By अंकित सिंह | May 27, 2020
देश में करोना वायरस का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। इस संकट के बीच राजनीतिक उबाल भी देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में उस दिन नया मोड़ आ गया जब प्रियंका गांधी ने प्रवासियों के लिए एक हजार बस देने का दावा किया लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने उसे मंजूरी नहीं दी। प्रियंका गांधी और उत्तर प्रदेश की सरकार और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। आरोप-प्रत्यारोप के बीच उस वक्त सभी को आश्चर्य तब हुआ जब प्रदेश की पूर्व सीएम और बसपा प्रमुख मायावती ने यूपी सरकार पर हल्ला बोलने की बजाय प्रियंका गांधी और कांग्रेस पर निशाना साधा। मायावती के इस रुख के बाद कांग्रेस लगातार यह कह रही है कि अब भाजपा को प्रदेश में नया प्रवक्ता मिल गया है।
इसे भी पढ़ें: बुआ-बबुआ कांग्रेस को यूपी में पाँव नहीं पसारने देंगे, भले प्रियंका कितने प्रयास कर लें
मायावती ने प्रवासी कामगारों की इस दुर्दशा का आरोप सीधे-सीधे कांग्रेस पर लगा दिया मायावती ने एक के बाद एक कांग्रेस के खिलाफ ताबड़तोड़ ट्वीट किए मायावती ने ट्वीट में लिखा कि बीएसपी का यह भी कहना है कि यदि कांग्रेस पार्टी के पास वास्तव में 1,000 बसें हैं तो उन्हें लखनऊ भेजने में कतई भी देरी नहीं करनी चाहिये, क्योंकि यहाँ भी श्रमिक प्रवासी लोग भारी संख्या में अपने घरों में जाने का काफी बेसबरी से इन्तज़ार कर रहें हैं। आज पूरे देश में कोरोना लॉकडाउन के कारण करोड़ों प्रवासी श्रमिकों की जो दुर्दशा दिख रही है उसकी असली कसूरवार कांग्रेस है क्योंकि आजादी के बाद इनके लम्बे शासनकाल के दौरान अगर रोजी-रोटी की सही व्यवस्था गाँव/शहरों में की होती तो इन्हें दूसरे राज्यों में क्यों पलायन करना पड़ता? वैसे ही वर्तमान में कांग्रेसी नेता द्वारा लाॅकडाउन त्रासदी के शिकार कुछ श्रमिकों के दुःख-दर्द बांटने सम्बंधी जो वीडियो दिखाया जा रहा है वह हमदर्दी वाला कम व नाटक ज्यादा लगता है। कांग्रेस अगर यह बताती कि उसने उनसे मिलते समय कितने लोगों की वास्तविक मदद की है तो यह बेहतर होता।
इस राजनीतिक हलचल के बीच लोगों के मन में एक सवाल उठने लगा। सवाल यह था कि मायावती भाजपा सरकार पर हमलावर होने की बजाय कांग्रेस पर क्यों हो रही है? क्या भाजपा के साथ बीएसपी की कोई खिचड़ी पक रही है? अगर अब तक की राजनीति देखें तो जब भी दो पार्टियां आपस में मिलने की कोशिश करती हैं तो इस तरीके की ही रुझान देखने को मिलते हैं। लेकिन फिलहाल भाजपा उत्तर प्रदेश में बसपा का समर्थन क्यों चाहेगी? खुद भाजपा 300 से ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में है और वर्तमान की परिस्थिति को देखकर ऐसा लगता नहीं है कि उसे किसी गठबंधन साथी की जरूरत है। पर ऐसा नहीं है कि बसपा के साथ भाजपा का कोई गठबंधन पहले नहीं हुआ है। परंतु वर्तमान के समय में इसकी कोई जरूरत नहीं है। भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 से ज्यादा सीटें जीतकर यह बता दिया कि उत्तर प्रदेश में अब उसकी टक्कर का कोई नहीं है। अब सवाल फिर से वही उठता है कि अगर कोई खिचड़ी नहीं पक रही तो मायावती कांग्रेस पर इतनी हमलावर क्यों है?
इसे भी पढ़ें: महामारी के प्रकोप के बीच ही उत्तर प्रदेश में भाजपा ने शुरू की पंचायत चुनावों की तैयारी
राजनीतिक समझ रखने वाले मायावती के इस राजनीतिक चाल का अलग मतलब निकाल रहे है। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मजबूत होती है तो इससे सीधा नुकसान बसपा और समाजवादी पार्टी को होगा। मायावती कतई नहीं चाहती कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मजबूत हो। मायावती और प्रियंका गांधी के बीच तल्खी उस वक्त बढ़ गई थी जब प्रियंका ने दलित नेता चंद्रशेखर आजाद का समर्थन किया था। उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा तभी अस्तित्व में आई जब कांग्रेस कमजोर हुई। कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक जहां समाजवादी पार्टी की तरफ शिफ्ट हुआ तो वही दलित वोट बैंक को पर मायावती ने बाजी मार ली। अब अगर कांग्रेस मजबूत होती है तो कहीं ना कहीं यह वोट बैंक एक बार फिर से उसके पास वापस जा सकते हैं। लेकिन अब एक सवाल और उठता है कि कांग्रेस पर मायावती तो हमलावर है लेकिन समाजवादी पार्टी चुप क्यों है?
इस सवाल का जवाब यह है कि प्रवासी मजदूरों में सबसे ज्यादा संख्या दलितों की है। अगर दलितों के दिल में कांग्रेस के लिए एक बार फिर से जगह बन गई तो मायावती को इसका सीधा सीधा नुकसान होगा। इसी कारण मायावती प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को लेकर कांग्रेस और उसकी नीतियों को जिम्मेदार बता रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा, दोनों ने ही अतीत में कांग्रेस के साथ दोस्ती की। दोस्ती का प्रयोग असफल रहा। दोनों ही दलों को कांग्रेस से जिस तरह की उम्मीद थी वैसा कुछ हासिल नहीं हो पाया। 1996 में बसपा ने कांग्रेस से दोस्ती कर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बसपा की सीट में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई लेकिन कांग्रेस को फायदा हो गया। उस समय बसपा के सर्वे सर्वा कांशीराम हुआ करते थे। कांशीराम ने सार्वजनिक रूप से ऐलान कर दिया कि अब उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ कभी गठबंधन नहीं करेगी। बसपा को लगता था कि उनका वोट बैंक तो कांग्रेस को ट्रांसफर हुआ पर कांग्रेस का वोट बैंक उनकी पार्टी को नहीं मिला।
समाजवादी पार्टी को भी कांग्रेस के साथ दोस्ती का नुकसान झेलना पड़ा। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने गठबंधन के साथ विधानसभा चुनाव लड़ा था। यह गठबंधन समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव की मर्जी के खिलाफ हुआ था। मुलायम सिंह यादव की राजनीति हमेशा कांग्रेस विरोध की रही है। वह कभी नहीं चाहते थे कि समाजवादी पार्टी के कारण कांग्रेस का अस्तित्व उत्तर प्रदेश में बढ़े। इसी कारण वह इस गठबंधन का विरोध करते रहे। गठबंधन हुआ अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने जमकर प्रचार किया लेकिन विधानसभा चुनाव का नतीजा गठबंधन के पक्ष में नहीं रहा। इसके बाद यह दोस्ती के हाथ टूट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा-सपा का गठबंधन हुआ। हर मुमकिन कोशिश की गई कि इस गठबंधन से कांग्रेस को दूर रखा जाए और यही हुआ भी। परंतु परिणाम में ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिला।
- अंकित सिंह