Trump Tariffs से भारत फायदे में रहेगा या नुकसान उठाना पड़ेगा? आर्थिक विश्लेषकों और उद्योग जगत की राय क्या है?

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By नीरज कुमार दुबे | Apr 04, 2025

Trump Tariffs से भारत फायदे में रहेगा या नुकसान उठाना पड़ेगा? आर्थिक विश्लेषकों और उद्योग जगत की राय क्या है?

अमेरिका ने भारत पर जवाबी शुल्क लगाये तो घरेलू राजनीति का पारा आसमान पर पहुँच गया। विपक्ष कह रहा है कि इससे भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। विपक्ष यह भी कह रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपना परम मित्र बताते हैं लेकिन ट्रंप दोस्ती नहीं बल्कि दुश्मनी निभा रहे हैं। खास बात यह है कि अमेरिका के जवाबी शुल्क पर ना तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई सीधी टिप्पणी की है ना ही वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने इस संबंध में कोई बयान दिया है। हालांकि भारत सरकार के सूत्रों का यह कहना है कि देश वैश्विक व्यापार पर अमेरिका द्वारा अतिरिक्त आयात शुल्क लगाए जाने से उत्पन्न स्थिति पर नजर रखेगा तथा जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएगा। दरअसल इसकी वजह यह है कि ट्रंप के फैसलों से अमेरिका को खुद अपने घरेलू उद्योग से समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। सरकारी सूत्रों का यह भी कहना है कि इसमें भारत के लिए चुनौतियां और अवसर, दोनों हैं, क्योंकि निर्यात में उसके कई प्रतिस्पर्धी देश जैसे चीन, वियतनाम, बांग्लादेश, कंबोडिया और थाइलैंड उच्च शुल्क का सामना कर रहे हैं। इसलिए भारत का मानना है कि एक देश के तौर पर हमें स्थिति पर नजर रखने की ज़रूरत है और जल्दबाज़ी करने की जरूरत नहीं है। सूत्रों का कहना है कि ट्रंप के फैसले से अमेरिकी उद्योग भी नाराज होंगे और इससे चुनौतियां भी होंगी। हमें इंतजार करने, निरीक्षण करने और देखने की जरूरत है और हमें कोई निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।


भारत पर 27 प्रतिशत शुल्क के बारे में सूत्रों का यह भी कहना है कि केवल छह-सात क्षेत्रों जैसे झींगा और कालीन को भारी करों से चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अधिकांश अन्य क्षेत्रों को निर्यात बढ़ाने का अवसर मिलेगा, क्योंकि प्रतिस्पर्धी देशों को भारत की तुलना में अधिक शुल्क का सामना करना पड़ेगा। एक मोटे अनुमान के अनुसार, भारत के लगभग 25 प्रतिशत निर्यात को कर से छूट मिली हुई है तथा शेष के लिए ‘मिश्रित परिदृश्य’ है। इसके अलावा सोने के आभूषण और कालीन जैसी मूल्य-संवेदनशील वस्तुओं पर शुल्क लगाया जाएगा। व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार, चूंकि चीन को 54 प्रतिशत शुल्क का सामना करना पड़ेगा, इसलिए भारत में वस्तुओं की डंपिंग की संभावना है।

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हम आपको बता दें कि वाणिज्य मंत्रालय अमेरिका द्वारा की गई घोषणाओं के निहितार्थों की सावधानीपूर्वक जांच कर रहा है। वह हितधारकों से उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए उनसे परामर्श कर रहा है तथा प्रभाव का आकलन करने के लिए संबंधित मंत्रालयों के साथ संपर्क में है। अमेरिका को भारत के कृषि निर्यात पर इन शुल्क के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर एक सूत्र ने कहा कि अमेरिका में भारतीय प्रवासी कीमतों की परवाह किए बिना इन वस्तुओं का उपभोग करेंगे।


वहीं जहां तक अमेरिका के जवाबी शुल्क पर विशेषज्ञों की राय की बात है तो आपको बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस बारे में कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का लगभग 60 देशों पर लगाया गया जवाबी शुल्क का दांव ‘उल्टा पड़ेगा’ और भारत पर इसका प्रभाव ‘कम’ होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि अल्पावधि में, इसका सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यह ‘सेल्फ गोल’ (खुद को नुकसान पहुंचाने) है। अन्य देशों पर पड़ने वाले प्रभावों की बात करें तो भारत के निर्यात पर किसी भी शुल्क का सीधा प्रभाव यह होगा कि अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ेंगी, इससे उनकी मांग कम होगी और फलस्वरूप भारत की आर्थिक वृद्धि प्रभावित होगी।’’ जाने-माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा, ‘‘वास्तव में, चूंकि अमेरिका ने अन्य देशों पर भी शुल्क लगाया है तथा भारत उन देशों के उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है, ऐसे में कुल मिलाकर इसका प्रभाव केवल भारत पर शुल्क लगाने के मुकाबले कम होगा क्योंकि अमेरिकी उपभोक्ता विकल्प के तौर पर गैर-शुल्क उत्पादकों के पास तो जा पाएंगे नहीं।’’ वर्तमान में बिजनेस स्कूल, शिकॉगो बूथ में प्रोफेसर, रघुराम राजन ने कहा कि ट्रंप का दीर्घकालिक मकसद अमेरिकी उत्पादन को बढ़ाना है, लेकिन, यदि यह संभव भी हो, तो इसे हासिल करने में लंबा समय लगेगा।


उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत पर अमेरिका के जवाबी शुल्क संभवतः महंगाई बढ़ाने वाला नहीं होगा, क्योंकि भारत कम निर्यात करेगा और घरेलू स्तर पर आपूर्ति अधिक होगी। चीन जैसे अन्य देश अब भारत को निर्यात करने का प्रयास करेंगे, क्योंकि अमेरिकी बाजार अधिक बंद है। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत इस संकट को अवसर में बदल सकता है, राजन ने कहा, ‘‘हम निश्चित रूप से उन शुल्क को कम कर सकते हैं जिन्हें हम बढ़ा रहे हैं। यह भारत के लिए फायदेमंद होगा, भले ही इससे हमें अमेरिकी शुल्क को कम करने में मदद मिले या नहीं।’’ उन्होंने कहा कि भारत को यह समझने की आवश्यकता है कि दुनिया बहुत अधिक संरक्षणवादी हो गई है, इसलिए हमें व्यापार को लेकर अधिक चतुराई से काम करना होगा। राजन ने उदाहरण देते हुए कहा कि पूर्व में आसियान और जापान, दक्षिण पश्चिम में अफ्रीका और उत्तर पश्चिम में यूरोप की ओर देखने का मतलब बनता है। उन्होंने कहा कि चीन के साथ बराबरी का संबंध स्थापित करना प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही, हमें अपने पड़ोसी देशों, दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के साथ भी मजबूत संबंध बनाने चाहिए।’’ राजन ने कहा, ‘‘इसका मतलब है राजनीतिक मतभेदों पर काबू पाना। जैसे-जैसे दुनिया क्षेत्रीय ब्लॉक में बंटती जा रही है, दक्षिण एशिया को अलग-थलग नहीं रहना चाहिए।’’


हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिका के जवाबी शुल्क ने भारत को कपड़ा निर्यात के मामले में ‘‘अनुकूल स्थिति’’ में ला दिया है, क्योंकि देश को चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे अन्य परिधान निर्यातक देशों की तुलना में सापेक्ष लागत का लाभ होगा। रेमंड ग्रुप के मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) अमित अग्रवाल ने बताया, ‘‘अमेरिका द्वारा घोषित जवाबी शुल्क स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि भारत चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे अन्य परिधान निर्यातक देशों की तुलना में अत्यधिक अनुकूल स्थिति में है। हमें पहले से ही अमेरिकी ग्राहकों से क्षमता उपलब्धता के बारे में पूछताछ मिलनी शुरू हो गई है।’’ अमित अग्रवाल ने यह भी कहा कि अन्य प्रमुख बाजार शुल्क प्रभावित देशों से माल खरीदना जारी रख सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारत को उन बाजारों में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।


इसी तरह की बात दोहराते हुए ईवाई इंडिया के भागीदार और खुदरा कर लीडर परेश पारेख ने कहा कि वर्तमान में भारतीय कपड़ा क्षेत्र की दृष्टि से ‘भारत लाभ’ की स्थिति में है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत कपड़ा निर्यात के लिए बांग्लादेश, वियतनाम, कंबोडिया, श्रीलंका, चीन, पाकिस्तान आदि देशों के साथ वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करता है।’’ अमेरिका भारत से 36 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के वस्त्र आयात करता है। परेश पारेख ने कहा, ‘‘यह स्थिति भारतीय कपड़ा क्षेत्र के लिए अमेरिका में अपना बाजार हिस्सा हथियाने और बढ़ाने का अवसर प्रस्तुत करती है। हालांकि, इसमें एक जोखिम भी है- यदि उच्च कीमतों के कारण अमेरिका में खपत में मंदी आती है, तो समग्र अमेरिकी बाजार सिकुड़ सकता है।’’ 


हालांकि, अपोलो फैशन इंटरनेशनल जैसे कारोबारियों ने चेतावनी दी है कि ट्रंप शुल्क एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी, खासकर कम मार्जिन पर काम करने वाले व्यवसायों के लिए। अपोलो फैशन इंटरनेशनल के अध्यक्ष शिराज असकरी ने कहा, ‘‘इससे अल्पावधि में मूल्य निर्धारण और मांग प्रभावित होगी, लेकिन उद्योग के मूल तत्व मजबूत बने हुए हैं। भारत ने एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला, कुशल कार्यबल और गुणवत्ता निर्माण में क्षमता बढ़ाई है।’’ हालांकि, असकरी ने इस बात पर भी सहमति जताई कि वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों की तुलना में भारत अधिक बेहतर स्थिति में है। उन्होंने कहा, ‘‘अब ध्यान, दक्षता में सुधार, अनुपालन को मजबूत करने और किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिए बाजारों में विविधता लाने पर होना चाहिए। उद्योग ने पहले भी व्यवधानों को संभाला है, और यह एक और क्षण है जो स्मार्ट, निर्णायक कार्रवाई की मांग करता है।’’ डेलॉयट इंडिया के भागीदार और उपभोक्ता उद्योग के अगुवा, आनंद रामनाथन ने भी कहा कि चीन, वियतनाम और बांग्लादेश की तुलना में कम शुल्क अमेरिका को भारतीय कपड़ा निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करेंगे।''


इसके अलावा, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भारत के झींगा मछली, कालीन, चिकित्सा उपकरण और स्वर्ण आभूषण जैसे निर्यात क्षेत्रों पर अमेरिकी शुल्क का असर देखने को मिलेगा। हालांकि, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और फार्मा जैसे निर्यात क्षेत्र अमेरिका में अपने प्रतिस्पर्धी देशों के मुकाबले थोड़ी बेहतर स्थिति रहेंगे। हम आपको बता दें कि अमेरिका घरेलू झींगा मछली उद्योग का सबसे बड़ा बाजार है। अधिक शुल्क के कारण अब झींगा मछली, अमेरिकी बाजार में काफी कम प्रतिस्पर्धी रह जाएगी। अमेरिका ने पहले से ही भारतीय झींगा पर डंपिंग-रोधी और प्रतिपूरक शुल्क लगा रखा है। भारत के कुल झींगा निर्यात में से 40 प्रतिशत अमेरिका को भेजा जाता है। अमेरिकी बाजार में घरेलू निर्यातकों के प्रमुख प्रतिस्पर्धी इक्वाडोर और इंडोनेशिया हैं। हम आपको बता दें कि अमेरिका, भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का सबसे बड़ा बाजार भी है। वित्त वर्ष 2023-24 में लगभग 30 अरब डॉलर के कुल निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 33 प्रतिशत है। अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड, ब्रिटेन और इटली भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के लिए शीर्ष पांच निर्यात बाजार बनकर उभरे हैं। 


इसी तरह, अमेरिका भारत से कालीन का सबसे बड़ा आयातक है। वित्त वर्ष 2023-24 में यह करीब दो अरब डॉलर था। वित्त वर्ष 2023-2024 में, भारत ने वैश्विक स्तर पर 32.85 अरब डॉलर के रत्न और आभूषण निर्यात किए, जिसमें अमेरिका का हिस्सा 30.28 प्रतिशत (10 अरब डॉलर) था। वर्ष 2024 में, भारत ने 11.88 अरब डॉलर के हीरे, सोने और चांदी का निर्यात किया। इसमें 13.32 प्रतिशत का शुल्क अंतर है। देश तराशे और पॉलिश किए गए हीरे, जड़े हुए सोने के आभूषण, सादे सोने के आभूषण, प्रयोगशाला में तैयार किये गए हीरे और चांदी के आभूषणों सहित कई तरह के उत्पादों का निर्यात करता है। कामा ज्वेलरी के प्रबंध निदेशक, कोलिन शाह ने कहा कि ‘‘यह भारत के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि अमेरिका ने जवाबी शुल्क की घोषणा की है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘रत्न और आभूषण क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होगा क्योंकि केवल तराशे गये (यानी लूज) हीरे पर आयात शुल्क मौजूदा शून्य से 20 प्रतिशत और सोने के आभूषणों पर 5.5-7 प्रतिशत तक हो सकता है। अमेरिका भारत के सबसे बड़े आभूषण निर्यात बाजारों में से एक है, जिसकी हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत है।’’


दूसरी ओर, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री (एआईएमईडी) ने कहा कि अमेरिका को चिकित्सा उपकरण निर्यात पर 27 प्रतिशत जवाबी शुल्क लगाने से इस क्षेत्र की वृद्धि के लिए चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। अमेरिकी प्रशासन ने फार्मास्युटिकल्स को जवाबी शुल्क से छूट दी है। इस क्षेत्र में देश का अमेरिका को निर्यात लगभग नौ अरब डॉलर का रहा। खबरों के अनुसार, भारतीय कंपनियों की दवाओं ने वर्ष 2022 में अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को 219 अरब डॉलर की बचत और वर्ष 2013 से वर्ष 2022 के बीच कुल 1,300 अरब डॉलर की बचत प्रदान की, और भारतीय कंपनियों की जेनेरिक दवाओं से अगले पांच वर्षों में 1,300 अरब डॉलर की अतिरिक्त बचत होने की उम्मीद है। फिलहाल अमेरिका में भारतीय दवाइयों पर कोई आयात शुल्क नहीं है। पिछले वित्त वर्ष के अप्रैल-जनवरी के दौरान निर्यात 7.84 प्रतिशत बढ़कर 24.3 अरब डॉलर हो गया, जबकि एक साल पहले इसी अवधि में यह 22.53 अरब डॉलर था। पूरे वित्त वर्ष 2023-24 में यह 27.84 अरब डॉलर था।


इसके अलावा, भारतीय वाहन उद्योग को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जवाबी शुल्क की घोषणा से कोई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है, क्योंकि इसमें वाहन क्षेत्र शामिल नहीं हैं। वाहन विनिर्माताओं के संगठन सियाम ने कहा है कि भारत से अमेरिका को वाहन निर्यात काफी सीमित है, इसलिए उद्योग पर शुल्क का खास असर नहीं पड़ेगा। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) के महानिदेशक राजेश मेनन ने बयान में कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वाहन इस आदेश में शामिल नहीं हैं क्योंकि वे पहले से ही धारा 232 के 25 प्रतिशत शुल्क के अधीन हैं, जिसकी घोषणा राष्ट्रपति ट्रंप के 26 मार्च, 2025 के आदेश में की गई थी।


दूसरी ओर, जहां तक डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा घोषित जवाबी शुल्क का भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की बात है तो आपको बता दें कि इससे भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 0.50 प्रतिशत तक घटकर छह प्रतिशत रह सकती है। साथ ही इससे अमेरिका को देश के निर्यात में दो से तीन प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। विशेषज्ञों ने यह राय जताई है। वित्तीय सेवा कंपनी ईवाई के मुख्य नीति सलाहकार डी के श्रीवास्तव ने कहा, “भारत की जीडीपी वृद्धि पर अधिकतम प्रतिकूल प्रभाव 0.50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। हमारे पहले के अनुमान के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान 6.5 प्रतिशत था, जो बिना किसी प्रतिक्रिया के छह प्रतिशत तक कम हो सकता है।” वहीं स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की भारत में शोध प्रमुख अनुभूति सहाय ने कहा, ‘‘हमारे विचार से अमेरिका को भारतीय निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क वृद्धि (छूट प्राप्त वस्तुओं पर विचार करने के बाद) से भारत की जीडीपी पर 0.35-0.40 प्रतिशत का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। अनुभूति सहाय ने कहा, “हालांकि, अंतिम प्रभाव भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर निर्भर करेगा। इसके अलावा, प्रस्तावित शुल्क पर दोनों देशों में बातचीत पर भी अंतिम प्रभाव निर्भर करेगा।” उन्होंने कहा कि उच्च शुल्क दर लागू होने पर भारत के सकल घरेलू उत्पाद में हानि अवश्यंभावी है, लेकिन अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि अन्य देश भारत की तुलना में उच्च शुल्क दरों से प्रभावित हुए हैं या विशेष रूप से गैर-छूट वाले क्षेत्रों में अमेरिका के साथ बड़ा व्यापार अधिशेष चला रहे हैं।


हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास एवं कार्यालय ‘व्हाइट हाउस’ के दस्तावेज में भारत पर लगाए जाने वाले आयात शुल्क को 27 प्रतिशत से घटाकर 26 प्रतिशत कर दिया है। शुल्क नौ अप्रैल से लागू होंगे। इस संबंध में पूछे जाने पर उद्योग विशेषज्ञों ने कहा कि शुल्क के एक प्रतिशत कम होने का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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