शिंजो आबे को गोली मारने की घटना से बीजिंग में क्यों जश्न, क्या है जापान और चीन की अदावत की कहानी

By अभिनय आकाश | Jul 08, 2022

जापान के सबसे लंबे काल तक प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने 2020 में खराब तबीयत और क्रानिक इलनेस की वजह से अपने पद से इस्तीफा दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे पर एक हमला हुआ। ये हमला एक छोटे से कस्बे नारा में हुआ। आबे को विमान से एक अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी सांस नहीं चल रही थी और उनकी हृदय गति रुक गयी थी। अस्पताल में बाद में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। जापान में घटित इस दुखद घटना पर दुनियाभर से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। वहीं चीन की तरफ से भी पूरे मामले को लेकर रिएक्शन आया है। चीन के सरकारी अखबार ग्‍लोबल टाइम्‍स ने इस मौके पर भी जापान के खिलाफ जहर उगला है और कहा कि हमले के बाद दक्षिणपंथी भड़क जाएंगे। आबे, दुनिया के वो नेता रहे हैं जिन्‍होंने हमेशा चीन को उसकी ही भाषा में जवाब दिया है। चीन के लोग इस घटना पर खुशी जता रहे हैं। वो हमलावर को हीरो करार दे रहे हैं। ऐसे में आपको चीन और जापान की दुश्मनी की दास्तां सुनाते हैं। इसके साथ ही शिंजो आबे से क्यों इतनी नफरत करते हैं चीनी इसके पीछे की कहानी भी बताते हैं।

द्वीपों का देश जापान 

प्रशांत महासागर के उत्तर पश्चचिमी हिस्से में बसा जापान एक द्विपीय देश है। करीब 6 हजार 852 द्वीप हैं यहां। इनमें से कुछ ही द्वीप हैं जहां आबादी रहती है। लगभग 430 द्वीप ही ऐसे हैं जहां पर लोग रहते हैं। इन 430 द्वीपों में सबसे प्रमुख पांच -होक्काइदो, होनशु, शिकोकु, क्युशू और ओकिनावा हैं। लेकिन चीन के लिए जापान इतना बड़ा नासूर कैसे बन गया। ये जानने के लिए आपको अतीत में झांकना होगा। 

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चीन और जापान का युद्ध

25 जुलाई 1894 में चीन और जापान के बीच पहला युद्ध हुआ था। कोरिया की चोसून सल्तनत को लेकर चीन के क्विंग राजवंश और जापान के राजा में तकरार इतनी बढ़ी की जंग हो गई। इस जंग में जापान ने चीन को धूल चटा दी। कोरिया को जापान ने चीन से छीन लिया। 43 साल बाद यानी 1937 में फिर दोनों मुल्क जंग के मैदान में आमने सामने आए। जब भी जापान और चीन के दुश्मनी भरे रिश्ते और इतिहास की बात होती है तो 1937 में दिसंबर में चीनी शहर नानजिंग में शुरू हुए क़त्लेआम को ज़रूर याद किया जाता है। जापानी सैनिकों ने नानजिंग शहर को अपने क़ब्ज़े में लेकर हत्या, रेप और लूट को अंजाम देना शुरू कर दिया था। यह क़त्लेआम 1937 में दिसंबर महीने में शुरू हुआ था और 1938 में मार्च महीने तक चला था। बड़ी संख्या में महिलाओं से रेप भी हुआ था। मार्को पोलो ब्रिज पर इन दोनों देशों की सेनाएं भिड़ गईं। उसके बाद दूसरे चीन-जापान युद्ध का ऐलान हो गया। जापान इस युद्ध में भी चीन पर भारी पड़ रहा था। लेकिन जापान ने एक गलती कर दी। उसने दिसंबर 1941 में पर्ल हार्बर पर अटैक करके 2 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिकों को मार दिया। इस हमले के बाद अमेरिका और रूस चीन को सपोर्ट करने लगे। महाशक्तियों के सामने जापान कमजोर पड़ने लगा।

अमेरिका की एंट्री और पर्ल हार्बर अटैक का बदला

पर्ल हार्बर पर हमले के बाद अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में एंट्री की और चार साल बाद बदला लेते हुए दो परमाणु बम गिरा दिए। जापान युद्ध भी हारा और उसके सरेंडर के साथ विश्व युद्ध का अंत भी हो गया। अब जापान एटम बम गिराने वाले अमेरिका का तो दोस्त है, लेकिन वो चीन की चालबाजी को कभी माफ नहीं कर पाया। जापान अपने तीन लाख लोगों के परमाणु हमले में मौत के लिए चीन के छेड़े गए युद्ध को जिम्मेदार मानता है। 29 जून 1960 अमेरिका और जापान के बीच एक संधि हुई जिसके मुताबिक जापान पर कोई विदेश हमला करता है तो अमेरिका जंग में उतर जाएगा। इसलिए अब तक ना तो चीन और ना ही नॉर्थ कोरिया जापान पर हमले की जुर्रत कर पाया है। 

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सेनकाकु द्वीप विवाद

ईस्ट चाइना सी जापान और चीन के बीच खराब संबंधों की दूसरी सबसे बड़ी वजह है। यहां सात वर्ग किलोमीटर में सेनकाकू नाम का एक द्वीप है। जिस पर चीन और जापान दोनों अपना दावा ठोंकते हैं। ये द्वीप न केवल शिपिंग लेन और फिशिंग इंडस्ट्री के लिहाज से बेशकीमती है। बल्कि यहां ईंधन का बहुत बड़ा भंडार भी है। इसलिए चीन किसी भी कीमत पर सेनकाकू पर कब्जा चाहता है। चीन के मुताबिक बहुत पुराने समय से यह आईलैंड उसके ताइवान प्रांत का हिस्सा है। 1895 में जापान ने चीन को हराकर ताइवान को अपने कब्जे में ले लिया। वर्ल्ड वॉर-2 के बाद 1951 में एक संधि के तहत चीन को ताइवान वापस मिल गया, ऐसे में सेनकाकु भी उसका हो गया। वहीं जापान इसे अपने ओकिनावा प्रांत का हिस्सा बताता है। इसके मुताबिक उसने 19 वीं सदी में 10 सालों तक इस आईलैंड का सर्वे किया और 1895 में इसको अपने देश में शामिल किया। 1945 में वर्ल्ड वॉर-2 में जापान की हार के बाद 1951 में हुई एक संधि से ओकिनावा पर अमेरिका का कब्जा हो गया। 1971 में अमेरिका ने जापान को ओकिनावा लौटाया, तब सेनकाकुस भी वापस जापान के पास आ गया, तब से ही इस पर जापान का अधिकार है। 

शिंजो आबे और चीन

शिंजो आबे का राजनीतिक बैकग्राउंड ही ऐसा रहा जो जापान के किसी भी मुद्दे पर कोई भी किस्म का समझौता नहीं करने वाले नेता के रूप में रही है। चीन की नजरों में भी आबे को उसके सबसे बड़े दुश्मन के रूप में देखा जाता था। आबे के कार्यकाल के दौरान पूर्वी चीन सागर में जापान अपने द्वीपों की सुरक्षा के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी भिड़ने को तैयार था। आबे का चीन के प्रति रवैया भी बेहद सख्त रहा है। ईस्ट एशिया में चीन की दादागिरी आबे ने मुखरता से मुखालफत की और अपनी पहचान दुनिया में चीन से सीधे भिड़ने का माद्दा रखने वाले राजनेता के रूप में करवाई। ये आबे ही थे जिनके कार्यकाल में जापान की नौसेना को सशक्त करने की दिशा में रक्षा बजट में इजाफा ही नहीं किया गया था बल्कि ताइवान की स्वतंत्रता को लेकर सीधी चुनौती भी दी गई थी। आबे ने स्व-शासित द्वीप पर चीन के अपने क्षेत्र के रूप में दावा और हमले की धमकी को लेकर एक भाषण में चेतावनी देते हुए किसी भी किस्म की सैन्य कार्रवाई आर्थिक आत्महत्या की ओर ले जाने वाला कदम बताया था।"

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 क्वाड की स्थापना में अहम रोल, चीन की दादागिरी को कड़ी चुनौती

29 दिसंबर 2004 को अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने घोषणा की कि भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका मिलकर एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाएंगे। जिसका उद्देश्य होगा सुनामी में पानी में फंसे लोगों को बचाने, राहत पहुंचाने, बेघर लोगों के पुर्नवास, बिजली कनेक्टिवीटी और अन्य सेवाओं को बहाल करने के लिए काम करना होगा। सुनामी राहत का ये मिशन खत्म हुआ तो इस गठबंधन का एक नया ढांचा क्वाड के रूप में सामने आया। जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को साथ लेकर जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका को समुद्र में अच्छे और मजबूत दोस्त बनाने चाहिए। 2006 में जब मनमोहन सिंह टोक्यो पहुंचे तो मामले को लेकर क्वाड की बैठक भी हुई और चीजों का विस्तार होना शुरू हुआ। क्वाड की स्थापना 2007 में हुई। वर्तंमान दौर में चीन को घेरने के लिए बनाया गया क्वाड संगठन आज चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए नाक में दम बना हुआ है। क्योंकि, इसके चलते उसकी दादागिरी को कड़ी चुनौती मिलने लगी है।

-अभिनय आकाश

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