अमेरिका ने भारत को नाटो देशों जैसा जो दर्जा दिया है उसके असल कारण क्या हैं ?

By संतोष पाठक | Jul 04, 2019

दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है और इस बदलती दुनिया में भारत का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। आतंकवाद से लेकर व्यापार तक, कच्चे तेल की कीमत से लेकर पर्यावरण के मसले तक हर मुद्दे पर हर मंच पर भारत की बात न केवल सुनी जाती है बल्कि इसे खासी तवज्जो भी दी जाती है। हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र, जी-20, शंघाई सहयोग संगठन समेत तमाम अंतर्राष्ट्रीय और वैश्विक मंचों पर भारत को मिल रहे सम्मान से यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि अब दुनिया की सोच भारत को लेकर बदल रही है।

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अमेरिकी सीनेट ने दिया भारत को नाटो देश जैसा दर्जा

 

अमेरिका ने भारत को अपने करीबी सहयोगी नाटो देशों जैसा दर्जा दे दिया है। अमेरिकी संसद ने इससे जुड़े एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है और अब इसी के साथ यह तय हो गया है कि आने वाले दिनों में भारत–अमेरिकी संबंध एक नई ऊंचाई छूते नजर आएंगे। खासतौर से रक्षा संबंधी मामलों में अब अमेरिका भारत के साथ नाटो के अपने सहयोगी देशों- इजरायल, फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर ही समझौते करेगा।

 

दरअसल, भारत के लगातार बढ़ते प्रभाव के बीच वित्तीय वर्ष 2020 के लिए नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन ऐक्ट को अमेरिकी सीनेट ने पिछले सप्ताह ही मंजूरी दी थी। अब इस विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव को भी मंजूरी मिल गई है। सीनेटर जॉन कॉर्निन और मार्क वॉर्नर की ओर से पेश किए गए विधेयक में कहा गया था कि हिंद महासागर में भारत के साथ मानवीय सहयोग, आतंक के खिलाफ संघर्ष, काउंटर-पाइरेसी और मैरीटाइम सिक्यॉरिटी पर काम करने की जरूरत है।

 

गौर करने वाली बात यह है कि इजरायल की तर्ज पर ही अब भारतीयों का एक समूह भी अमेरिकी शासन व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा है। अमेरिका में भारतीयों के समूह हिंदू अमेरिकी फाउंडेशन ने अमेरिकी संसद से यह विधेयक पारित हो जाने के बाद दोनों अमेरिकी सीनेटरों कॉर्निन और वॉर्नर का जबरदस्त अभिनंदन करके यह साबित कर दिया कि वहां मौजूद भारतीय भी भारत-अमेरिकी संबंधों को इजरायली नागरिकों के तर्ज पर ही मजबूत करने में लगे हैं।

 

लगातार मजबूत होते भारत-अमेरिकी संबंध

 

यह भारत और अमेरिका के बीच अभूतपूर्व संबंधो की शुरुआत है। वैसे आपको बता दें कि अमेरिका ने भारत को 2016 में बड़ा रक्षा साझीदार माना था। इस दर्जे का अर्थ है कि भारत उससे अधिक एडवांस और महत्वपूर्ण तकनीक वाले हथियारों की खरीद कर सकता है। अमेरिका के करीबी देशों की तरह ही भारत भी उससे हथियारों और तकनीक की खरीद कर सकता है। हालांकि इसकी शुरूआत उदारीकरण के दौर के साथ ही हो गई थी लेकिन उस समय अमेरिका भारत को बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं था। परमाणु परीक्षण के कुछ सालों बाद अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान परमाणु ऊर्जा और आतंकवाद जैसे मसलों पर दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई। मनमोहन सरकार के दौर में परमाणु सहयोग को लेकर दोनों देश और ज्यादा करीब आ गए। नरेंद्र मोदी ने पहले बराक ओबामा और बाद में डोनाल्ड ट्रंप के साथ मजबूत व्यक्तिगत संबंध बनाकर दुनिया को यह बता दिया कि अब भारत अमेरिका के बराबर न केवल आ चुका है बल्कि अमेरिका भी अब शीतयुद्ध के दौर को भुला कर भारत को बराबरी का दर्जा मन से देने को तैयार हो चुका है और अमेरिकी सीनेट का फैसला इसी की एक बानगी भर है।

 

भारत के लिए बड़ी चुनौती

  

और यहीं से भारत के लिए नई चुनौती भी खड़ी होती है या यूं कहें कि शुरू होती है। अमेरिका हो या दुनिया की कोई अन्य महाशक्ति, हर देश अपने हितों के आधार पर ही विदेश नीति का निर्धारण करता है। भारत को नाटो देश जैसे सहयोगी देश का दर्जा देने से निश्चित तौर पर अमेरिकी हितों को ज्यादा फायदा होगा। भारत को भी फायदा होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन अमेरिका से मजबूत संबंधों के नाम पर भारत दुनिया से कट नहीं सकता और कटना चाहिए भी नहीं।

 

हाल ही में अमेरिकी कोशिशों और दबावों के बावजूद भारत ने अमेरिका को साफ शब्दों में बता दिया कि भारत स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है और उसे किस देश के साथ कैसा संबंध रखना है यह तय करने का अधिकार सिर्फ उसे ही है। भारत ने यह साफ कर दिया कि रूस जैसे पुराने सहयोगी का साथ भारत इस तरह से बिल्कुल नहीं छोड़ सकता है, जिस तरह से अमेरिका चाहता है।

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नाटो ठीक है लेकिन भारत का दर्जा और सम्मान बड़ा है

 

नाटो देश जैसा दर्जा मिलना अच्छी बात है लेकिन भारत को इस बात का बखूबी अहसास है कि दुनिया के देशों के बीच उसका सम्मान और दर्जा इससे कहीं बड़ा है। विकासशील देश यह मानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत उनकी आवाज है वहीं दुनिया के कई देश आतंकवाद को लेकर भारतीय अभियान को शांति कायम करने के बड़े अभियान के तौर पर भी देख रहे हैं। भारत की बात इजरायल भी मानता है और अरब के मुस्लिम देश भी। अमेरिका और रूस दोनों ही भारत को भरोसे की नजर से देखते हैं। चीन जैसा कट्टर शत्रु भी भारत के बढ़ते प्रभाव को महसूस कर रहा है ऐसे में निश्चित तौर पर भारत अपने आप को सिर्फ नाटो के दायरे में बांध कर नहीं रखना चाहेगा। अमेरिका को भी यह समझना होगा कि भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका निभाने को तैयार है और इसलिए अब वक्त आ गया है कि दोस्ती निभाते हुए अमेरिका संयुक्त राष्ट्र में भारत को स्थायी सदस्य बनाने के लिए जोरदार और असरदार कोशिश करे।

 

-संतोष पाठक

 

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