By प्रभासाक्षी ब्यूरो | Jul 10, 2023
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में हुई उठापटक, राहुल गांधी मामले पर आये अदालती फैसले और पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गयी। इस दौरान प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का यह हश्र होना ही था क्योंकि शरद पवार ने सदैव परिवारवाद और एक व्यक्ति केंद्रित राजनीति को तवज्जो दी। जब 1999 में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी का गठन किया था तब उनके साथ कांग्रेस से पीए संगमा और तारिक अनवर भी आये थे। लेकिन कुछ समय बाद यह दोनों एनसीपी से अलग हो गये। स्वर्गीय संगमा ने अपनी खुद की पार्टी बना ली थी जिसे उनके बेटे चला रहे हैं तो दूसरी ओर अनवर कांग्रेस में लौट गये। शरद पवार हालिया घटनाक्रम के लिए भले अजित पवार पर निशाना साध रहे हों लेकिन उन्हें एक बार आत्ममंथन करना चाहिए कि क्यों उनके साथी उन्हें छोड़ कर जाते हैं?
रिटायर कब
प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने कहा है कि राजनीति में कोई रिटायर नहीं होता। उन्होंने इस बयान से शरद पवार का समर्थन करने के साथ ही अपनी राजनीतिक पारी चलते रहने का संकेत दिया है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि जब अन्य क्षेत्रों में सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित है तो राजनीति में क्यों नहीं है? नेताओं के मन में देश सेवा अनंतकाल तक करते रहने की इच्छा होना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसे में नई पीढ़ी को अवसर कब मिलेगा? यदि निश्चित आयु के बाद वरिष्ठ नेता सत्ता की कमान युवाओं को सौंप कर उनका मार्गदर्शन करें तो युवा ऊर्जा और अनुभव के समावेश से देश की सेवा ज्यादा अच्छी तरह से हो सकेगी।
राहुल को झटका
प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि मोदी उपनाम मामला पर आया अदालती फैसला सिर्फ कांग्रेस के लिए झटका नहीं है बल्कि यह सभी बड़बोले राजनेताओं के लिए चेतावनी भी है। किसी के परिवार, जाति या धर्म पर टिप्पणी करना समाज में अशांति का खतरा पैदा करता है इसलिए इससे बचा जाना चाहिए। भिन्न विचारधारा के बावजूद अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए सम्मानजनक भाषा का उपयोग करना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की सबसे अहम चीज है जिसे बरकरार रखा जाना चाहिए। साथ ही कांग्रेस को इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते समय सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि कोई भी अवांछित टिप्पणी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचायेगी।
बंगाल पंचायत चुनाव में हिंसा
प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में हिंसा की घटनाओं से राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल उठे हैं। बंगाल में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की हत्या, हिंसा और राज्यपाल के आदेशों की अवमानना की खबरें आम बात हो जाना चिंताजनक है। एक टीवी समाचार चैनल के स्टिंग में बंगाल में बम के जिस कारोबार को दिखाया गया है उससे सवाल उठता है कि क्या पुलिस प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है? अदालतें कई बार बंगाल में राजनीतिक हिंसा की स्थिति पर चिंता जता चुकी हैं लेकिन इसके बावजूद स्थिति में सुधार नहीं आना इस आरोप को बल प्रदान करता है कि हिंसक तत्वों को सत्ता का समर्थन प्राप्त है।