चीन 2014 में पर्चेजिंग पॉवर के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। चीन की जीडीपी 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका की 66 प्रतिशत थी, जिससे यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई। लेकिन देखते ही देखते साल 2021 में चीन की जीडीपी 114 ट्रिलियन युआन तक पहुंच गई। इसे पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज से देखें तो कुल हिस्से का 18 प्रतिशत होता है। चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 12,500 अमेरिकी डॉलर के करीब पहुंच गया है। वक्त के साथ वैश्विक आर्थिक विकास में चीन का योगदान भी तेजी से बढ़ा है। ये आंकड़ा अब 30 प्रतिशत के करीब हो गया है। जिसकी वजह से विश्व की आर्थिक विकास का चीन एक बड़ा इंजन माना जाता है।
चार दशकों में हुआ तेजी से बदलाव
चीन की तेजी से होती आर्थिक तरक्की के पीछे की एक बड़ी वजह यहां होने वाला विदेशी निवेश था। तेज आर्थिक तरक्की के बदौलत चीन ने बीते कुछ दशकों में मुल्क की आधी से ज्यादा आबादी को गरीबी रेखा से बाहर निकाला है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार साल 1978 तक चीन में भारत से 26 फीसदी ज्यादा गरीब थे। लेकिन 1978 के बाद चीन में तेजी से बदलाव आया। देखते ही देखते वो दुनिया के अमीर मुल्कों में शुमार हो गया। विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि 1978 के बाद से चीन ने एकसाथ कई क्षेत्रों में सुधार के कार्य किए। चीन ने उत्पादन और उद्योग धंधों में विकास के लिए तीव्र गति से काम किया तो भूमि सुधार, शिक्षा व्यवस्था में विस्तार और जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी अपनी पॉलिसी में लगातार बदलाव किए।
व्यापार: चीन निस्संदेह एक आपूर्तिकर्ता और एक बाजार के रूप में व्यापार में एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बन गया है। चीन 2009 में माल का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक और 2013 में माल का सबसे बड़ा व्यापारिक देश बन गया। वैश्विक माल व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 2000 में 1.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 11.4 प्रतिशत हो गई। 186 देशों के विश्लेषण में,चीन 33 देशों के लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य और 65 के लिए आयात का सबसे बड़ा स्रोत है। सेवाओं के व्यापार में चीन का वैश्विक पैमाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि माल के क्षेत्र में है। 2017 में 227 बिलियन डॉलर के निर्यात के साथ चीन दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा सेवाओं का निर्यातक बन गया।
फर्म: कई चीनी फर्मों ने वैश्विक स्तर हासिल किया है। गौर करें कि 2018 में ग्लोबल फॉर्च्यून 500 में प्रमुखता से चीन और हांगकांग की 110 फर्में थीं, जो 126 के यूएस टैली की ओर बढ़ रही थीं। हालाँकि, चीन के बाहर अर्जित इन फर्मों के राजस्व का हिस्सा बढ़ा है, लेकिन इन वैश्विक फर्मों द्वारा भी विदेशों में 20 प्रतिशत से भी कम राजस्व अर्जित किया जाता है।
चीन में प्रति व्यक्ति आय
जहां एक तरफ भारत में आर्थिक सुधारों का सिलसिला 1991 में शुरू हुआ। उस दौरान चीनियों की प्रति व्यक्ति आय 331 डॉलर हो गई जबकि प्रति भारतीय की आय 309 डॉलर थी। साल 2019 में चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत से पांच गुना ज्यादा है। आंकड़ों के अनुसार चीन में इस समय पर कैपेटा इनकम 10,500 डॉलर के आसपास है तो भारत में 2191 डॉलर के करीब था।
मैन्युफैक्चरिंग की ताकत
शी जिनपिंग चीन की अर्थव्यवस्था को और प्रभावी बनाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग के मामले में सुपरपॉवर बनाना चाहते हैं। इसके लिए शी जिनपिंग डांग श्याओपिंग की नीतियों को ही आगे बढ़ा रहे हैं। इसमें अर्थव्वस्था को खोलना और आर्थिक सुधार जैसे कदम शामिल हैं। इसके लिए उसने विशेष आर्थिक क्षेत्र का निर्माण किया। विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए चीन ने दक्षिणी तटीय प्रांतों को चुना। चीन का विदेशी व्यापार 17,500 फीसदी बढ़ा है।
इन दिनों आर्थिक वृद्धि में कमी
हालांकि हालिया कुछ दिनों में चीन की अर्थव्यवस्था नीचे की ओर गई है। इस साल की दूसरी तिमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि की दर तेजी से नीचे आई है। करों में बेतहाशा वृद्धि और कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से लगे सख्त लॉकडाउन से चीन में आर्थिक गतिविधियों में भारी कमी आई है।