद के लंबे शासन को समाप्त करने की कोशिश की और मार्च 2000 में, नीतीश कुमार पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन उनकी सरकार अल्पकालिक थी क्योंकि राजग के पास पर्याप्त संख्या नहीं थी। नीतीश कुमार बाद में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में शामिल हुए और रेल मंत्री के रूप में अच्छे प्रशासक साबित हुए। उन्होंने अन्य पहलों के साथ कम्प्युटरीकृत रेलवे आरक्षण की शुरुआत की थी।


पिछड़े कुर्मी समुदाय से आने वाले नीतीश कुमार को 2005 में फिर से मुख्यमंत्री चुना गया और इस बार उनके पास सरकार में बने रहने के लिए पर्याप्त संख्या थी। ‘सुशासन बाबू’ के रूप में मशहूर कुमार ने पिछड़े राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार किया। उन्होंने राज्य के बुनियादी ढांचे और शैक्षणिक संस्थानों में भी सुधार किया। राजग के मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकाल के बाद, नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और 2015 में अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद की पार्टी राजद और कांग्रेस से हाथ मिला लिया। हालांकि यह गठबंधन 2017 तक चला और वह महागठबंधन को छोड़कर वापस राजग में शामिल हो गए। जाहिर सी बात है कि अब पुरानी कहानी फिर से दोहराई जा रही है।


भाजपा को जनाधार मजबूत करने का दिख रहा है अवसर


बिहार की सत्ता गंवाने से भले ही 2024 लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से भारतीय जनता पार्टी का समीकरण बिगड़ता दिख रहा हो, लेकिन पार्टी के नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि यह उसके लिए इस राज्य में क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व को समाप्त करने का एक अवसर है, जैसा कि उत्तर प्रदेश में उसने कर दिखाया है। उल्लेखनीय है कि जनता दल (यूनाईटेड) के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा से नाता तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो गए। नौ वर्ष में यह दूसरा मौक़ा है जब उन्होंने भाजपा का हाथ झटका है। हाल के कुछ महीनों में भाजपा और जद (यू) के बीच संबंधों में कई मुद्दों को लेकर कड़वाहट आ गई थी और इसके बाद नीतीश कुमार ने यह कदम उठाया।


बिहार भाजपा के नेताओं का एक वर्ग जद (यू) के साथ गठबंधन जारी रखने के पक्ष में नहीं था लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का मानना रहा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में उसकी (जदयू) मौजूदगी से उसकी 2024 की राह आसान हो जाएगी क्योंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 40 में से 39 सीटों पर राजग ने कब्जा जमाया था। जद (यू) के एक विधायक ने कहा कि कुमार ने पार्टी सांसदों और विधायकों की बैठक में कहा कि उनके पास सोमवार को दिल्ली से एक फोन आया था लेकिन कुमार ने उनसे कहा था कि गठबंधन के बारे में कोई फैसला पार्टी नेताओं की बैठक में लिया जाएगा। कुमार ने उस नेता का नाम नहीं लिया लेकिन माना जा रहा है कि वह भाजपा के कोई केंद्रीय नेता थे।

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बहरहाल, अगले चुनावों में राज्य में भाजपा का मुकाबला महागठबंधन से होना तय है। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जद (यू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के महागठबंधन ने भाजपा को पूरी तरह धूल चटा दी थी। ‘‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज’’ के प्रोफेसर संजय कुमार ने भाजपा से जद (यू) के अलग होने पर कहा, ‘‘यह स्पष्ट संकेत है कि सहयोगी दल भाजपा के साथ सहज नहीं हैं और एक-एक कर उससे अलग होते जा रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन साथ ही इससे भाजपा को एक अवसर भी मिलता है कि जिस राज्य की क्षेत्रीय पार्टी ने उसका साथ छोड़ा है, वहां वह अपनी स्थिति मजबूत कर सके।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इस घटनाक्रम से भाजपा को राज्य में अपने विस्तार का मौका मिल जाएगा। लेकिन मैं यह नहीं बता सकता कि 2024 में वह कितने सफल होंगे।’’


भाजपा के कई नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पिछड़े और दलित मतदाताओं के बीच पिछले कुछ सालों में कई राज्यों में खासी पकड़ बनाई है और वह अकेले दम पर अपने प्रदर्शन का दोहरा सकती है। उन्होंने कहा कि अति पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं में जद (यू) का जनाधार माना जाता है लेकिन 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनावों में दलितों के साथ ही उन्होंने भी बड़ी संख्या में भाजपा को वोट दिया था। पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘‘भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर आज सबसे अधिक मजबूत है और यह सही अवसर है कि वह बिहार में क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व को समाप्त करे। ठीक उसी तरह जैसे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रभुत्व को समाप्त किया गया।’’


राज्य विधानसभा में इस समय विधायकों की संख्या 242 है जबकि बहुमत के लिए 122 विधायकों की आवश्यकता है। राजद के पास सबसे अधिक 79 विधायक हैं, उसके बाद भाजपा के पास 77 और जद (यू) के पास 44 विधायक हैं। जद(यू) को पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के चार विधायकों और एक निर्दलीय का भी समर्थन प्राप्त है। कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं जबकि भाकपा (माले) के 12 और भाकपा तथा माकपा के पास दो-दो विधायक हैं। इसके अलावा एक विधायक असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का है।

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