Mamata पर राहुल की मेहरबानी से हो गई कुर्बानी, BJP के लिए बंगाल के हिमंता बिस्वा सरमा बनेंगे अधीर रंजन?

By अभिनय आकाश | Aug 01, 2024

साल 2007 की बात है प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को यूपीए की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया और दिल्ली के अशोका होटल में सोनिया गांधी ने डिनर का आयोजन किया। वैसे तो इस डिनर का मुख्य मकसद सांसदों की प्रतिभा पाटिल से मुलाकात कराना था। लेकिन उस वक्त कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रियरंजन दास मुंशी के साथ बैठे एक नेता का परिचय सोनिया गांधी ने ‘टाइगर ऑफ बंगाल’ के रूप में कराया। वो नाम है लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी। लेकिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद नेता ने खुली बगावत कर दी है। जिससे पार्टी में रार पैदा हो गई है। हद तो तब हो गई जब इस नेता ने मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष के काम करने के तरीके पर सवाल उठा दिए। वहीं राहुल गांधी पर ऐसा बयान दिया है जिसको लेकर बीजेपी जमकर मजे ले रही है। दिग्गज नेता के बागी होते ही बीजेपी ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। अक्सर ये देखा गया है कि गांधी परिवार को जबतक किसी नेता की जरूरत होती है तब तक वो उसे खूब पुचकारते हैं। लेकिन जैसे ही मतलब पूरा हो जाता है वैसे ही उसे किनारे लगा दिया जाता है। लोकसभा चुनाव में अपनी स्थिति सुधारकर भी नर्वस 99 का शिकार होने वाली कांग्रेस को फिलहाल अपना घर संभालने में दिक्कत आने लगी है। पार्टी के बड़े नेता ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व से साफ कह दिया है कि वो अपने साथियों के साथ सड़क पर उतरेंगे। आंदोलन की राह पर रहेंगे लेकिन अन्याय से समझौता नहीं करेंगे। 

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न तो राहुल सुन रहे न ही सोनिया

17वीं लोकसभा में कांग्रेस के सदन के नेता रहे अधीर रंजन चौधरी इस वक्त पार्टी में अलग थलग हो गए हैं। उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है। उसके बाद कांग्रेस आलाकमान पर अधीर रंजन का गुस्सा फूट पड़ा है। अधीर ने फेसबुक पर पोस्ट कर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर निशाना साधा। उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि वो किसी भी तरह से तृणमूल कांग्रेस से समझौता करने को तैयार नहीं है। अधीर रंजन उन मुखर राजनेताओं में रहे हैं जो खुलकर अपनी बात कहते रहे हैं। आज भी वो अपनी बात पर अड़ गए हैं। लेकिन उनकी बात न तो राहुल गांधी सुन रहे हैं और न ही सोनिया गांधी। हालांकि एक बार सोनिया गांधी ने उनसे मुलाकात जरूर की लेकिन उसके बाद से अधीर रंजन के बार बार गुहार लगाने के बावजूद सोनिया ने उनसे मुलाकात नहीं की। अधीर ने हमेशा से टीएमसी के साथ सीट शेयरिंग से लेकर किसी भी तरह से गठबंधन का विरोध किया। आखिर में उन्हें बहरामपुर से यूसूफ पठान से हार मिली। 

बंगाल की जिम्मेदारी से मुक्त 

दिल्ली में कांग्रेस ने प्रांतीय नेताओं की एक बैठक बुलाई थी। इस बैठक से ये साफ हो गया कि अधीर रंजन प्रांतीय अध्यक्ष पद से हटा दिए गए हैं। हालांकि अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत किसी भी नेता ने उन्हें पहले से कुछ नहीं बताया। अधीर रंजन चौधरी ने इस्तीफा तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही भेज दिया था, लेकिन उनको ये नहीं बताया गया था कि उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है या नहीं। 

बगावत की राह पर अधीर

अधीर के फेसबुक पोस्ट के बाद उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं। अधीर रंजन ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि हमारे लोग पिट रहे हैं, कार्यकर्ता दिन-रात जमीनी स्तर के हाथों पिट रहे हैं, उनके लिए हम नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा? सत्ताधारी जमीनी स्तर के लोग हर दिन हमारी पार्टी को तोड़ रहे हैं! 'इंडिया' गठबंधन में शामिल होकर उन्होंने हम पर अत्याचार करना बंद नहीं किया! तृणमूल इस राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी है, क्या उन्होंने हमारे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बख्शा है? आज भी हमारे कार्यकर्ता जेल में हैं, झूठे मुकदमों में दबे हुए हैं, हमारे पार्टी कार्यालय पर कब्जा कर लिया गया है, कोई रोक नहीं रहा! तो फिर मैं जमीनी स्तर के लोगों के खिलाफ कैसे चुप रह सकता हूं, अगर मैं ऐसा करता हूं तो यह मेरे सहयोगियों के साथ अन्याय होगा! मैं नहीं कर सकता। दिल्ली को उन कार्यकर्ताओं से भी बात करनी चाहिए जो दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं, सड़कों पर पार्टी के झंडे लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी राय भी जाननी चाहिए। उन्हें भी दिल्ली बुलाने की जरूरत है। मैं अपने उन सभी साथियों के साथ सड़कों पर रहूँगा, आंदोलन पथ पर रहूँगा, जिन्होंने अन्याय से समझौता करना नहीं सीखा है और न सीखेंगे।

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क्यों अधीर हुए रंजन

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद प्रदेश से कांग्रेस का डब्बा गोल हो गया। वहीं इसका ठीकड़ा अधीर रंजन के ऊपर फूटा। लेकिन अधीर रंजन के तेवर भी बगावती नजर आ रहे हैं। अधीर रंजन के समर्थकों का तर्क है कि सोमेन मित्रा के निधन के बाद उन्हें प्रदेश में कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी। पार्टी उस वक्त विधानसभा में दूसरे नंबर पर थी। लेकिन 2021 के  बंगाल विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने टीएमसी से अलग होकर चुनाव लड़ा लेकिन जमीन पर ऐसा दिखा नहीं। न तो कांग्रेस का कोई बड़ा नेता प्रदेश में प्रचार करने आया और न ही ममता सरकार के कार्यकाल को लेकर कोई टिप्पणी की गई। इसका असर ये होता दिखा कि बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के वोटर भी जमीन पर मजबूत ममता की ओर शिफ्ट हो गया। दावा ये भी किया जा रहा है कि अधीर रंजन अध्यक्ष पद पर अपने किसी करीबी को कुर्सी पर बिठाना चाहते थे। लेकिन पार्टी हाई कमान ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाना चाहती है। ऐसा व्यक्ति जो ममता बनर्जी की पार्टी के साथ भी बेहतर तालमेल कायम कर सके। कांग्रेस जहां एक तरफ ममता के साथ ही राज्य में अपने भविष्य को देख रही है। वहीं अधीर एकला चलो रे वाली नीति की पैरवी कर रहे हैं।  

क्या  बीजेपी से हो गई अधीर रंजन की बात? 

अधीर रंजन के बागी तेवर के बीच उनके बीजेपी में जाने की अटकलें भी तेज हो चली हैं। तृणमूल कांग्रेस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया है कि हो सकता है कि अधीर रंजन चौधरी ने पहले ही बीजेपी से बात कर रखा है। कुणाल घोष ने कहा कि ऐसा लगता है कि अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस से निलंबित होना चाहते हैं। वह उकसाने की कोशिश कर रहे हैं. हो सकता है कि उन्होंने पहले ही बीजेपी से बातचीत कर रखा हो। रिपबल्किन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रामदास अठावले ने अधीर रंजन को तो एनडीए में शामिल होने का खुला ऑफर दे दिया है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल से हारने की वजह से ही उन्हें नजरअंदाज और अपमानित किया जा रहा है। कांग्रेस के इस रवैये की वजह से कई लोग पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। मैं अधीर रंजन जी से गुजारिश करता हूं कि अगर कांग्रेस में उनका अपमान हो रहा है तो उन्हें कांग्रेस छोड़ देनी चाहिए। रामदास आठवले ने कहा कि मैं उन्हें एनडीए या मेरी पार्टी RPI में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं।

ममता बनर्जी को मनाने में लगे हैं राहुल

वैसे कांग्रेस को लेकर ममता बनर्जी का रूख फ्लिप-फ्लॉप वाला रहा है। पहले तो इंडिया गठबंधन की बैठकों में सीटों के बंटवारे पर जोर दिया। फिर अचानक कांग्रेस की हैसियत 2 सीटों से ज्यादा की नहीं बताई है। आलम ये हो गया कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा के बंगाल पहुंचने से पहले ही बंगाल में ममता बनर्जी ने गठबंधन तक करने से मना कर दिया। अधीर रंजन इस दौरान ममता बनर्जी पर तल्ख जरूर नजर आए। लेकिन आलाकमान यानी राहुल, सोनिया, खरगे की तरफ से उनको लेकर कोई तीखे बयान सामने नहीं आए। चुनावी नतीजे के बाद फिर से ममता पहले इंडिया ब्लॉक को बाहर से समर्थन और यू टर्न लेकर इंडिया ब्लॉक में ही रहने की बात करती नजर आईं। प्रोटेम स्पीकर पद को लेकर भी ममता ने अलग राह अपनाते हुए विपक्ष के समर्थन पत्र पर साइन नहीं किया। बाद में कहा जाता है कि राहुल गांधी और ममता बनर्जी की फोन पर बात भी हुई। लेकिन हालिया नीति आयोग की बैठक को लेकर एक बार फिर कांग्रेस और टीएमसी का स्टैंड बदला नजर आया। कांग्रेस समेत कई दलों ने इस बैठक का बहिष्कार किया तो टीएमसी नेता इस बैठक में पहुंच गई।


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