Prabhasakshi Exclusive: BRICS में 6 नये देशों को शामिल कर क्या संदेश दिया गया है? क्या ब्रिक्स सम्मेलन में China-Russia ने अड़ियल रुख दिखाया?

By नीरज कुमार दुबे | Aug 24, 2023

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की क्या उपलब्धियां रहीं? हमने यह भी जानना चाहा कि क्या यह अमेरिका को घेरने वाला एक मंच बनता जा रहा है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कहने को तो बहुत उत्साह और उल्लास वाले वातावरण में संपन्न हुआ लेकिन माहौल में तनाव भी साफ दिख रहा था। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध की छाया से यह सम्मेलन भी प्रभावित रहा। साथ ही खासतौर पर जिस तरह रूस के कमजोर पड़ने के चलते चीन अपना प्रभुत्व इस संगठन पर बढ़ा रहा है उससे सभी चिंतित दिखे। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देशों के नेताओं ने अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को समूह के नए सदस्यों के रूप में शामिल करने का जो फैसला किया है वह भले सर्वसम्मति से लिया गया है लेकिन यह भी साफ दिख रहा है कि इन देशों के चीन से ही सर्वाधिक करीबी संबंध हैं।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सम्मेलन से पहले चर्चा थी कि ब्रिक्स समूह एक मुद्रा पर सहमत हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका की मेजबानी में आयोजित किये गये ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर आयोजित कारोबारी प्रतिनिधियों की चर्चा के दौरान तो ब्रिक्स मुद्रा के बारे में चर्चा हुई। लेकिन किसी भी सदस्य देश के नेता ने अपने संबोधन में इस मुद्दे का उल्लेख नहीं किया।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक और खास बात यह रही कि ब्रिक्स सम्मेलन में जहां भारत ने दुनिया की बेहतरी के बारे में बातें कीं वहीं चीन और रूस गोलमोल बात करते रहे। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ब्रिक्स समूह के विस्तार में तेजी लाने के अलावा सदस्य देशों के बीच राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाकर जोखिमों से संयुक्त रूप से निपटने के प्रयासों का आह्वान किया तो किया लेकिन वह कभी सहयोग करते नहीं हैं। साथ ही चीनी राष्ट्रपति ने अपने देश की खराब होती अर्थव्यवस्था का जरा भी जिक्र अपने संबोधन में नहीं किया। इसके अलावा वह ब्रिक्स व्यापार मंच में भी शामिल नहीं हुए थे, जिससे शिखर सम्मेलन में भी उनकी अनुपस्थिति को लेकर अटकलें लगने लगी थीं। शी जिनपिंग ब्रिक्स व्यापार मंच से अनुपस्थित एकमात्र नेता थे। उनके स्थान पर चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेन्ताओ ने उनका भाषण पढ़ा, जिसमें स्पष्ट रूप से अमेरिका के लिए एक सख्त संदेश था। इस तरह चीन ने इस मंच से अमेरिका पर निशाना साधने का प्रयास किया तो वहीं दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी इस मंच का उपयोग युद्ध को सही ठहराने के लिए किया। पुतिन ने अपने संबोधन में पश्चिमी देशों पर यूक्रेन में डोनबास क्षेत्र में रहने वाले लोगों के खिलाफ ‘‘युद्ध छेड़ने’’ का आरोप लगाया और कहा कि रूस का विशेष सैन्य अभियान उस युद्ध को समाप्त करने के लक्ष्य को लेकर है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारतीय प्रधानमंत्री के संबोधन की बात है तो उन्होंने अपने संबोधन के जरिये भारत की विश्व कल्याण की भावना को प्रदर्शित किया। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान, एक मजबूत ब्रिक्स का आह्वान किया जो इस प्रकार है-


बी- ब्रेकिंग बैरियर्स (बाधाओं को तोड़ना)


आर- रिवाइटलाइजिंग इकोनॉमीज(अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करना)


आई- इंस्पायरिंग इनोवेशन(प्रेरक इनोवेशन)


सी- क्रिएटिंग अपॉर्चुनिटी(अवसर पैदा करना)


एस-शेपिंग द फ्यूचर (भविष्य को आकार देना)


इस दौरान प्रधानमंत्री ने निम्नलिखित पहलुओं पर भी प्रकाश डाला-


-यूएनएससी सुधारों के लिए निश्चित समयसीमा तय करने का आह्वान किया

-बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया

-डब्ल्यूटीओ में सुधार का आह्वान किया

-ब्रिक्स से अपने विस्तार पर आम सहमति बनाने का आह्वान किया

-ब्रिक्स से ध्रुवीकरण नहीं बल्कि एकता का वैश्विक संदेश भेजने का आग्रह किया

-ब्रिक्स स्पेस एक्सप्लोरेशन कंसोर्टियम के निर्माण का प्रस्ताव पेश किया

-ब्रिक्स भागीदारों को इंडियन डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर- भारतीय स्टैक की पेशकश की गई

-ब्रिक्स देशों के बीच स्किल मैपिंग, कौशल और गतिशीलता को बढ़ावा देने का उपक्रम प्रस्तावित

-इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस के तहत चीतों के संरक्षण के लिए ब्रिक्स देशों के संयुक्त प्रयासों का प्रस्ताव

-ब्रिक्स देशों के बीच पारंपरिक चिकित्सा का भंडार स्थापित करने का प्रस्ताव

-ब्रिक्स साझेदारों से जी20 में एयू की स्थायी सदस्यता का समर्थन करने का आह्वान किया


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इस समूह के अमेरिका विरोधी मंच बनने की बात है तो ऐसा होना मुश्किल है क्योंकि भारत और ब्राजील के अमेरिका से अच्छे रिश्ते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका की विदेश नीति निर्माताओं का मानना है कि पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाये थे, ब्रिक्स समूह ने एक तरह से उसका विरोध करके यूक्रेन के संबंध में अमेरिका की रणनीति को कमजोर करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका की नजर ब्रिक्स पर इसलिए थी कि कहीं ईरान, क्यूबा या वेनेजुएला के सदस्यता संबंधी आवेदन को स्वीकार कर लिया गया तो एक तरह से अमेरिका विरोधी बड़ा संगठन खड़ा हो जायेगा। उन्होंने कहा कि हालांकि ब्रिक्स ने अमेरिका विरोधी ईरान को शामिल किया है साथ ही अमेरिका के साझेदार मिस्र को भी सदस्यता देने पर सहमति जताई है। साथ ही अमेरिका इसलिए भी चौकन्ना है क्योंकि अल्जीरिया और मिस्र जैसे अमेरिकी साझेदार भी ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका को यह भी लगता है कि ब्रिक्स अमेरिका विरोधी एजेंडे पर चलने वाला ऐसा संगठन है जिस पर चीन हावी है। हालांकि ब्रिक्स ने सदैव अमेरिका विरोधी बयानबाजी से परहेज किया है। यहां तक कि साल 2009 में चीनी विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट रूप से कहा था कि ब्रिक्स को ‘‘किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध निर्देशित’’ नहीं होना चाहिए। वैसे अमेरिका का यह सोचना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि ब्रिक्स चीन द्वारा संचालित है, क्योंकि चीन कुछ प्रमुख नीतिगत प्रस्तावों को इस मंच से आगे बढ़ाने में असमर्थ रहा है। जबकि भारत ने ब्रिक्स सहयोग के सुरक्षा आयाम को मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभाई है और आतंकवाद विरोधी एजेंडे पर समर्थन भी जुटाया है।

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