वानरों को यूं व्याकुल व अस्त-व्यस्त मुद्रा में देख, श्री हनुमान जी का चिंतित होना स्वभाविक भी था। क्योंकि तात्विक दृष्टि से देखने पर समझ आती है कि श्रीहनुमान जी कोई साधारण वानर थोड़ी न थे, अपितु साक्षात योगीनाथ भगवान भोलेनाथ महातपस्वी थे। जिनके अवतार का उद्देश्य समस्त वानरों को योगी की महानतम् अवस्था को प्राप्त कराना था। भक्ति का मार्ग ऐसा नहीं कि इस पर बढ़ने के लिए सभी सहजता से ही तैयार हो जाएं। लाखों-करोड़ों में कोई एक, इस पावन पुनीत डगर पर कदम रख पाता है। और यह भी एक अजीब गणित कि वे लाखों-करोड़ों साधक जो ऐसा साहसिक निर्णय लेते हैं, उनमें से कोई विरला ही अपने उद्देश्य में सफल हो पाता है। इतिहास में निश्चित ही यह प्रथम बार था, कि इतनी बड़ी संख्या में वानर भालुओं के रूप में साधक आध्यात्म की सीढ़ियां चढ़ने को तत्पर हुए थे। इतिहास और वर्तमान के लिए यह संदेश था कि आने वाला समय निश्चित ही सर्वणिम काल कहलायेगा। क्योंकि समाज जब भी इस प्रकार से आध्यात्मिक स्तर पर जाग्रित होने लगे, तो मानना कि धरा पर युग पलटने के शुभ संकेत हो रहे हैं। श्रीहनुमान जी सभी सभी वानरों के पीछे-पीछे चल ही रहे थे। और श्रीहनुमान जी का पीछे-पीछे चलना, मानो प्रभु की इस लीला में छुपे वानरों के कल्याण के रहस्य को प्रक्ट किए जा रहा था। रहस्य यह कि क्योंकि श्रीराम जी ने क्योंकि मुद्रिका तो हनुमंत लाल जी को ही दी थी, तो सीधी-सी बात थी कि इस यात्रा के मुखिया तो निःसंदेह श्रीहनुमान जी ही थे। जिस कारण उन्हें निश्चित ही वानरों में सबसे आगे चलना चाहिए था। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी, कि श्रीहनुमान जी सबसे अग्रिम स्थान पर नहीं, अपितु सबसे पीछे चल रहे थे।
किसी ने भगवान श्रीराम जी से पूछा कि प्रभु ऐसा क्यों हुआ। श्रीहनुमान जी सबसे आगे क्यों नहीं चले। तो श्रीराम जी मुस्कुरा कर बोले कि संसार में घरों में बड़े बुर्जुगों और बच्चों में घटती घटनाओं को आप ध्यान से देखिए। घर में, रात में मान लीजिए कि रात्रि में दादा अपने पोते को कहता है, कि जाओ बेटा, बाहर दीवार पर हमारा एक वस्त्र टंगा रह गया है। तनिक वह उठाकर ले आयो। बच्चा हालांकि है तो आज्ञाकारी। लेकिन अंधेरा होने की वजह से वह थोड़ा घबरा रहा है। उसे भय हो रहा है, कि कहीं कोई भूत-प्रेत ही उसे न पकड़ ले। आंख की रौशनी कम होने के चलते, दादा तो क्योंकि वहाँ जाने में अस्मर्थ है, और बच्चा वहाँ जाने से भय मान रहा है। तो दादा क्या कहता है, पता है न? दादा अपने पोते को हौसला देते कहता है, कि बेटा बिल्कुल भी नहीं घबराना। कुछ भी नहीं है आगे। कोई खतरा नहीं है। कोई भूत वूत नहीं है। मैं हूँ न तुम्हारे साथ, घबराओ नहीं, मैं तुम्हारे पीछे ही खड़ा हूँ। तुम बस आगे बढ़ो और मेरा गमछा ले आओ। सज्जनों! हमें पता है, कि दादा के यह शब्द पोते के मन में, एक विश्वास का उदय करते हैं। और बच्चा अपने भीतर आत्म-विश्वास को महसूस कर आगे बढ़ जाता है। श्रीहनुमान जी भी कोई वानर थोड़ी न थे, अपितु आध्यात्मिक क्षेत्र के दादा थे। उन्हें ज्ञान था कि इस कठिन पथ पर कौन-सी कठिनाइयां आ सकती हैं। ऐसे में कोई वानर निराश अथवा घबरा कर, बिना बताये, वापिस भी लौट सकता है। और ऐसा मैं किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करना चाहता। इसलिए ही मैं सबके पीछे-पीछे हो चला। यह बताने के लिए कि हे मेरे वानर भाईयों! तुम सभी किंचित भी भयभीत मत होना। मैं आप सभी के पीछे ही आ रहा हूँ। यह देख सभी वानर बड़े चाव व निडर भाव से आगे बढ़ते जा रहे थे। उनके उत्साह के तो कहने ही क्या थे। लेकिन क्या करें! प्यास ने वानरों की सारी लय ही बिगाड़ कर रख दी थी। श्रीहनुमान जी ने जब देखा कि अब मात्र हौसला देने भर से वानर साथियों का मन नहीं टिकेगा। इन्हें कोई ठोस समाधान देना ही होगा। और ठोस समाधान एक ही था, कि सबको जल की प्राप्ति अनिवार्य भाव से चाहिए थी। अन्यथा सबके प्राण निकलते देर नहीं लगेगी। तब श्रीहनुमान जी ने उसी क्षण एक पहाड़ की चोटी पर चढ़ कर चारों ओर देखा। और जो उन्होंने देखा, वह आश्चर्य में डालने वाला था। श्री हनुमान जी को एक गुफा दिखाई देती है। उसके ऊपर चकवे, बगुले और हंस उड़ रहे हैं। और बहुत से पक्षी उसमें प्रवेश कर रहे हैं-
‘चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा।
भूमि बिबर एक कौतुक पेखा।
चक्रबाक बक हंस उढ़ाहीं।
बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहिं।।’
वानरों ने तो अभी कुछ देखा ही नहीं था। बस वे तो देख रहे थे, कि श्रीहनुमान जी पता नहीं, पर्वत की चोटी पर क्या कर रहे हैं। तब श्रीहनुमान जी सबको पर्वत की चोटी पर लिजा कर यह दृश्य दिखाते हैं। सभी यह देख आश्चर्य मानते हैं, कि भला हंस और बगुला एक ही स्थान पर कैसे रमण कर रहे हैं। यह तो प्रकृति के सिद्धातों के विपरीत है। रही बात वहां तो चकवा भी रमण कर रहा है। चकवा तो सदैव स्वाति नक्षत्र की बूंदे पीकर ही प्यास बुझाता है, फिर वह यहाँ कैसे? केवल इतना ही नहीं, उस गुफा में अन्य प्रकार के पक्षी भी प्रवेश कर रहे हैं। लेकिन तो महाआश्चर्य कि एक पक्षी भीतर दाखिल होते तो दिखाई दे रहे हैं, परंतु बाहर एक भी पक्षी नहीं निकल रहा था। वानरों ने जब एक साथ एक साथ इतने आश्चर्य देखे, तो उन्हें हौसला हुआ कि इतने पक्षियों का जमावड़ा कोई कोई संयोग नहीं है। वहाँ अवश्य ही कोई जल स्रोत है। यह देख सभी वानरों ने पहले तो सबसे पीछे चल रहे श्रीहनुमान जी को अपने आगे किया और अविलम्भ गुफा में प्रवेश कर गए-
‘गिरि ते उतरि पवनसुत आवा।
सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा।।
आगें कै हनुमंतहि लीन्हा।
पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा।।’
गुफा में सभी वानर दाखिल तो हो गए, लेकिन आगे उन्हें कौन मिलता है? यह जानने के लिए पढ़ें अगला अंक...(क्रमशः)...जय श्रीराम!
-सुखी भारती