जब जीत का सेहरा मोदी को बाँधते हैं तो हार का ठीकरा उन पर क्यों नहीं ?

By मनोज झा | Dec 13, 2018

देश के तीन हिंदी भाषी राज्यों से बीजेपी का जाना क्या संकेत देता है? मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी के हाथ से सत्ता जाने के बाद अब कई लोग यही बोल रहे हैं कि मोदी का मैजिक खत्म हो चला है। वैसे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में शिवराज और रमन सिंह ने हार की जिम्मेदारी अपनी सिर पर ले ली...लेकिन क्या ये उनकी व्यक्तिगत हार थी। हम सभी ने टीवी पर देखा है इन चुनावों से पहले पार्टी को जब भी कहीं जीत मिलती थी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पूरे जोश में पार्टी मुख्यालय पहुंचते थे और अपनी जय-जयकार के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व का बखान करते थे। आज जब बीजेपी नेताओं से सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर एक साथ तीन प्रदेशों में उनकी हार कैसे हुई...तो हर किसी के पास रटा-रटाया जवाब है जी एंटी इनकैंबैंसी। रहने भी दो जनाब...अगर ये फार्मूला काम करता तो फिर शिवराज और रमन सिंह दोबारा जीत कर सत्ता में नहीं आते।

 

ये बात सही है कि मध्य प्रदेश में जीत और हार में सीटों का अंतर छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तरह नहीं है...लेकिन हार तो हार होती है। पहले किसानों की नाराजगी, फिर एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्णों का गुस्सा....अब बीजेपी के लोग भले ही इस बात को नहीं स्वीकारें....लेकिन इन दो मुद्दों को लेकर मध्य प्रदेश में बीजेपी को भारी नुकसान हुआ। लेकिन इसे बीजेपी नेताओं का अहंकार कहिए या कुछ और उन्हें लगने लगा था कि हमें कोई हरा ही नहीं सकता।

 

इसे भी पढ़ेंः मध्य प्रदेश में सवर्ण समाज की नाराजगी के चलते जीती बाजी हार गयी भाजपा

 

कांग्रेस ने जहां मध्य प्रदेश में शिवराज को गद्दी से उखाड़ फेंका...वहीं छत्तीसगढ़ में पार्टी ने बंपर जीत हासिल की। रमन सिंह सरकार के खिलाफ लोगों में इस कदर नाराजगी थी कि पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा। अगर बात राजस्थान की करें तो वहां बीजेपी की हार पहले से तय थी। वसुंधरा ने 5 साल शासन जरूर किया लेकिन कई मौके ऐसे आए जब पार्टी के अंदर से ही उनके खिलाफ आवाज उठी। किसानों का मुद्दा हो या फिर बेरोजगारी...वसुंधरा ने किसी पर ध्यान नहीं दिया। कई लोगों का मानना है कि राजस्थान में बीजेपी की हार की वजह वसुंधरा का अहंकार है।

 

अब जबकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान बीजेपी के हाथ से निकल चुका है....राजनीतिक गलियारों में एक ही चर्चा है...क्या इन चुनाव परिणामों का असर अगले साल लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। अगर राजनीतिक पंडितों की मानें तो इन तीन राज्यों में हार के बाद बीजेपी को लोकसभा चुनाव में करीब 30 से 35 सीटों का नुकसान हो सकता है। रही बात कांग्रेस की तो तीन राज्यों में मिली जीत अब उसके लिए संजीवनी का काम करेगी। एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली सफलता से न सिर्फ राहुल का राजनीतिक कद बढ़ा है बल्कि उन्हें विपक्षी दलों की नजर में एक परिपक्व नेता के रूप में भी स्थापित कर दिया है।

 

इसे भी पढ़ेंः मुलायम सिंह ने भाई शिवपाल यादव पर ही आजमा दिया चरखा दांव

 

कुछ समय पहले तक मोदी का गुणगान करने वाले एमएनएस के मुखिया राज ठाकरे भी राहुल की तारीफ करने से नहीं थक रहे। तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली कामयाबी पर राज ठाकरे ने तंज कसते हुए कहा कि ‘पप्पू’ अब परमपूज्य हो गया है। राज ठाकरे ने सीधे-सीधे कहा कि विधानसभा चुनावों में मोदी और अमित शाह के चलते बीजेपी की हार हुई। राज ठाकरे ने कहा कि मोदी और अमित शाह ने पिछले 4 साल से जैसा व्यवहार किया है उसके बाद तो ये होना ही था।

 

एमएनएस की छोड़िए...एनडीए के घटक दल शिवसेना ने भी विधानसभा चुनावों में मिली बीजेपी की हार पर चुटकी ली है। शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा ये कांग्रेस की जीत नहीं बल्कि लोगों का गुस्सा है। शिवसेना ने साफ-साफ कहा कि बीजेपी को आत्मचिंतन की जरूरत है। 

 

इसे भी पढ़ेंः नोटा का प्रयोग कर आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं आप ?

 

बताइए जो मोदी और अमित शाह कल तक भारत मुक्त कांग्रेस की बात कर रहे थे....आज उसी कांग्रेस ने उन्हें तीन हिंदी भाषी राज्यों से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब बीजेपी के बड़े नेता हार पर कोई भी सफाई दें...लेकिन इन चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया है कि आने वाला समय बीजेपी के लिए मुश्किलों से भरा हो सकता है। अभी पिछले हफ्ते बीजेपी से नाराज उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से बाहर हो गए... सूत्रों की मानें तो सीट बंटवारे को लेकर बिहार में एलजेपी भी बीजेपी से नाराज है और सांसद चिराग पासवान इसे लेकर अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं।

 

 

एक साथ तीन बड़े राज्यों में मिली हार ने बीजेपी को बैकफुट पर ला खड़ा किया है....वैसे बीजेपी समर्थकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में मुद्दे अलग होते हैं...और उन्हें अभी भी यही लगता है कि 2019 तक मोदी का मैजिक बरकरार रहेगा। लेकिन मेरा तो यही मानना है कि विधानसभा चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है....अगर पार्टी ने इन नतीजों से समय रहते सीख नहीं ली तो उसे लोकसभा चुनाव में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

 

-मनोज झा

(लेखक पूर्व पत्रकार हैं।)

प्रमुख खबरें

Bengaluru Metro Update: टीटागढ़ से पहली चालक रहित ट्रेन साल के अंत या 2025 की शुरुआत तक चलने की उम्मीद

Shruti Haasan का Adivi Sesh से हुआ मनमुटाव? फिल्म Dacoit में सह-कलाकार को ज्यादा स्क्रीन महत्व दिए जाने से नराज हुई एक्ट्रेस?

अनमोलप्रीत सिंह का कारनामा, 35 गेंदों में ठोका तूफानी शतक, यूसुफ पठान का ये रिकॉर्ड तोड़ा

राजस्थान: कोटा में बिहार का JEE उम्मीदवार फंदे से लटका मिला, इस साल की 17वीं आत्महत्या