उपचुनाव में Conservatives की करारी हार के क्या प्रमुख कारण रहे? क्यों British PM Rishi Sunak की कुर्सी पर मँडरा रहा है खतरा?

By नीरज कुमार दुबे | Jul 22, 2023

ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को लगते हिचकोले, बढ़ती महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी आदि से बढ़ी जनता की नाराजगी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को बहुत भारी पड़ी है। ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने के बाद से हालांकि ऋषि सुनक की वैश्विक लोकप्रियता में इजाफा हुआ है लेकिन ब्रिटेन में तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजरवेटिव पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। ऐसे में सवाल खड़ा हुआ है कि क्या सुनक की नीतियां जनता को पसंद नहीं आ रहीं ? सवाल यह भी उठा है कि क्या कंजरवेटिव पार्टी का अंदरूनी झगड़ा इस पार्टी को आगामी चुनाव में सत्ता से बाहर करा देगा ? इसके अलावा कंजरवेटिव पार्टी के तमाम नेताओं पर हाल में जिस प्रकार के गंभीर आरोप लगे हैं उससे विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। देखा जाये तो उपचुनाव में कंजरवेटिव पार्टी एकजुट नजर नहीं आई जबकि विपक्षी लेबर पार्टी ने पूरी तरह मिलकर चुनाव लड़ा और तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में दो में जीत दर्ज कर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर ली है।


हम आपको बता दें कि कंजरवेटिव पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के इस्तीफे से खाली हुई उक्सब्रिज और साउथ रुइस्लिप सीट पर जीत का सिलसिला बरकरार रखने में तो कामयाब रही है लेकिन दो अन्य सीटों पर उसे करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस उपचुनाव को अर्थव्यवस्था को संभालने के मामले में ऋषि सुनक के प्रदर्शन और अगले साल की दूसरी छमाही में प्रस्तावित आम चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने की उनकी संभावनाओं के रिपोर्ट कार्ड के तौर पर देखा जा रहा था। खुद ऋषि सुनक इन चुनावों को लेकर बेहद गंभीर थे लेकिन अब उपचुनाव परिणाम के बाद उनकी कुर्सी पर खतरा मंडराने लगा है। हालांकि ऐसी संभावना कम ही है कि पार्टी के भीतर से उनके नेतृत्व को चुनौती मिले लेकिन जनता के बीच बढ़ रही नाराजगी को भुनाने के लिए विपक्षी लेबर पार्टी अपने प्रयास बढ़ायेगी और संसद तथा सड़क पर सुनक सरकार के विरोध में अभियान चलायेगी।

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जहां तक उपचुनाव परिणाम की बात है तो हम आपको बता दें कि कंजरवेटिव पार्टी के उम्मीदवार स्टीव टकवेल ने उक्सब्रिज और साउथ रुइस्लिप पर मामूली अंतर से जीत दर्ज की। यह सीट कोविड-19 की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान 10 डाउनिंग स्ट्रीट (ब्रिटेन का प्रधानमंत्री आवास) में पार्टियों के आयोजन को लेकर जांच का सामना कर रहे जॉनसन के पिछले महीने इस्तीफा देने के कारण खाली हुई थी। सेल्बी और आइंस्टी सीट पर हुए उपचुनाव में विपक्षी दल लेबर पार्टी ने 20 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल की। बोरिस जॉनसन के करीबी निगेल एडम्स के इस्तीफा देने के कारण इस सीट पर उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ी थी। इस सीट पर कंजरवेटिव पार्टी की हार इसलिए चौंकाती है क्योंकि कुछ समय पहले तक यह उसका गढ़ माना जाता था।


उपचुनाव परिणाम के बाद लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक जीत है, जो दर्शाती है कि लोग नेतृत्व के लिए लेबर पार्टी की तरफ देख रहे हैं। वे लेबर पार्टी को एक ऐसी बदली हुई पार्टी के रूप में देख रहे हैं, जिसका पूरा ध्यान एक व्यावहारिक कार्ययोजना के साथ कामकाजी लोगों की महत्वकांक्षाओं को पूरा करने पर है।” दूसरी ओर, सेल्बी और आइंस्टी में लेबर पार्टी की जीत के साथ 25 वर्षीय कीर माथेर ब्रिटिश संसद के सबसे युवा सदस्य बन गए। उनसे पहले यह रिकॉर्ड नॉटिंघम ईस्ट से भारतीय मूल की लेबर सांसद नाडिया (26) के नाम पर दर्ज था। जहां तक कंजरवेटिव पार्टी को लगे दूसरे झटके की बात है तो आपको बता दें कि यह उसे सोमरसेट और फ्रोम सीट पर हुए उपचुनाव में लगा, जहां लिबरल डेमोक्रेट पार्टी की उम्मीदवार सारा डाइक ने 11 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की। डाइक के खाते में जहां कुल 21,187 वोट पड़े, वहीं कंजरवेटिव प्रत्याशी फे बरब्रिक को 10,179 मतों से संतोष करना पड़ा। सोमरसेट और फ्रोम में कंजरवेटिव सांसद डेविड वारबर्टन के इस्तीफे के कारण उपचुनाव जरूरी हो गया था। वारबर्टन ने मादक पदार्थ के सेवन और यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगने के बाद संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।


इसके अलावा, हाल ही में खबर आई थी कि ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस ने कहा है कि वह चार साल तक पद पर रहने के बाद कुछ महीनों में होने वाले अगले मंत्रिमंडल फेरबदल में पद छोड़ देंगे। वर्ष 2005 से सांसद और कंजर्वेटिव पार्टी सदस्य बेन वालेस (53) ने ऐलान किया कि वह अगले साल होने वाले आम चुनाव के दौरान मैदान में नहीं उतरेंगे। वालेस का यह ऐलान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वह देश की राजनीति में बड़े अनुभवी नेता माने जाते हैं। उन्होंने तीन ब्रिटिश प्रधानमंत्रियों- बोरिस जॉनसन, लिज ट्रस और ऋषि सुनक के साथ रक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया है।


बहरहाल, उपचुनाव परिणाम के बाद माना जा रहा है कि सुनक जल्द ही अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे। इस दौरान वह कई लोगों की छुट्टी कर सकते हैं और कुछ नये चेहरों को मौका दे सकते हैं। ऋषि सुनक का प्रयास है कि जनता की नाराजगी को कम किया जाये इसलिए वह अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं लेकिन वैश्विक और पर्यावरणीय चुनौतियों के चलते उनके सामने दुश्वारियां बढ़ी हैं। साथ ही कंजरवेटिव पार्टी के नेता और सांसद भी अक्सर विवादों में रह कर सुनक की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा सरकारी सेवा से जुड़े लोग भी विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पर उतारू हैं। देखना होगा कि सुनक आने वाले दिनों में जनता को राहत देने के लिए क्या कदम उठाते हैं? यह भी देखना होगा कि क्या आगामी दिनों में सुनक की कुर्सी पर खतरा और बढ़ता है? साथ ही इस बात पर भी सबकी नजरें रहेंगी कि क्या अगले चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को फिर से जीत दिलाकर ऋषि सुनक नया इतिहास रच पाते हैं?


-नीरज कुमार दुबे

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