By अभिनय आकाश | Aug 12, 2023
भारत कब आजाद हुआ, 15 अगस्त 1947 को। आजादी के बाद तिरंगा कहां फहराया गया? राजधानी दिल्ली में लाल किले की प्रचारी पर। अब थोड़ा मुश्किल सवाल- इस काम के लिए लाल किले को ही क्यों चुना गया? जवाब लंबा है इसलिए इसके लिए वर्तमान की ऊंगली पकड़कर आपको इतिहास की उन गलियों में लिए चलना होगा, जब आजादी एक ख्वाब सरीखा था। 12 मई 1639 की वो तारीख जब मुगल बादशाह शाहजहां ने लाल किले की नींव रखी थी। यहां से शुरू हुई एक अफसाने की जिसमें बादशाह था, साजिशें थी, क्रांति थी और था एक मुकदमा। अफसाना साल दर साल बदलता रहा। किरदार बदलते रहे। लेकिन मंच एक ही रहा, लाल किला। क्या है लाल किले का इतिहास, लाल किले पर लड़े गए आजाद हिंद फौज के मुकदमे की कहानी, तिरंगा लहराने के लिए इसे क्यों चुना गया। सबकुछ विस्तार से लाल किले की जुबानी ही जानेंगे।
मैं लाल किला हूं...
साढ़े तीन सौ साल में हिन्दुस्तान का वक़्त बदलता रहा और उस वक़्त की गवाही देता रहा लालकिला। कभी शाहजहां की सल्तनत थी आज लोकतंत्र के मंदिर की इस चौखट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खड़े हैं। मुगल बादशाह शाहजहां उन दिनों आगरा से अपनी सल्तनत चला रहे थे। लेकिन आगरा के गर्म मौसम और सैनिकों के किले में कमी को देखकर उन्हें लगा दिल्ली से राज चलाया जाए। इसलिए 1618 ई में इस किले की पहली ईंट रखी गई। इस लाल किले की बुनियाद खड़ी करने में ही 21 साल लग गए और फिर लाल किला बनने में लगे पूरे 9 साल। 1639 से 1648 तक चला था लाल किले के निर्माण का कार्य। करीब डेढ़ किलोमीटर के दायरे में फैले इस भुजाकर इमारत में आने के दो रास्ते रखे गए लाहौरी गेट और दिल्ली गेट। हिन्दुस्तान के मजदूरों के खून-पसीने इस लाल किले की बुनियाद में घुले-मिले हैं, उनकी मेहनत पर यह प्राचीर खड़ी है जहां से प्रधानमंत्री को सारा देश सुनता है। जिसके बाद से हिन्दुस्तान का वक्त बदलता रहा और उस वक्त की गवाही देता रहा लालकिला।
ब्रिटिश राज में लाल किला
दिल्ली में पहला किला 11वीं शताब्दी के दौरान तोमर वंश के राजा अनंगपाल द्वारा बनवाया गया था। महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराजा पृथ्वीराज चौहान के नाना थे। इस किले को लाल कोट के नाम से जाना जाता था। किले की सुरक्षा के लिए बुर्ज और गेट बनवाए थे। जिनके नाम गजनी गेट, सोहन गेट, रंजीत गेट। एएसआई के अनुसंधान के दौरान इन दरवाजो का पता चला था। बाद में पृथ्वीराज चौहान ने इसे फिर से बनवाया। लाल कोट से 24 किलोमीटर की दूरी पर मुगल बादशाह शाहजहां से लाल किले का निर्माण करवाया। अंग्रेजों ने लाल किले को एक राजमहल से आर्मी छावनी में तब्दील कर दिया। दीवान ए आम को सैनिकों के लिए अस्पताल में बदल दिया गया और दीवान ए खास को एक आवासीय भवन में तब्दील कर दिया गया। भारत की आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया। साल 2003 के दिसंबर तक लाल किले को भारतीय सेना के कैंप के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। बाद में इसकी देख रेख का जिम्मा भारतीय पुरातत्व विभाग के पास आ गया।
लाल किले पर लड़े गए आजाद हिंद फौज के मुकदमे की कहानी
बहादुर शाह जफर पर यहीं मुकदमा भी चला था। यहीं पर नवंबर 1945 में इण्डियन नेशनल आर्मी के तीन अफसरों का कोर्ट मार्शल किया गया था। हिन्दुस्तान की तारीख में लाल किला ट्रायल का अपना अलग ही स्थान है। लाल किला ट्रायल के नाम से प्रसिद्ध आजाद हिन्द फौज के ऐतिहासिक मुकदमे के दौरान उठे नारे लाल किले से आई आवाज- सहगल, दिल्लन, शहनवाज ने उस समय हिन्दुस्तान की आजादी के हक के लिए लड़ रहे लाखों नौजवानों को एक सूत्र में बांध दिया था। वकील भूलाभाई देसाई इस मुकदमे के दौरान जब लाल किले में बहस करते, तो सड़कों पर हजारों नौजवान नारे लगा रहे होते। पूरे देश में देशभक्ति का एक ज्वार सा उठता। मुकदमे के दौरान पूरे मुल्क में कौमियत का माहौल पैदा हो गया। लोग अपने मुल्क के लिए मर मिटने को तैयार हो गए। वहीं महात्मा गांधी के हत्या के आरोप का मुकदमा नाथूराम गोडसे पर लाल किला में ही चला था और न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई थी।
देश की संप्रभुता का प्रतीक
जिस लाल किसे से शाहजहां से लेकर बहादुर शाह जफर तक 15 बादशाह देश पर हुकूमत चलाते रहे। इसी लाल किले की प्राचीर से 1911 में जार्ज पंचम और महारामी मैरी ने भारत की जनता को संबोधित किया था। आजादी के बाद से अब तक प्रधानमंत्री देश को यहीं से संबोधित करते रहे हैं। 21 तोपों की सलामी के साथ देश की शान तिरंगा फहराते रहे और देश के भविष्य का एजेंडा भी बताते रहे।
बनाने में आया 1 करोड़ का खर्च
कहते हैं कि सन 1648 में लाल किले को बनाने में एक करोड़ का खर्च आया था। लाल किले की दीवारों और उसके चारों ओर घेरा बनाने पर ₹2100000 खर्च हुए थे। दीवान ए आम तैयार करने में 1400000 रुपए खर्च किए गए थे। जबकि ढाई लाख रुपए दीवान ए खास पर खर्च हुए थे। पब्लिक बिल्डिंग पर 2800000 रुपए की लागत लगी। रंग महल पर 5.5 लाख रुपए हयात बॉक्स्पार्क पर छह लाख और जनानखाना बनाने पर ₹700000 खर्च किए गए।
मेरा है लाल किला...जब लाल किले पर महिला ने ठोका अपना दावा
लाल दीवारों वाले इस किले ने क्या नहीं देखा। मुगलों की शान देखी, नादिरशाह का हमला देखा, अंग्रेजों का जुल्म देखा तो आजादी का उगता सूरज भी देखा। यह मुल्क के मुस्तकबिल की पहचान है। पूरे हिंदुस्तान की शान है। हर साल जश्न ए आजादी पर यही से तिरंगा झंडा बुलंद होता है। अब इस अजीम किले पर एक महिला ने मिल्कियत का दावा ठोक दिया है। नाम है- सुल्ताना बेगम। पश्चिम बंगाल में हावड़ा में ब्रिज के पास स्लम में रहने वाली सुल्ताना बेगम का दावा है कि वह बहादुर शाह जफर के पोते की विधवा है। इसलिए लाल किले पर उनका हक है। सुल्ताना बेगम बहादुर शाह जफर द्वितीय के पोते मोहम्मद बेदार बख्त की पत्नी है। बेदार बख्त की मृत्यु 22 मई 1980 को हो गई थी। सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में कहा था कि 1857 में लाल किले पर अंग्रेजों ने गैरकानूनी तरीके से जबरन कब्जा कर लिया था। तब कंपनी ने उनके दादा ससुर और आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया था। केंद्र सरकार सुल्ताना बेगम को ₹6000 की पेंशन देती है। सुल्ताना की नजर में उन्हें यह पेंशन मुगलिया खानदान की बहू साबित करने के लिए काफी है। याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि मेरा इतिहास का ज्ञान बेहद कमजोर है, लेकिन आपने दावा किया कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 18 57 में आपके साथ अन्याय किया तो इसमें 150 वर्षों की देरी क्यों? जस्टिस ने कहा कि आखिर आपके पूर्वज 150 साल तक कहां थे आपके पूर्वजों ने इसमें दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई। याचिका दायर करने की वजह भी स्पष्ट नहीं है। ऐसे में राष्ट्रीय धरोहर लाल किले पर आपका दावा खारिज किया जाता है।
लाल किला - एक विश्व धरोहर स्थल
यह ऐतिहासिक स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तत्वावधान में आता है। लाल किले को 2007 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। लाल किला मुगल रचनात्मकता का उदाहरण है। महल की वास्तुकला इस्लामी प्रोटोटाइप पर आधारित है। हालाँकि, प्रत्येक मंडप में मुगल इमारतों के विशिष्ट तत्व दिखाई देते हैं, जो फारसी, तिमुरीद और हिंदू परंपराओं के मिश्रण को दर्शाते हैं।
लाल किले पर ही क्यों फहराया जाता है तिरंगा
आजादी के बाद लाल किले से ब्रिटिश झंडा उतारकर तिरंगा फहराया गया। जिसे एक बार फिर लाल किले को सत्ता के केन्द्र के रूप में स्थापित करने के तौर पर देखा गया। राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है। यही वजह है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले से पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया।