By योगेश कुमार गोयल | May 20, 2021
अप्रैल महीने से ही देशभर में कोरोना की दूसरी लहर के कारण हाहाकार मचा है, प्रतिदिन 3-4 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं और रोजाना करीब चार हजार लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं। वैक्सीन की कमी के कारण वैक्सीनेशन कार्यक्रम की रफ्तार सुस्त है और आने वाले समय में कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी से चिंता का माहौल गहरा गया है। ऐसे माहौल में गोवा सरकार द्वारा गत दिनों नए कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल को मंजूरी देते हुए 18 वर्ष से ज्यादा आयु के सभी लोगों को आइवरमेक्टिन दवा की 5 गोलियां लेने की सलाह दी गई है। गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे के अनुसार कोरोना संक्रमितों को 5 दिन तक 12 एमजी आइवरमेक्टिन दी जाएगी। उनके मुताबिक ब्रिटेन, इटली, स्पेन और जापान में भी मरीजों पर इस दवा के इस्तेमाल का फायदा हुआ, मरीजों के ठीक होने का समय कम हुआ और मृत्युदर में कमी पाई गई। हालांकि गोवा के स्वास्थ्य मंत्री ने स्पष्ट किया है कि यह इलाज कोरोना संक्रमण को तो नहीं रोकेगा लेकिन गंभीरता को कम करने में मदद कर सकता है।
गोवा सरकार के इस कदम के बाद ‘आइवरमेक्टिन’ नामक यह दवा एकाएक चर्चा में आ गई है। हालांकि भारत में इस दवा को पहले से ही फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मंजूरी मिली हुई है और देश में इसका उपयोग पहले से ही बड़े पैमाने पर हो रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय तथा आईसीएमआर के नेशनल कोविड टास्क फोर्स द्वारा भी पिछले महीने कोविड मरीजों के इलाज के लिए इस दवा को हरी झंडी दी गई थी, जिसके बाद से लक्षण दिखते ही डॉक्टर लोगों को यह दवा दे रहे हैं। कई राज्यों की तो कोविड किट में भी इस दवा का जिक्र है। डॉक्टरों के मुताबिक मौजूदा कोविड काल में यह संभवतः सर्वाधिक बिकने वाली दवाओं में से एक है। चिकित्सकीय सलाह पर तो बहुत सारे ऐसे लोग, जिनका कोई परिजन कोरोना संक्रमित है, स्वयं संक्रमण से बचने के लिए इस दवा का कोर्स कर रहे हैं लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो बेवजह इस दवा को खरीदकर अपने घर में रख रहे हैं।
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन आइवरमेक्टिन के इस्तेमाल के खिलाफ है और गोवा सरकार द्वारा इसे मंजूरी दिए जाने के बाद उसने पिछले दो महीनों में एक बार फिर दूसरी बार इसका उपयोग नहीं करने की सलाह दी है। दरअसल उसका कहना है कि इस दवा के बहुत से खतरे हैं। गोवा सरकार के फैसले के बाद डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने इस दवा के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी देते हुए कोरोना मरीजों के इलाज में आइवरमेक्टिन दवा का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है। वैसे यह दवा बनाने वाली जर्मन कम्पनी ‘मर्क’ भी मार्च माह में कह चुकी है कि प्री-क्लीनिकल स्टडीज में कोविड-19 के ट्रीटमेंट में इस दवा के चिकित्सकीय प्रभाव का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। कम्पनी के उस बयान को ट्वीट करते हुए सौम्या का कहना है कि किसी नए लक्षण में जब कोई दवा इस्तेमाल करते हैं तो उसकी सुरक्षा और असर का ध्यान रखना जरूरी है, इसलिए क्लीनिकल ट्रायल को छोड़कर कोरोना मरीजों को यह दवा नहीं दी जानी चाहिए।
दूसरी ओर कुछ अध्ययनों में आइवरमेक्टिन को कोरोना वायरस की गंभीर महामारी को खत्म करने में सहायक माना गया है। ऐसे ही एक शोध में दावा किया गया है कि आइवरमेक्टिन कोरोना महामारी को खत्म करने में मददगार साबित हो सकती है। ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ थेरेप्यूटिक्स’ के मई-जून संस्करण में प्रकाशित इस शोध में आइवरमेक्टिन के उपयोग को लेकर एकत्रित किए गए आंकड़ों की काफी बारीकी से समीक्षा करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया। इस शोध के केन्द्र में जनवरी 2021 में उपलब्ध 27 कंट्रोल्ड ट्रायल्स थे, जिनमें से 15 रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल्स थे। शोध के अनुसार आइवरमेक्टिन का नियमित इस्तेमाल कोविड-19 संक्रमण के खतरे को काफी कम कर सकता है। शोध में पाया गया कि आइवरमेक्टिन के प्रयोग से कोविड-19 मरीजों के वायरल क्लीयरेंस और रिकवरी में लगने वाला समय काफी कम हो गया तथा मृत्यु दर भी घट गई।
फ्रंट लाइन कोविड-19 क्रिटिकल केयर अलायंस (एफएलसीसीसी) के अध्यक्ष और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. पियरे कोरी के मुताबिक उन्होंने इस दवा के उपलब्ध आंकड़ों की व्यापक समीक्षा की। उनके अनुसार कई स्तरों पर की गई समीक्षा तथा डाटा के अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि इस दवा का इस्तेमाल कोरोना वायरस की गंभीर महामारी को खत्म करने में सहायक साबित हो सकता है। आइवरमेक्टिन की प्रभावोत्पादकता का मूल्यांकन करने के लिए करीब ढाई हजार रोगियों पर तरह-तरह के परीक्षण किए गए और सभी अध्ययनों में पाया गया कि आइवरमेक्टिन के नियमित सेवन से कोरोना की चपेट में आने का जोखिम काफी कम किया जा सकता है। शोध में शामिल रहे अमेरिका के ईस्ट वर्जीनिया के पलमोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख पाल ई मैरिक का कहना है कि हमारे नए शोध के नतीजों की गंभीरता से जांच के बाद इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना के लिए आइवरमेक्टिन एक सुरक्षित निरोधक और प्रभावी इलाज है।
अब यह भी जान लें कि आइवरमेक्टिन आखिर है क्या?
आइवरमेक्टिन को व्यापक रूप से दुनिया की पहली एंडोक्टोसाइड अर्थात् एंटी पैरासाइट दवा के रूप में जाना जाता है, जो मुंह के जरिये दी जाती है और इसका प्रयोग पैरासिटिक संक्रमण के इलाज में होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह दवा शरीर के अंदर और बाहर मौजूद परजीवी के खिलाफ बेहद असरदार साबित हो सकती है। राउंडवॉर्म इंफेक्शन जैसे पेट के संक्रमण के इलाज में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है और इसलिए इसे पेट के कीड़े मारने वाली दवा भी कहा जाता है। मुख्य रूप से इसका प्रयोग कोविड से पहले कृमिनाशक दवा ‘एलबेंडाजोल’ के विकल्प के रूप में किया जाता रहा है, जो पेट के कीड़ों को मारती है। वैसे व्यापक तौर पर आइवरमेक्टिन का उपयोग आंतों के स्ट्रॉग्लोडायसिस तथा ऑन्कोकेरिएसिस (रिवर ब्लाइंडनेस) के रोगियों के लिए किया जाता है। कुछ शोध में पाया जा चुका है कि यह सार्स सीओवी-2 सहित कुछ सिंगल-स्ट्रैंड आरएनए वायरस के खिलाफ एंटीवायरल असर दिखाती है। इस दवा की खोज वर्ष 1975 में की गई थी और लोगों के इस्तेमाल के लिए यह 1981 में बाजार में आई। उसके बाद 1988 में ऑन्कोकेरिएसिस नामक बीमारी के लिए भी इसे प्रयोग में लाया गया। यह दवा डब्ल्यूएचओ की आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल है। विशेषज्ञों ने इस दवा को एचआईवी, डेंगू, जीका, इन्फ्लुएंजा जैसे वायरसों की एक विस्तृत श्रृंखला के खिलाफ काफी प्रभावी पाया है।
अब सवाल यह है कि अगर डब्ल्यूएचओ तथा दवा निर्माता कम्पनी इस दवा के उपयोग के खिलाफ हैं, फिर भी भारत में कोरोना महामारी से लड़ने में इसका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? दरअसल देश में मौजूदा समय में स्वास्थ्य सेवाओं की बदतर हालत किसी से छिपी नहीं है। पिछले दिनों लोग अस्पतालों में बैड न मिलने और ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते रहे हैं, ऐसे में आइवरमेक्टिन के साइड इफैक्ट के बारे में सोचने की बजाय महामारी के बढ़ते असर पर किसी भी प्रकार लगाम कसना ज्यादा जरूरी है। इसलिए आइवरमेक्टिन को लेकर हुए कुछ शोध परिणामों और कुछ देशों में इसके नतीजों को देखते हुए इसका इस्तेमाल किया जाना अनिवार्य हो गया है। हालांकि बिना डॉक्टर की सलाह के इस तरह की दवा का इस्तेमाल खतरनाक भी हो सकता है क्योंकि डॉक्टरों का मानना है कि बिना डॉक्टरी सलाह के ऐसी दवाओं का सेवन कोरोना जैसी बीमारी को और खतरनाक भी बना सकता है, जिससे कई बार इलाज मुश्किल हो जाता है। गर्भवती महिलाओं, बच्चों, अन्य बीमारियों से जूझ रहे मरीजों तथा अत्यधिक गंभीर मरीजों के लिए तो चिकित्सकीय परामर्श के बिना यह दवा दिया जाना बहुत खतरनाक हो सकता है। आइवरमेक्टिन के साइड इफेक्ट्स की बात करें तो दिल की धड़कनें तेज होना, ओर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन (लो-ब्लडप्रेशर), चेहरे में सूजन, पेरिफेरल एडीमा इत्यादि दुष्प्रभाव हो सकते हैं। जहां तक आइवरमेक्टिन के कोरोना महामारी में प्रभाव की बात है तो कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक यह वायरस को शरीर में प्रवेश करने और शरीर में मौजूद वायरस को फैलने से रोकती है। इसके अलावा हल्के संक्रमित मरीजों में लक्षण भी खत्म करती है।
-योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)