By सुरेश डुग्गर | Feb 19, 2019
पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले की बस पर हुए आत्मघाती हमले के बाद एक्शन में आई केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस लेने का बड़ा कदम उठाया। मीरवाईज मौलवी उमर फारूक के अलावा अब्दुल गनी भट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी और शब्बीर शाह के सुरक्षा कवर वापस ले लिए गए हैं। हालांकि, इस आदेश में पाक समर्थक अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी तथा जेकेएलएफ के यासीन मलिक का कोई जिक्र नहीं है। आइए जानते हैं कौन हैं यह अलगाववादी जिनकी सरकारी सुरक्षा सरकार ने वापस ले ली है।
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1. मीरवाईज मौलवी उमर फारुक
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के अपने संगठन का नाम अवामी एक्शन कमेटी है। अवामी एक्शन कमेटी का गठन उनके पिता मीरवाईज मौलवी फारुक ने किया था। मौलवी फारुक की 21 मई 1990 में आतंकियों ने हत्या की थी। पिता की मौत के बाद कश्मीर के मीरवाईज और अवामी एक्शन कमेटी के चेयरमैन बने मीरवाईज मौलवी उमर फारुक हर शुक्रवार को श्रीनगर की जामिया मस्जिद से खुतबा देते हैं। वह केंद्र सरकार के साथ कश्मीर मुद्दे पर बातचीत में हिस्सा ले चुके हैं। वह 1993 से हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमैन हैं। वह कट्टरपंथी आतंकियों के निशाने पर शुरू से रहे हैं। वर्ष 2014 में वह दुनिया के 500 सर्वाधिक प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की सूची में शामिल किए गए थे।
उन्हें अपने पिता की हत्या के बाद से ही सुरक्षा प्रदान की गयी थी। इस सुरक्षा को वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने जेड प्लस में बढ़ाया था। इसके तहत उन्हें सीआरपीएफ व राज्य पुलिस के सुरक्षाकर्मी प्रदान किए गए। इसके अलावा उन्हें बुलेट प्रूफ वाहन भी दिया गया। लेकिन वर्ष 2017 में जामिया मस्जिद में ईद से चंद दिन पहले एक डीएसपी को राष्ट्रविरोधी हिंसक तत्वों द्वारा मौत के घाट उतारे जाने के बाद उनकी सुरक्षा में कटौती की गई थी। मीरवाईज के साथ राज्य पुलिस के एक डीएसपी के नेतृत्व में सुरक्षा दस्ता तैनात रहता था। बाद में डीएसपी को हटाकर सुरक्षा की कमान एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को दी गई।
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2. प्रो. अब्दुल गनी बट
प्रो. अब्दुल गनी बट मूलत: शिक्षाविद् हैं और वह मुस्लिम कॉन्फ्रेंस कश्मीर के अध्यक्ष हैं। वह एकीकृत हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन भी रह चुके हैं और जब हुर्रियत दोफाड़ हुई तो वह मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के नेतृत्व वाली उदारवादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के साथ ही डटे रहे। वह हुर्रियत के प्रमुख प्रवक्ता भी रहे हैं। वह शुरू में जमायत ए इस्लामी के साथ ही थे और बाद में उन्होंने मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का जिम्मा संभाला। वह
उत्तरी कश्मीर के सोपोर के रहने वाले हैं और उनके एक भाई की हत्या आतंकियों ने कर दी थी। वह कश्मीर मसले पर हमेशा बातचीत के पक्षधर रहे हैं और केंद्र के साथ बातचीत में हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने हुर्रियत के बहिष्कार के बावजूद केंद्रीय वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा से मुलाकात की और कहा कि बातचीत करना जरूरी है। बट को सरकारी सुरक्षा के नाम पर चार सुरक्षाकर्मी प्रदान किए गए थे।
3. बिलाल गनी लोन
बिलाल गनी लोन पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन व पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन के भाई हैं। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का गठन बिलाल गनी के पिता अब्दुल गनी लोन ने 1978 में किया था। अब्दुल गनी लोन की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की संगठनात्मक कमान सज्जाद ने संभाली और बिलाल गनी लोन को हुर्रियत में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। लेकिन वर्ष 2002 के चुनावों में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस द्वारा प्राक्सी उम्मीदवार उतारे जाने से अलगाववादी खेमे में पैदा हुए विवाद से न सिर्फ हुर्रियत दोफाड़ हुई बल्कि पीपुल्स कॉन्फ्रेंस भी दो धड़ों बिलाल व सज्जाद में बंट गई। सज्जाद बाद में मुख्यधारा की सियासत में शामिल हो गए। बिलाल अलगाववादी खेमे में ही रहे। वह मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के करीबियों में एक हैं। बिलाल गनी लोन ने गत दिनों ही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अपने गुट का नाम बदल कर जम्मू कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट रखा है। उन्हें सरकारी सुरक्षा के नाम पर छह से आठ पुलिसकर्मियों की गार्द के अलावा एक सिक्योरिटी वाहन भी प्रदान किया गया है। मूलत: वह उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा के रहने वाले हैं, लेकिन बीते कई सालों से श्रीनगर के सन्नत नगर में सज्जाद गनी लोन के मकान से सटे मकान में रह रहे हैं।
4. शब्बीर शाह
शब्बीर शाह भी कश्मीर के पुराने अलगाववादियों में एक हैं। दक्षिण कश्मीर मे जिला अनंतनाग के डुरु शाहबाद के रहने वाले शब्बीर शाह ने 1960 के दशक के अंत में अलगाववादी संगठन यंगमैन लीग के साथ अपना सियासी सफर शुरू किया। वर्ष 1974 में उन्होंने फजल हक कुरैशी, नजीर वानी, अब्दुल मजीद पठान के साथ मिलकर पीपुल्स लीग बनाई। लेकिन जब पीपुल्स लीग का ऐलान हुआ तो वह खुद जेल में थे। कश्मीर के नेल्सन मंडेला कहलाने वाले शब्बीर शाह कभी बंदूक के भी समर्थक रहे हैं। वह 1989 तक कई बार पकड़े गए और जेल में बंद रहे। 1987 के विधानसभा चुनावों में भी वह शामिल रहे हैं। उनके एक भाई राज्य विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं। रियासत में आतंकवाद शुरू होने के बाद वह 29 अगस्त, 1989 को पकड़े गए और 1994 में रिहा हुए थे।
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जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक पीपुल्स लीग का बैनर थामे रखा और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा बन गए। कुछ ही समय बाद उन्होंने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से किनारा करते हुए जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी नामक संगठन बनाया। वह भी कश्मीर मसले के हल के लिए केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर नियुक्त किए गए वार्ताकारों से मिल चुके हैं। लेकिन मौजूदा वार्ताकार से उनकी कोई मुलाकात नहीं हुई हैं। फिलहाल, वह वर्ष 2016 में कश्मीर में हुए सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों और कश्मीर में आतंकी फंडिंग के सिलसिले में तिहाड़ जेल में बंद है। शब्बीर शाह की पत्नी डॉक्टर है और उनकी दो बेटियां हैं। शब्बीर शाह को चार से छह पुलिसकर्मियों पर आधारित सुरक्षा दस्ता प्रदान किया गया था। इसके अलावा एक वाहन भी दिया गया था।
5. हाशिम कुरैशी
हाशिम कुरैशी रियासत में खूनी आतंकवाद का इतिहास लिखने वाले संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। वह 1984 में तिहाड़ में फांसी पर लटकाए गए मकबूल बट के करीबी रहे हैं। उन्होंने ही 1971 में इंडियन एयरलाइस के विमान गंगा को अपने साथियों संग हाईजैक कर लाहौर में उतारा था। वर्ष 1994 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक लिबरेशन पार्टी का गठन किया। वह पाकिस्तान में काफी देर रहे और उसके बाद हालैंड चले गए। वर्ष 2000 के दौरान वह भारत आए। उनके चार बच्चे हैं।
एक बेटा जुनैद कुरैशी अक्सर संयुक्त राष्ट्र में अक्सर कश्मीर मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए नजर आता है। वह कश्मीर की आजादी की वकालत करते हुए कई बार पाकिस्तान की कश्मीर में नकारात्मक भूमिका को लेकर पाक परस्तों का निशाना बन चुका है। हाशिम कुरैशी का मानना है कि कश्मीर मसला सिर्फ शांतिपूर्ण बातचीत से ही हल हो सकता है। वह कहते हैं कि कश्मीर में जो बंदूक है, वह पाकिस्तान ने कश्मीरियों की बेहतरी के लिए नहीं अपने मकसद को हल करने के लिए दी है। इसे बंद किया जाना चाहिए।
-सुरेश डुग्गर