घर की सुख-समृद्धि के लिए एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजन और व्रत किया जाता है। 18 अप्रैल को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी एकादशी है। स्कंद पुराण में लिखा है कि वरुथिनी एकादशी के दिन किया गया व्रत सभी प्रकार के कष्ट दूर कर देता है। इस व्रत से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती हैं। भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजन की जाती है। वरुथिनी एकादशी का व्रत कठोर तपस्या के बराबर फल देता है, इसलिए इसे सबसे ज्यादा लोग करते हैं। एकादशी के व्रत के दिन चावल नहीं खाया जाता है। कहा जाता है कि चावल खाने से व्रत करने वाले के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसके साथ ही लहसुन, प्याज का भी सेवन नहीं करना चाहिए। इन सभी की गंद से भी मन में अशुद्धता होती है।
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क्या है एकादशी पर चावल नहीं खाने की कहानी
एकादशी के दिन चावल नहीं खाने को लेकर हमारे धार्मिक ग्रंथों में एक सच्ची कहानी प्रचलित हैं। इसमें कहा गया है कि माता के क्रोध से रक्षा के लिए महर्षि मेधा ने देह छोड़ दी थी, उनके शरीर के भाग धरती के अंदर समा गए। कालांतर में वही भाग जौ और चावल के रुप में जमीन से पैदा हुए। कहा गया है कि जब महर्षि की देह भूमि में समाई, उस दिन एकादशी थी। इस वजह से प्राचीन काल से ही यह परंपरा शुरु हुई, कि एकादशी के दिन चावल और जौ से बने भोज्य पदार्थ नहीं खाए जाते हैं। एकादशी के दिन चावल का सेवन महर्षि की देह के सेवन के बराबर माना गया है। एकादशी के दिन शरीर में पानी की मात्र जितनी कम रहती है, व्रत पूरा करने में उतनी ही ज्यादा सात्विकता रहेगी। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके भगवान विष्णु की भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वोत्तम व्रत है। चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसी वजह से व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं।
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ऐसे करें व्रत और पूजन
वरुथिनी एकादशी के व्रत और पूजन का विशेष महत्व माना गया है। वरुथिनि एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए। व्रती को स्नान करने के बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत करने का संकल्प लेकर पूजन शुरु करना चाहिए। व्रती अगर पूरे दिन निराहार नहीं रह सकते हैं, तो वे फलाहार कर सकते हैं। इस तिथि पर भगवान कृष्ण की भी विशेष पूजन की जाती हैं। भगवान विष्णु की पूजन विधि-विधान से करना चाहिए। इसके साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का जाप भी करना चाहिए। पूजन के बाद व्रत की कथा जरुर सुनना चाहिए। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी (19 अप्रैल, रविवार) को ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। इसके बाद व्रती भोजन करते हैं।
- कमल सिंघी