गलती से सही समय पर मानसून आ जाने के कारण समाज का भला चाहने वालों की चिंताए भीगने लगी। उन्होंने लोकतान्त्रिक शैली में चुनी गई, नगर परिषद् की अध्यक्ष से मिलकर निवेदन किया कि प्राचीन मंदिर के पडोस में बचे खुचे तालाब में कई महीने से पोलीथिन, पलास्टिक व पूजा सामग्री फेंकने से काफी कचरा इक्कठा हुआ है कृपया बारिशें ज़्यादा होने से पहले उसे साफ़ करवा दें। अध्यक्षजी ने उन्हें सही जवाब पकड़ा दिया, ‘यह ठीक है कि हम नए अध्यक्ष हैं, पहली बार बने हैं, लेकिन यह अब तक हमारे संज्ञान में क्यूं नहीं आया, आप लिखकर शिकायत करें तो उचित कार्रवाई करवाएंगे’। कुछ क्षण बाद ही समाज सेवकों के संज्ञान में यह सच प्रवेश कर गया कि नगर परिषद में फैले राजनीतिक कचरे के कारण अध्यक्ष महोदया के लिए तो अपना पद सुरक्षित रख पाना भी कड़वी खीर है। इसलिए उनके सम्माननीय संज्ञान को ज़्यादा तंग नहीं कर सकते, कुछ भी छोटा या मोटा करवाना हो तो श्रीपति प्रधान के संज्ञान में लाना पड़ेगा। अब समाज सेवक अध्यक्ष के पतिजी से मिलने का प्रयास करने लगे।
‘हमारे संज्ञान में क्यूं नहीं आया’ एक बेहद उत्तम, शालीन, लोकतान्त्रिक, सुरक्षित, सौम्य व सरल सवाल है। इसे आम तौर पर विशिष्ट जन मुस्कुराकर खूब इस्तेमाल करते हैं। उनके सचिवों को स्पष्ट निर्देश होते हैं कि सूचित किया जाए कि हमारे संज्ञान में नहीं आया है। यदि फिर भी ऐसा कुछ ध्यान देने योग्य हो रहा है या खतरनाक किया जा रहा है तो कहा जाए कि शीघ्र संज्ञान लेते हुए, दोषी के खिलाफ भारतीय दंड सहिंता के अंतर्गत, अविलम्ब उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। किसी को भी, चाहे कितनी पहुंच वाला हो बख्शा नहीं जाएगा। दिलचस्प यह है कि सब जानते हैं सख्त कार्रवाई कैसे की जाती है। कई बार लगता है किसी भी मामले का संज्ञान लेना या संज्ञान देना समय नष्ट करना है। पता नहीं कैसे, कई बार अखबार में छपी छोटी सी खबर के आधार पर भी उच्च या सर्वोच्च न्यायालय, संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर लेते हैं। अगर वक़्त की सही चाल के कारण, गलती से फैसला जल्दी हो भी जाता है तो फैसला लागू करने वाले परवाह नहीं करते क्यूंकि वास्तव में वह भी चाहते है कि फैसला उनके संज्ञान में न आए तो अच्छा।
‘हमारे संज्ञान में क्यूं नहीं आया’ को बेहद सरल शब्दों में कह सकते हैं, ‘हमें नहीं पता’ या थोड़े असरल दो शब्दों में, ‘पता नहीं'। ज़िन्दगी आराम से जीने के लिए यह फार्मूला बहुत कामयाब है और इसे प्रेरणास्वरूप साधारण नागरिकों, द्वारा भी खूब प्रयोग किया जाने लगा है। यह सुनिश्चित है जब कोई व्यक्ति नकली मुस्कराहट के साथ कहेगा, ‘हमारे संज्ञान में क्यूं नहीं आया’ तो दूसरा व्यक्ति उसे नादान, नासमझ मानकर माफ़ कर देगा क्यूंकि वास्तव में उसकी समझ में भी नहीं आएगा कि अब इनका क्या करूं। कुछ दिन बाद वह समझ जाता है कि कुछ न सुनना, कुछ न कहना और कुछ न देखना जीवन सूत्र है। खुद भी अपने आप से लगातार कहते रहें, ‘हमारे संज्ञान में नहीं आया है’ तो जीवन आराम से बीतने लगने लगता है।
- संतोष उत्सुक