Jan Gan Man: पंडित नेहरू ने ऐसा कौन-सा कानून बनाया था जिसके चलते Baba Ramdev और Patanjali Ayurved की मुश्किलें बढ़ गयी हैं?

By नीरज कुमार दुबे | Feb 28, 2024

उच्चतम न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद को रोगों के उपचार के लिए अपने उत्पादों का विज्ञापन करने से अगले आदेश तक रोकते हुए गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा है कि ‘‘पूरे देश के साथ छल किया गया है।’’ इसके साथ ही देश की शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद और इसके प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि अपने उत्पादों के विज्ञापन और उनकी औषधीय प्रभावकारिता के बारे में न्यायालय में दिए गए कंपनी के शपथपत्र का प्रथम दृष्टया उल्लंघन करने को लेकर उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए? हम आपको बता दें कि न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति ए. अमानुल्लाह की पीठ ने पतंजलि आयुर्वेद और इसके अधिकारियों को उपचार की किसी भी पद्धति के खिलाफ प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में किसी भी तरह का कोई बयान देने के खिलाफ आगाह भी किया है जैसा कि उनकी ओर से पिछले साल 21 नवंबर को न्यायालय में दाखिल किये गए हलफनामे में वचन दिया गया था।


अदालत के इस आदेश के बाद सोशल मीडिया पर एक वर्ग पतंजलि आयुर्वेद और योग गुरु बाबा रामदेव के पीछे पड़ गया है। तमाम तरह के दुष्प्रचार अभियान चलाये जा रहे हैं। आयुर्वेद और योग के खिलाफ भ्रम फैलाने वालों की तो जैसे लॉटरी लग गयी है इसलिए वह अदालत के आदेश को अपनी अपनी तरह से प्रस्तुत कर नया अभियान छेड़ रहे हैं। लेकिन इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने जो कुछ कहा है वह गौर करने लायक है। अदालत के आदेश के पीछे पंडित नेहरू का बनाया कौन-सा नियम कानून है इसको समझिये और जानिये कि कैसे आयुर्वेद और योग को नुकसान पहुँचाने का आधार वर्षों पहले ही तैयार कर लिया गया था।

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अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि अदालत ने Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act 1954 का हवाला देते हुए यह बात कही है। उन्होंने कहा कि नेहरू ने जो एक्ट बनाया था वो कहता है कि मधुमेह, नपुसंकता और कैंसर जैसी 54 बीमारियों को ठीक करने का आप दावा नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि नेहरू जी ने यह कानून इसलिए बनाया क्योंकि 1940 में अंग्रेजों ने जो कानून बनाया था उसके जरिये वह चाहते थे केवल एलोपैथी का प्रचार प्रसार हो। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद, योग, प्राणायाम, नेचुरोपैथी जैसी भारतीय चिकित्सा पद्धतियां नीचे दबी रहें और विदेशी चिकित्सा पद्धति ऊपर बनी रहे इसके लिए अंग्रेजों ने 1940 में जो कानून बनाया था उसी को कॉपी पेस्ट करके नेहरू ने 1954 में कानून बना दिया था। उन्होंने कहा कि इस कानून में कुछ बीमारियों के नाम लिखते हुए कहा गया है कि इन्हें ठीक करने का दावा कोई नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि कानून इसलिए बनाया गया था क्योंकि उस समय इन बीमारियों को इलाज एलोपैथी में था ही नहीं लेकिन उनका इलाज आयुर्वेद में था। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों को पता था कि महर्षि चरक और अन्य ने इन बीमारियों का इलाज लिखा हुआ है लेकिन उनके ऐलोपैथी में इन बीमारियों का इलाज नहीं था इसलिए उन्होंने सीधे-सीधे कानून बना दिया था कि उनके इलाज का कोई दावा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि नेहरू जी को पूरी भारतीयता से नफरत थी और भारतीय चिकित्सा पद्धति से भी नफरत थी इसलिए उन्होंने अंग्रेजों के कानून को सीधा-सीधा कॉपी कर लिया। उन्होंने कहा कि नेहरू को हर विदेशी चीज पसंद थी इसलिए उन्होंने ऐसा कानून बना दिया जिसके आधार पर पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाई गयी है।


अदालत ने अपने फैसले में क्या कहा है?


जहां तक अदालत के फैसले की बात है तो आपको बता दें कि पीठ ने केंद्र से पूछा कि कई बीमारियों के उपचार में पतंजलि आयुर्वेद की दवाइयों के प्रभावकारी होने संबंधी कंपनी के विज्ञापनों में कथित तौर पर गलत और भ्रामक दावे किये जाने को लेकर उसने उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की है। न्यायालय इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें आरोप लगाया गया है कि टीकाकरण और आधुनिक दवाइयों के खिलाफ रामदेव द्वारा एक दुष्प्रचार अभियान चलाया जा रहा है। कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने पिछले साल 21 नवंबर को शीर्ष अदालत को आश्वस्त किया था कि अब से कानून का किसी तरह से भी उल्लंघन नहीं किया जाएगा, खासतौर पर विज्ञापन जारी करने या उत्पादों की ‘ब्रांडिंग’ करने में। साथ ही, पतंजलि के उत्पादों के औषधीय प्रभाव का दावा करने वाला कोई बयान नहीं दिया जाएगा, ना ही इलाज की किसी भी पद्धति के खिलाफ तथ्य रहित बयान किसी भी रूप में मीडिया में जारी किया जाएगा। इसके बाद, शीर्ष अदालत ने कंपनी को कई रोगों के उपचार के लिए अपनी दवाइयों के बारे में विज्ञापनों में ‘झूठे’ और ‘गुमराह करने वाले’ दावे करने के खिलाफ आगाह किया था।


मंगलवार को सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने कहा कि अगले आदेश तक, पतंजलि आयुर्वेद को उन उत्पादों के विज्ञापन या ‘ब्रांडिंग’ से रोका जाए जो औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 में बीमारियों, विकारों या शर्तों के रूप में निर्दिष्ट हैं। पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के.एम. नटराज से पूछा कि उन्होंने क्या कार्रवाई की है। न्यायालय ने कहा, ‘‘दो साल तक आप इसका इंतजार करते हैं जबकि कानून खुद कहता है कि यह निषिद्ध है।’’ उन्होंने कहा कि केंद्र को तत्काल कुछ करना होगा। एएसजी ने कहा कि अधिनियम के तहत कार्रवाई करना राज्य सरकारों का काम है। पीठ ने शीर्ष अदालत के पिछले साल नवंबर के आदेश के बाद पतंजलि द्वारा प्रकाशित एक विज्ञापन पर भी आपत्ति जताई।


न्यायालय ने कहा, ‘‘आपने (पतंजलि) इस आदेश (नवंबर 2023) का उल्लंघन किया है। आपमें इतनी हिम्मत और साहस है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी यह विज्ञापन जारी किया... हम एक बहुत कड़ा आदेश पारित करने जा रहे हैं।’’ पीठ ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया, इस अदालत की यह राय है कि प्रतिवादी संख्या 5 (पतंजलि आयुर्वेद) 21 नवंबर, 2023 को पारित आदेश में दिए गए शपथपत्र का उल्लंघन कर रहा है।" न्यायालय ने कहा, ‘‘नोटिस जारी करें कि प्रतिवादी संख्या 5, इसके प्रबंध निदेशक के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए।’’ वहीं पतंजलि की ओर से पेश हुए वकील ने नोटिस का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। पीठ ने जवाब दाखिल करने के लिए समय देते हुए विषय की सुनवाई 19 मार्च के लिए तय की। पतंजलि के वकील ने पीठ को सूचित किया कि उन्होंने लगभग 40 करोड़ रुपये की लागत से एक अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित की है। पीठ ने कहा, ‘‘आपने अनुसंधान किया है, यह अच्छा है। एक प्रणाली है। हम सभी प्रणालियों का सम्मान करते हैं लेकिन हम दूसरों से अपेक्षा करते हैं कि वे भी दूसरों का सम्मान करें, जो एक विशेष प्रणाली का पालन कर रहे हैं।"

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