दिल्ली विधानसभा चुनावों में ''शाहीन बाग'' क्यों बन गया सबसे बड़ा मुद्दा

By दीपक कुमार त्यागी | Jan 31, 2020

देश की राजधानी दिल्ली का 'शाहीन बाग' पिछले कुछ दिनों से लगातार मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। दिल्ली में धरना प्रदर्शन के लिए मशहूर हो चुके जंतर मंतर को आजकल इसने पीछे छोड़ दिया है। कुछ ही दिनों में यह जंतर मंतर के बाद सबसे अधिक पहचाने जाने वाला धरना स्थल बन गया है। हाल के वर्षों में जिस तरह से देश में ओछी राजनीति के चलते सकारात्मक मुद्दों से विहीन व नकारात्मक मुद्दों से युक्त राजनैतिक माहौल हो गया है, वह समाज व देशहित के लिए बहुत चिंताजनक है। उसके चलते ही आज दिल्ली के विधानसभा चुनावों में 'शाहीन बाग' सबसे बड़ा ज्वंलत मुद्दा बन कर उभर गया है। जहां कुछ लोग, कुछ नेता व कुछ राजनीतिक दल 'शाहीन बाग' के प्रदर्शनकारियों के पक्ष में कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े हैं। वहीं कुछ लोग, कुछ नेता व कुछ राजनीतिक दल इसके विरोध में खुल कर खड़े होकर दिल्ली के वोटरों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। खैर कुछ भी हो इस बेहद ज्वंलत मसले पर राजनीतिक दलों के नेताओं व कुछ लोगों की आग उगलने वाली उग्र बयानबाजी के चलते, इस मुद्दे पर दिल्ली ही नहीं पूरे देश में पक्ष व विपक्ष की राजनीति धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच गयी है। किसी को भी धरने पर बैठे लोगों व धरने के चलते रोज-रोज जाम में फंस कर दिक्कत में फंसे आम लोगों की चिंता नहीं है।

 

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली को जोड़ने वाला बेहद व्यस्त मार्ग 13 ए पर कालिंदी कुंज के निकट पिछले 15 दिसंबर 2019 से एक माह से भी अधिक लंबे समय से धरना प्रदर्शन की वजह से राजनीतिक अखाड़े का मैदान बना हुआ है। रोजाना लाखों लोगों की भारी भीड़ के आवागमन के चलते हर समय बेहद व्यस्त रहने वाली यह सड़क, नोएडा को कालिंदी कुंज सड़क के द्वारा दिल्ली व हरियाणा के फरीदाबाद से जोड़ती है। यह सड़क बहुत दिनों से दिल्ली के 'शाहीन बाग' में गांधीवादी ढंग से धरना दे रही महिला प्रदर्शकारियों की वजह से पूर्ण रूप से बंद हैं। ये लोग सीएए व एनआरसी के विरोध में सड़क पर लगातार दिन-रात धरना देकर 'शाहीन बाग' में जमे बैठे हैं। सड़क को ही स्थाई रूप से धरना स्थल मान बैठे धरनारत प्रदर्शनकारियों की वजह से नोएडा, फरीदाबाद व दिल्ली के लाखों लोगों को रोजाना भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हैं, रोजाना करोड़ों रुपये का नुकसान अलग हो रहा है। लेकिन फिर भी उन लोगों की मुश्किलों पर केंद्र व दिल्ली सरकार कुछ नहीं सोच रही है, दोनों जिम्मेदार सरकारें केवल गेंद एक दूसरे के पाले में डालकर अपने कदमों से इतिश्री कर रही हैं। इस स्थिति के चलते आम जनता को रोजाना हो रही बेहद कठिनाइयों की किसी भी राजनीतिक दल को जरा भी चिंता नहीं है। किसी भी पक्ष को आम लोगों की दिक्कतों, देशहित व देश की एकता अखंडता की जरा भी चिंता नहीं है। ना ही आम जनमानस की मुश्किलों के बारे में गांधीवादी तरीकों से ये धरनारत लोग भी कुछ सोच रहे हैं। हालांकि स्वयं ये महिला प्रदर्शनकारी भी विपरीत मौसम व कड़ाके की ठंड में भी अपनी मांग मनवाने के लिए जिद्द पर अड़ कर मौसम की बेहद कठिन विपरीत परिस्थितियों में भी लगातार सड़क पर धरना दे रही हैं, जो उनके बुलंद हौसले को दर्शाता है।

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अब तो अधिकांश बुद्धिजीवी लोगों को भी लगने लगा है कि चुनावों में 'शाहीन बाग' पर राजनीति करने के लिए इस मसले को अभी तक जीवित रखा गया है, किसी भी राजनीतिक दल के द्वारा इस का कोई समाधान निकालने का प्रयास नहीं किया गया है। लेकिन यह तो आने वाला समय ही तय करेगा कि लंबा समय बीत जाने के बाद भी इस धरने में धरनारत लोगों की मांग का केंद्र सरकार कुछ समाधान करेगी या नहीं करेगी। दिल्ली सरकार इस धरने को खत्म करवाने की कुछ पहल धरातल पर करेगी या नहीं करेगी। लेकिन इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनावों में नेताओं के आशीर्वाद से 'शाहीन बाग' अब एक बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। विधानसभा चुनावों में भाग लेने वाले सभी राजनीतिक दल पक्ष-विपक्ष बनकर 'शाहीन बाग' पर हो रही सियासत में बुरी तरह से उलझते ही जा रहे हैं। हालात यह हो गये हैं कि दिल्ली चुनावों में लच्छेदार व भड़काऊ चुनावी भाषणों की शान बन गया है 'शाहीन बाग', इसने आम जनमानस के विभिन्न मुद्दों, समस्याओं व दिल्ली के विकास की मांग को बहुत पीछे धकेल दिया है। अब स्थिति यह हो गयी है कि केंद्र व राज्य सरकार अपने काम को जनता को बताने की जगह 'शाहीन बाग' धरने के नफा-नुकसान अपनी सुविधा व वोटरों के मिजाज के अनुसार गिनाने में व्यस्त है।

 

वैसे तो हमारे देश के हर चुनाव की यह खूबी है कि उसमें आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरत के मसले हमेशा बहुत पीछे छूट जाते हैं और पूरा का पूरा चुनाव बेवजह के मुद्दों पर केंद्रित होकर हिन्दू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद व पाकिस्तान आदि में अटक जाता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 21वीं सदी के भारत में वर्ष 2020 में देश की राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनावों के रणक्षेत्र में भी पढ़े-लिखे वोटरों के बीच भी राजनीतिक दलों की तरफ से जिस तरह-तरह से आग उगलने वाले बयान वीर रोज सामने आ रहे हैं और ये लोग कहीं ना कहीं वोटर की सोच पर हावी भी होते जा रहे हैं, यह हालात देशहित में चिंतनीय स्थिति है। हम सभी को इसके कारण पर गहन विचार करना होगा। स्थिति यह हो गयी है कि जो भाजपा पिछले कुछ वर्षों के हर चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करते हुए व केंद्र सरकार के कार्य गिनाते हुए नहीं थकती थी, आज दिल्ली के विधानसभा चुनावों में उसी भाजपा के मंत्री व वरिष्ठ नेता तक भी आम-आदमी के हितों की बात करने से कोसो दूर होकर अन्य पार्टियों की तरह ही अजीबोगरीब बयान देने में व्यस्त हैं। जैसे-जैसे दिल्ली विधानसभा के लिए वोटिंग का दिन निकट आता जा रहा है, वैसे ही सभी पार्टियों के चुनाव प्रचार में नकारात्मक बयानों की तेजी आ रही है, दिल्ली के सिंहासन को हासिल करने के संघर्ष में भाजपा व आप पार्टी के नेताओं के तेवर दिन-प्रतिदिन और भी तीखे व तल्ख होते जा रहे हैं। इस बयानबाजी में आम जनता व दिल्ली के विकास के मसले पीछे छूटते जा रहे हैं।

 

सभी दल चुनाव जीतने के लिए 'शाहीन बाग' धरने का अपने हित के अनुसार इस्तेमाल करने पर तुले हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता एक के बाद एक दिल्ली के 'शाहीन बाग' पर पुरजोर हमले करके वोटरों की बुद्धि पर हावी होने के लिए चुनावी बाण चला रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह, अध्यक्ष जेपी नड्डा का सारा प्रचार 'शाहीन बाग' के इर्दगिर्द आकर ठहर गया है। वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद प्रवेश वर्मा, दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी, कपिल मिश्रा के नश्तर की तरह चुभने वाले व्यंग्य बाणों के बाद, सबसे ताजा कड़ी भाजपा के राष्ट्रीय सचिव व दिल्ली भाजपा के सह प्रभारी तरुण चुघ है। उन्होंने ट्वीट करके हैशटैग के द्वारा वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि "देश के गद्दारों को गोली मारो...,गलत नहीं है। भारत की अखंडता को किसी को भी तोड़ने नहीं देंगे है। शाहीन बाग के मतलब शैतान बाग है। जैसे ISIS ने महिलाओं, बच्चों का इस्तेमाल किया है ये भी उसी मॉड्यूल को अपना रहे हैं। भारत में हाफ़िज़ सईद के विचारों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।" 

 

एक दूसरे ट्वीट में चुघ ने कहा है कि प्रदर्शनकारी मुख्य मार्ग को अवरुद्ध करके दिल्ली के लोगों के मन में डर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। हम ऐसा नहीं होने देंगे, (हम दिल्ली को जलने नहीं देंगे)।

 

उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है कि, हम दिल्ली को सीरिया नहीं बनने देंगे और न ही आईएसआईएस मॉड्यूल को यहां सफल होने देंगे जिसमें महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन आये दिन विवादित बयान देने वाले कोई इन देश के कर्ताधर्ताओं से पूछें अगर आपकी बात में कोई दम या सच्चाई है तो दिल्ली की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी किसकी है, दिल्ली पुलिस किसके मातहत है, क्यों दिल्ली पुलिस अभी तक हाथ पर हाथ रखकर बैठी है, क्यों ये लोग लंबे समय से सड़क जाम करके बैठे हैं, इसका कोई जवाब है क्या इनके पास या इस तरह के बयान केवल दिल्ली की सरकार पर जिम्मेदारी डालकर वोटरों को साधने का कारगर हथियार भर मात्र हैं।

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वैसे जबसे दिल्ली में चुनावों की घोषणा हुई है तब से ही कहीं ना कहीं भाजपा की तरफ से केंद्र सरकार के अपने काम की बात ना होकर केवल 'शाहीन बाग' की बात हो रही है। वही हाल आम-आदमी पार्टी का भी हो गया जो चुनाव की घोषणा होने से पूर्व तक तो बात विकास की करती थी, लेकिन जब से चुनाव घोषित हुए हैं उसकी भी सुई 'शाहीन बाग' पर आकर अटक गयी है, क्योंकि 'शाहीन बाग' के धरने में जिस तरह कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने जाना शुरू किया है उससे केजरीवाल एंड कम्पनी को अपने मुस्लिम वोटरों के बंटने की चिंता सताने लगी है।

 

खैर भारत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को मानने वाला देश है जिसमें चुनाव एक अनवरत जारी रहने वाली प्रक्रिया है, लेकिन अब देश की जनता को यह तय करना चाहिए कि वो उस पार्टी को वोट देगी जो जनहित व देशहित के लिए केवल विकास के मुद्दों पर बात करके उन पर धरातल पर अमल करेगा, ना कि बेवजह के मुद्दों में जनता को उलझाने का काम करेगा। देश की जनता को अब देशहित की ठेकेदारी नेताओं से वापस लेकर स्वयं के पास रखनी होगी, तब ही देश से ईमानदारी का ढोंग करने वाले, छद्म राष्ट्र भक्त व संविधान की आड़ में गैर संवैधानिक कार्य करके जनता के बीच राष्ट्रहित की नौटंकी करने वाले तथाकथित नेताओं से मुक्ति मिलेगी और भविष्य में देश कि व्यवस्थाओं में आमूलचूल सकारात्मक सुधार होगा। देशहित के लिए जनता को भी अपने वोट की शक्ति को समझना होगा और वास्तव में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश व ईमानदारी से कार्य करने वाले लोगों को चुनावी राजनीति में विजयी बनाना होगा, तब ही देश व लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत होगी और संविधान के द्वारा स्थापित व्यवस्था व मूल्यों की रक्षा होगी।

 

-दीपक कुमार त्यागी

(स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार)

 

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