आखिर गांधीजी से क्यों खफा था नाथूराम गोडसे?, जानें बापू की हत्या से फांसी तक की कहानी

By अभिनय आकाश | May 19, 2022

30 जनवरी 1948 की वो तारीख जब 5 बजकर 16 मिनट पर बिरला भवन के पास हमेशा की तरह एक तरफ आभा और दूसरी तरफ मनुबेन का सहारा लिए महात्मा गांधी प्रार्थना के लिए निकले थे। मनुबेन को धक्का देकर नीचे गिराते हुए नाथूराम गोडसे ने नमस्ते बापू कहते हुए महात्मा के सीने में उतार दी तीन गोली। नाथूराम गोडसे को महात्मा गांधी की हत्या करने के कृत्य में रंगे हाथों पकड़ा गया था। ये घटना सैकड़ों लोगों के सामने घटी थी। अदालत कक्ष में स्वीकार करते हुए नाथूराम गोडसे ने कहा था कि मैंने अपने दोनों हाथों में साहस लिया और 30 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस के प्रार्थना-स्थल पर गांधीजी पर गोलियां चलाईं। वे आगे कहते हैं, "ऐसी कोई कानूनी मशीनरी नहीं थी जिसके द्वारा ऐसे अपराधी (गांधी) पर मुकदमा चलाया जा सके और इसलिए मैंने गांधीजी पर गोलियां चलाईं क्योंकि मेरे लिए यही एकमात्र काम था।" जिसके बाद 15 नवंबर को नाथूराम गो़डसे को फांसी दी गई थी।

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शुरुआती जीवन

नाथूराम विनायकराव गोडसे का जन्म एक महाराष्ट्रीयन चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उसके पिता विनायक वामनराव गोडसे एक डाक कर्मचारी थे। नाथूराम की मां का नाम लक्ष्मी था। जन्म के समय नाथूराम का नाम रामचंद्र रखा गया था। नाथूराम गोडसे का बचपन लड़कियों की तरह बीता था। नाथूराम गोडसे का असली नाम नथूराम है। एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण उसे ये नाम दिया गया थानाथूराम के घर में उनसे पहले जितने लड़के पैदा हुए, सभी की अकाल मौत हो जाती थी। इसे देखते हुए जब नथू पैदा हुए तो परिवार ने उन्हें लड़कियों की तरह पाला। उन्हें बकायदा नथ तक पहनाई गई थी। इसी नथ के कारण उनका नाम नथूराम पड़ गया था, जो आगे चलकर अंग्रेजी की स्पेलिंग के कारण नाथूराम हो गया था। गोडसे ने पांचवीं कक्षा के माध्यम से बारामती के स्थानीय स्कूल में पढ़ाई की। जिसके बाद पुणे में चाची के साथ रहने के लिए उसे भेज दिया गया ताकि वह एक अंग्रेजी भाषा के स्कूल में पढ़ सकें। गोडसे ने हाई स्कूल छोड़ दिया और हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिंदू महासभा के साथ एक कार्यकर्ता बन गए, हालांकि उनकी सदस्यता की सही तारीखें अनिश्चित हैं।

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महात्मा गांधी की हत्या

30 जनवरी 1948 को शाम 05:05 बजे, जब गांधी नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में एक प्रार्थना सभा के लिए गए। गोडसे भीड़ से बाहर निकलकर मंच की ओर बढ़े। उन्होंने गांधी के सीने में तीन गोलियां दागीं।  गांधी तुरंत गिर गए, अचानक घटी इस घटना से वहां खड़े लोग अवाक रह गए। 


ट्रायल और फांसी 

गोडसे को शिमला के पीटरहॉफ में पंजाब उच्च न्यायालय में मुकदमा चलाया गया था। 8 नवंबर 1949 को उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। हालाँकि, गांधी के दो बेटों, मणिलाल गांधी और रामदास गांधी द्वारा कम्यूटेशन की दलीलें दी गईं, लेकिन उन्हें भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, उप प्रधान मंत्री वल्लभभाई पटेल और गवर्नर-जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने ठुकरा दिया और गोडसे को अंबाला में फांसी दे दी गई। 


- अभिनय आकाश

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