क्यों आते हैं सपने ? क्या सपनों का वाकई हकीकत से कोई वास्ता होता है ?

By ललित गर्ग | May 24, 2021

स्वप्न का हमारे जीवन के साथ गहरा तादात्म्य है। स्वप्न क्यों आते हैं, उनका वास्तविक जीवन से क्या संबंध है, क्या स्वप्न सच के प्रतिबिम्ब होते हैं, क्या स्वप्न जीवन को प्रभावित करते हैं- ऐसे अनेक प्रश्न है जो बंद पलकों के पीछे की इस रोमांचक दुनिया से जुड़े हैं। इस ख्वाबों की दुनिया के रहस्य की पड़ताल सदियों से होती रही है। लेकिन अनेक अनुसंधानों और खोजों के बावजूद आज भी स्वप्न की यह मायाबी दुनिया रहस्य ही बनी हुई है।


सपने क्या हैं? क्या ये बात सही है कि जिसकी जैसी सोच होती है, उसे वैसे ही स्वप्न आते हैं। क्या इनका रिश्ता होता है अतीत, पिछले जन्म और भविष्य से? सपनों की अनगिनत कहानियां हैं और वैसे ही तो हैं रंग-बिरंगे स्वप्न। प्रसिद्ध दार्शनिक सिगमंड फ्रायड ने पहली बार स्वप्नों की प्रक्रिया, संरचना, रहस्यों और कारणों पर प्रकाश डाला। उनका कहना है कि जब हम नींद की स्थिति में होते हैं तो हमें सबसे ज्यादा सपने आते हैं। हर इंसान स्वप्न देखता है, निद्रा की अवस्था में उसके बिम्ब उभरते हैं। आंखें खुलते ही स्वप्न की सारी दुनिया बिखर जाते हैं। स्वप्न बहुत नाजुक होते हैं, तितली के परों सरीखे, वे गुलाब की पंखुरी पर ओस की एक मोती-सी बूंद जैसे होते हैं।


वास्तव में स्वप्न एक ऐसी स्थिति है, जहां हम जाग्रत नहीं बल्कि निद्रावस्था में होते हैं। यह निद्रावस्था रात्री के आखिरी प्रहर की होती है, जब हम गहरी नींद में होते हैं। हमारी आंखें बंद पलकों के पीछे ज्यादा सक्रिय होती हैं और तेजी से घूमती हैं। मस्तिष्क भी ज्यादा क्रियाशील होता है। इसीलिए हम कई बार देखे गए सपने को सुबह उठने के बाद भी हू ब हू याद रखते हैं, कई बार बस हल्की-सी एक झलक भर याद रह जाती है। जिससे पता चलता है, हमारी सपने में किसी से मुलाकात हुई थी, सपने में हम किसी के पास आए थे, सपने में हमें किसी स्थान-विशेष पर ले जाया गया था, किसी रहस्य से पर्दा उठाया गया था लेकिन यादों की यह डोर बहुत कमजोर और टूटी-फूटी-सी होती है। सपनों का वह समूचा जगत इसके साथ गहरे तक जुड़े लोगों के लिए तो मायने रखता है, लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो अपनी समझ और सक्रिय दिमाग की विवेचना शक्ति से इस सबको महज भ्रम साबित कर देते हैं।


लेकिन सपनों की दुनिया के बारे में, अभी अंतिम रूप से दुनिया कुछ नहीं कह सकती। इसकी एक वजह यह भी है कि तमाम वैज्ञानिकों ने इस बात का खुलासा किया है कि उन्हें उन महान आविष्कारों की जानकारी और समझ किसी दिन सोते हुए सपने में आयी और न सिर्फ यह सपना याद रहा बल्कि उन्होंने महान आविष्कार कर डाले। वैज्ञानिकों की ये बातें मनोवैज्ञानिकों की उन बातों को काटती हैं, जिसमें वो कहते हैं सपने कुछ नहीं हमारे दिन भर की गतिविधियों के ही नतीजे होते हैं। लेकिन क्या ऐसी कोई थ्योरी या ऐसा कोई आविष्कार भी हमारी दिन भर की दिमागी गतिविधि का हिस्सा हो सकता है, जिसका अभी तक दुनिया में अस्तित्व ही न हो?


कुछ लोग अपने सपनों को दूसरों से बता तो नहीं पाते मगर ऐसे लोग पुरजोर दावे से कहते हैं कि उनके दिलों दिमाग में एक परछाई की तरह कोई धुंधला दृश्य, कोई धुंधली तस्वीर घूम रही है, पर इससे ज्यादा कुछ पता नहीं चल पा रहा कि उसका मकसद क्या है? उसका कहना क्या है? दरअसल कुछ सपने बेहद निजी होते हैं, वह हमारे जिंदगी के अच्छे किसी खास मौके का टुकड़ा होते हैं या उसकी कुछ अच्छी काल्पनिक का विस्तार होते हैं, ऐसे सपने हमें याद रहते हैं। ऐसे सपने हमारे दिल के करीब होते हैं। कुछ सपने ऐसे होते हैं जो लुप्तप्राय जगह को खोजने को प्रेरित करते हैं, कुछ सपने आने वाले खतरे के प्रति सावधान करते हैं, कुछ सपने जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रहे व्यक्ति के लिये जीवनदान बन कर आते हैं। किसी को सपने में मृत्यु के दर्शन होते हैं तो किसी को खोयी वस्तु के संकेत मिल जाते हैं।


ऐसे सपनों को लेकर एक थ्योरी है। माना जाता है कि सहज मृत्यु की स्थिति में शरीर के अंदर मौजूद आत्मा किसी दूसरे शरीर को अपना घर बनाती है। लेकिन जब अकाल मौत होती है या हमारी नजर में वह प्राकृतिक मौत है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता, तब नए शरीर में प्रवेश करने वाली आत्मा भटकती रहती है और इस भटकन के दौरान वह भी यदाकदा मृत्यु से पहले के साथी संगियों और परिजनों के के साथ सपनों में संवाद करती है। कभी-कभी ऐसी मृतात्माएं ऐसे लोगों को परेशान करती है, या बदला लेती हैं जिन्होंने या तो अकाल मृत्यु में सहायता की है या उसके जीवन में तरह-तरह की बाधाएं, परेशानियां एवं हिंसक घटनाओं के द्वारा जीने को जटिल बना दिया है।


प्राचीन समय में सपनों के जरिए इलाज भी होता था, इसे ड्रीम थैरेपी कहा जाता था। सम्मोहन के जरिए ड्रीम थैरेपी की जाती थी। यूनान में चार सौ से भी ज्यादा मंदिरों में इस थैरेपी के इस्तेमाल के उदाहरण मिलते हैं। ईसा से दो शताब्दी पहले तक ग्रीक और रोमन साम्राज्य में उपचार के लिए ड्रीम थैरेपी बहुत आम थी। कुछ लोग अपने सपनों का साफतौर पर बयां नहीं कर पाते। लेकिन वे कुछ संकेत देते हैं जैसे उनके दिलों दिमाग में एक परछाई की तरह कोई धुंधला दृश्य, कोई धुंधली तस्वीर घूम रही है, पर इससे ज्यादा कुछ पता नहीं चल पा रहा कि उसका मकसद क्या है? उसका कहना क्या है? दरअसल कुछ सपने बेहद निजी होते हैं, वे हमारे जिंदगी के अच्छे किसी खास मौके का टुकड़ा होते हैं या उसकी कुछ अच्छी कल्पना का विस्तार होते हैं, ऐसे सपने हमें याद रहते हैं। ऐसे सपने हमारे दिल के करीब होते हैं।


लेकिन सपनों की दुनिया के बारे में, अभी अंतिम रूप से कोई निर्णायक स्थिति नहीं बनी है। विज्ञान मानता है कि सभी स्तनधारी और जानवर सपने देखते हैं, लेकिन हमारे पुराण कहते हैं कि सभी प्राणियों में एक मनुष्य ही ऐसा होता है, जो सपने देखता है। वैसे प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने भी कहा है कि केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि जानवर भी सपने देखते हैं। स्वप्न का जन्म कब, कैसे और कहां हुआ? इसकी जन्मतिथि एवं मिति क्या है? यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। लेकिन इतना तो बताना संभव है कि जिस दिन मानव ने सृष्टि पर चरणन्यास किया उसी समय से स्वप्नपरी के सुंदर दृश्यों एवं नाटक का श्रीगणेश हो गया। गर्भस्थ शिशु तो क्या पशु-पक्षी भी स्वप्नलोक में विचरण करते हैं तभी तो कहावत प्रसिद्ध है ‘सोयी बिल्ली तो चूहों के ही स्वप्न देखा करती है।’

इसे भी पढ़ें: विश्व परिवार दिवसः जीवन का सौन्दर्य एवं शक्ति है परिवार

तमाम वैज्ञानिकों ने इस बात का खुलासा किया है कि उन्हें उन महान आविष्कारों की जानकारी और समझ किसी दिन सोते हुए सपने में आयी और न सिर्फ यह सपना याद रहा बल्कि उन्होंने महान आविष्कार कर डाले। जबकि कतितय मनोवैज्ञानिक कहते हैं सपने कुछ नहीं हमारे दिन भर की गतिविधियों के ही नतीजे होते हैं। वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों के बीच विरोधाभास है। दुनिया और इसमें जीने वाले लोगों में स्वप्न की मान्यता का व्यापक प्रभाव है। इस प्रभाव एवं सपनों के संसार पर गहन अध्ययन समय-समय पर होते रहे हैं। हाल ही में जैन साध्वी डॉ. ललितरेखा ‘खाटू’ की एक पुस्तक ‘सफर सपनों का’ प्रकाशित होकर सामने आयी है। यह सपनों की दुनिया की विविध कोणों से विवेचना करती हुए एक महत्वपूर्ण पुस्तक हैं, इसे एक संकलन और शोध-प्रस्तुति भी कहा जा सकता है। इस पुस्तक में स्वप्नों की मान्यता का विशद प्रभाव को देखने को मिलता है, स्वप्न-फल की अनेक व्याख्यायें एवं जो धारणाएं प्रचलित हैं, उनको प्रस्तुति देते हुए लेखिका कहती है कि उन्हें अगर अनेकांत और स्याद्वाद की दृष्टि से देखा जाए तो सभी धारणाएं सत्य प्रतीत होती हैं। वस्तुत अनेकांतवाद से किसी मत का एकांततः खण्डन उचित नहीं है।

इसे भी पढ़ें: मातृ दिवसः माँ के चरणों में मिलता है स्वर्ग

सभी दृष्टियों में सत्यांश तो छिपा हुआ ही है, किन्तु इन प्रचलित धारणाओं के होने के बावजूद भी सभी दर्शनों में बिखरी सुंदर स्वप्नों की सौरभ सबको सहज ही आकृष्ट कर लेती है। अतः भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में बिखरे हुए एक-एक स्वप्न सुमनों को संजोकर स्वप्नमाला गूंथने का यह लघु प्रयास मानव की सोच को नया आयाम देता है। रॉबर्ट स्टीव का मानना है कि जीवित रहने के लिए स्वप्न अनिवार्य है। स्वप्नों के प्रति ग्रहणशीलता हमारे जीवन को सुखद बनाने में बेहतर सहायक सिद्ध हो सकती है। मनुष्य स्वप्नों के संसार में क्रीड़ाएं अधिक करता है। एक जगह बैठने की अपेक्षा भ्रमण ज्यादा करता है। हमारे चौंतीस प्रतिशत स्वप्न भ्रमण एवं सवारी करने से संबंधित होते हैं। ग्यारह प्रतिशत दृश्यों में किसी से बतियाते हैं। सात प्रतिशत स्वप्न दृश्यों में हम बैठे रहते हैं। हमारे छह प्रतिशत स्वप्न सामाजिक समारोह से संबंधित होते हैं। पांच प्रतिशत स्वप्न में हम खेलते-कूदते हैं। तीन प्रतिशत में शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य करते हैं तीन प्रतिशत स्वप्न में हम लड़ते-झगड़ते हैं। चौबीस प्रतिशत स्वप्नों को भोजन आदि बाकी कार्यों से जोड़ा जा सकता है। इंसान सपनों की दुनिया से हरदम प्रभावित रहा है। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, हर सपना कुछ कहता है। जरूरत इस बात की है कि स्वप्न के सार को समझा जाए।


- ललित गर्ग

प्रमुख खबरें

Winter में चाहिए गुलाब जैसा निखार! घर पर बनाएं टमाटर-चुकंदर का सूप, नोट करे रेसिपी

South Korea Plane Crash । मुआन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे पर फिसला विमान, अबतक 120 लोगों की मौत

गुलाबों के फूलों से बनाएं Homemade Moisturizer, सर्दियों में मिलेंगी खिली-खिली त्वचा

टेक्सास और मिसिसिपी में तूफान से दो लोगों की मौत, छह लोग घायल