By अभिनय आकाश | Aug 16, 2023
अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष ने मणिपुर हिंसा पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की। पीएम मोदी जवाब देने के लिए आए तो उन्होंने मिजोरम की एक घटना का जिक्र कर कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 5 मार्च 1966 को कांग्रेस ने मिजोरम में असहाय नागरिकों पर अपनी वायुसेना के माध्यम से हमला करवाया था। अब बीजेपी के मीडिया सेल के हेड अमित मालवीय ने कांग्रेस नेता राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी का नाम लेकर इस विवाद को और गहरा कर दिया। मालवीय ने दावा किया था कि पायलट के पिता राजेश पायलट ने 1966 में मिजोरम की राजधानी आइजोल पर बमबारी की थी। राजस्थान कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने इसका जोरदार पलटवार किया है। उन्होंने बीजेपी नेता के ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा कि आपके पास गलत तारीखें, गलत तथ्य हैं… हां, भारतीय वायु सेना के पायलट के रूप में मेरे दिवंगत पिता ने बम गिराए थे। लेकिन 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान यह तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान पर हुआ था, न कि जैसा कि आप दावा करते हैं, 5 मार्च 1966 को मिज़ोरम पर हुआ था।
पत्रकार के लेख और ट्वीट को मालवीय ने शेयर कर फिर उठाए सवाल
पायलट के पलटवार के बाद अमित मालवीय भी चुप कहां रहने वाले थे। उन्होंने 2011 में इंडियन एक्सप्रेस और शेखर गुप्ता के आर्टिकल को शेयर करते हुए फिर से कहा कि राजेश पायलट मिजोरम हवाई हमले में शामिल थे। उन्होंने कहा कि बाद में 2020 में शेखर ने वही ट्वीट किया। मालवीय ने कहा कि इंडियन एक्सप्रेस के 2011 के लेख का उपयोग सैकड़ों समाचार पोर्टलों द्वारा यह दिखाने के लिए किया गया है कि राजेश पायलट बमबारी में शामिल थे। इसके साथ ही उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के The buck starts here शीर्षक वाले लेख का स्क्रीनशार्ट साझा किया जिसमें मिजोरम की घटना का जिक्र किया गया था। इसमें लिखा था कि जब मिज़ो विद्रोहियों ने राजकोष पर अपना झंडा फहराया और असम राइफल्स बटालियन मुख्यालय को लूटने वाले थे, तब श्रीमती गांधी ने आइजोल पर बमबारी करने के लिए हवाई जहाज भेजे थे, जिसमें न केवल सैनिक बल्कि उनके परिवार भी रहते थे। उन बमबारी अभियानों के पायलटों में दो नाम शामिल थे जिन्हें हम सभी बाद में राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी के नाम से जानने लगे।
राजेश्वर प्रसाद से पायलट
1980 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजेश पायलट ने मन बनाया कि वो वायुसेना छोड़ कर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। जिसके बाद उन्होंने वायुसेना की नौकरी छोड़ दी।राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट की किताब "राजेश पायलट-अ बायोग्राफ़ी" के अनुसार राजेश सीधे इंदिरा गांधी के पास जा कर बोले कि वो तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के ख़िलाफ़ बागपत से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इंदिरा गाँधी ने कहा कि मैं आपको सलाह नहीं दूंगी कि आप राजनीति में आए। कांग्रेस (आई)की शुरू की लिस्ट में राजेश्वर प्रसाद का नाम नदारत था। तभी एक दिन फ़ोन की घंटी बजी। दूसरे छोर पर व्यक्ति ने कहा राजेश्वर प्रसाद हैं? राजेश किसी काम से बाहर गए हुए थे। उनकी पत्नी ने मना कर दिया। तभी सामने से फोन पर कहा गया कि उनसे कहिएगा कि उन्हें संजय गाँधी ने बुलाया है। कांग्रेस दफ़्तर पहुंचे तो संजय गांधी ने बताया कि आपके लिए इंदिराजी का संदेश है कि आपको भरतपुर से चुनाव लड़ना है। जब राजेश्वर प्रसाद भरत पुर पहुंचे तो वहां लोगों ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें तो कहा गया है कि कोई पायलट पर्चा दाखिल करने आ रहा है। बहुत समझाने की कोशिश की कि वो ही पायलट हैं, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। संजय गाँधी का फ़ोन आया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले कचहरी जाओ और अपना नाम राजेश्वर प्रसाद से बदलवा कर राजेश पायलट करवाओ। जिसके बाद पायलट ने भरतपुर की सीट से वहां के राजपरिवार की सदस्य महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता।
चंद्रास्वामी के खिलाफ बिठा दी थी जांच
भरतपुर में महारानी को हराने के बाद राजेश पायलट गुज्जर नेता के तौर पर स्थापित हो गए। 1984 में पायलट दौसा से चुनाव में उतरे और फिर हमेशा इस सीट से ही चुनाव लड़ते रहे। वो नरसिम्हा राव की सरकार में संचार मंत्री और आंतरिक सुरक्षा के मंत्री भी रहे। चंद्रास्वामी के खिलाफ जांच का आदेश देकर उन्होंने राजनीति में खलबली मचा दी थी। राव सरकार के दौरान चंद्रस्वामी का जलवा था। माना जाता है कि खुद नरसिंह राव से करीबी होने के कारण चंद्रास्वामी का दखल सरकार में भी था। बाद में इस जांच के कारण ही चंद्रास्वामी की गिरफ्तारी भी हुई।
सीताराम केसरी
कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र के लिए ही उन्होंने 1997 में तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सीताराम केसरी के खिलाफ चुनाव लड़ा। उनका कहना था कि पार्टी में लोकतंत्र बनाए रखना जरूरी है, इसीलिए मैं चुनाव लड़ रहा हूं। उनके साथ शरद पवार ने भी चुनाव लड़ा था, लेकिन ये दोनों ही चुनाव हार गए थे।
सोनिया गांधी के खिलाफ उतरे उम्मीदवार का दिया था साथ
वर्ष 2000 में जब सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना था, तब पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए जितेंद्र प्रसाद ने चुनाव लड़ा था। राजेश पायलट उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने जितेंद्र प्रसाद का खुलकर साथ दिया और उनके लिए चुनाव प्रचार भी किया था। उनका कहना था कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बनाए रखने के लिए चुनाव होता है तो कोई बुराई नहीं।