By नीरज कुमार दुबे | Dec 13, 2023
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने राज्यों में भाजपा का जो नया नेतृत्व तैयार किया था उसमें गुजरात में नरेंद्र मोदी, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे, छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह और गोवा में मनोहर पर्रिकर ने पार्टी को मजबूत किया और राज्य सरकार का लंबे समय तक नेतृत्व भी किया। मोदी 2014 में गुजरात से निकल कर केंद्र की राजनीति में आ गये और प्रधानमंत्री बनने के बाद से उन्होंने अमित शाह के साथ मिलकर राज्यों में नया नेतृत्व खड़ा करने का काम शुरू किया। मोदी-शाह की जोड़ी ने अब तक जिन लोगों को नेतृत्व सौंपा उसमें उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी, गुजरात में भूपेंद्र पटेल, अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू, गोवा में प्रमोद सावंत, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, मणिपुर में एन. बिरेन सिंह, त्रिपुरा में माणिक साहा और असम में हिमंत बिस्व सरमा ही सफल रहे और इन नेताओं की बदौलत भाजपा दोबारा राज्य की सत्ता में आ सकी। हालांकि असम में भाजपा ने विधानसभा चुनावों में किसी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं बनाया था लेकिन राज्य में पार्टी की सफलता के पीछे उनका बहुत बड़ा हाथ माना जाता है। वैसे ऐसा नहीं है कि मोदी-शाह की जोड़ी को सिर्फ सफलता ही मिली है। कर्नाटक में बसवराज बोम्मई, झारखंड में रघुबर दास, उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत तथा हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर व त्रिपुरा में बिप्लब देव जैसे उनके प्रयोग असफल भी रहे हैं।
मोदी-शाह की जोड़ी एक तरफ भारत को 2047 से पहले विकसित देश बनाने के संकल्प को सिद्ध करने पर काम कर रही है तो दूसरी ओर पार्टी स्तर पर कड़े और बड़े निर्णय लेकर यह भी सुनिश्चित कर रही है कि भाजपा का राज केंद्र और राज्यों में लंबे समय तक बना रहे। मोदी-शाह की जोड़ी जानती है कि जनता परिवर्तन चाहती है। यह जोड़ी जानती है कि किसी एक व्यक्ति के प्रति उपजा जनता का गुस्सा पूरी पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है इसलिए समय पर कदम उठा लिया जाता है। इसके लिए कभी केंद्र में बड़े-बड़े मंत्रियों की छुट्टी कर दी जाती है तो कभी राज्यों में पूरा का पूरा मंत्रिमंडल बदल दिया जाता है तो कभी किसी राज्य में सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का अगले चुनावों में टिकट काट कर एकदम नये चेहरों को मौका दिया जाता है।
इस क्रम में मोदी-शाह की जोड़ी ने जो नया फैसला लिया है उसके तहत अटल-आडवाणी की जोड़ी की ओर से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तैयार किये गये तीन बड़े नेताओं- शिवराज सिंह चौहान, डॉ. रमन सिंह और वसुंधरा राजे को ऐसे वक्त घर बैठा दिया है जब इन तीनों ही राज्यों में भाजपा ने शानदार चुनावी जीत हासिल की है। इन तीनों ही राज्यों में नये मुख्यमंत्री का नाम सुन कर अन्य लोग तो क्या खुद वह भी चौंक गये थे जिनको मुख्यमंत्री बनाया गया है। देखा जाये तो वसुंधरा-रमन और शिवराज का मुख्यमंत्री के रूप में कॅरियर समाप्त होना बड़ी राजनीतिक घटना है। सवाल उठता है कि वसुंधरा-रमन-शिवराज जिन्हें आजकल VRS (Vasundhara-Raman-Shivraj) कह कर संबोधित किया जा रहा है, उन्हें राज्य में सत्ता के शीर्ष पद से वीआरएस क्यों दे दिया गया? सवाल यह भी उठता है कि मोदी और शाह की जोड़ी क्या राज्यों के बाद अब केंद्र के नेताओं को भी वीआरएस देने की तैयारी में है? सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह हाल के विधानसभा चुनावों में कई सांसदों को विधायकी का चुनाव लड़ाया गया क्या उसी तरह विधायकों को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है? सवाल कई हैं लेकिन जवाब मोदी-शाह ही जानते हैं।
जहां तक शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह के राजनीतिक भविष्य की बात है तो डॉ. रमन सिंह को छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष बना कर उन्हें राज्य की राजनीति में ऐसी भूमिका दी गयी है जिसमें उन्हें सक्रिय राजनीति से वास्ता नहीं रखते हुए सदन के प्रति अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निवर्हन भर करना है। जहां तक शिवराज और वसुंधरा की बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि यह दोनों बड़े जनाधार वाले नेता हैं और इनको ज्यादा समय तक खाली नहीं बैठाये रखा जा सकता। वसुंधरा राजे फिलहाल भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने पर उन्हें केंद्रीय राजनीति में आने का न्यौता दिया गया था जिसे उन्होंने उस समय अस्वीकार कर दिया था लेकिन माना जा रहा है कि अब कोई अन्य विकल्प नहीं होने के चलते वह लोकसभा या राज्यसभा के माध्यम से केंद्र की राजनीति में आ सकती हैं। हालांकि यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विधानसभा चुनावों के दौरान वसुंधरा राजे ने एक बार यह भी कहा था कि मुझे अब लगता है कि मैं रिटायरमेंट ले सकती हूँ। लेकिन यहां यह ध्यान रखे जाने की जरूरत है कि राजनीति का मिजाज ऐसा है कि वह कम से कम जनाधार वाले नेताओं को रिटायरमेंट नहीं लेने देती।
बहरहाल, जहां तक शिवराज सिंह चौहान की बात है तो पार्टी नेतृत्व को यह अच्छा लगा कि उन्होंने आसानी से नई पीढ़ी को सत्ता हस्तांतरित कर दी लेकिन उनके कुछ बयान ऐसे रहे जोकि केंद्रीय नेतृत्व को अखर गये। भाजपा सूत्रों का कहना है कि ऐसे में संभव है कि उन्हें तत्काल पार्टी में कोई भूमिका नहीं मिले। लेकिन कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि शिवराज के भोपाल में रहने से नये मुख्यमंत्री के लिए काम करना मुश्किल हो सकता है इसलिए उन्हें दिल्ली लाया ही जायेगा। बताया जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान के लिए बड़ी भूमिका तय भी कर ली गयी है। चूंकि वह 18 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे और पार्टी संगठन चुनावों से लेकर अनेक भूमिकाओं को भी उन्होंने जिम्मेदारीपूर्वक निभाया है, इसलिए संभव है कि जगत प्रकाश नड्डा का विस्तारित कार्यकाल पूरा होने के बाद शिवराज सिंह चौहान की भाजपा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो जाये। उल्लेखनीय है कि भाजपा अध्यक्ष के पद पर नड्डा अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और पार्टी ने हाल में उनका कार्यकाल लोकसभा चुनावों तक बढ़ा दिया था। ऐसे में बहुत आसार हैं कि शिवराज सिंह चौहान आगे चलकर नड्डा की जगह लें। यही नहीं, शिवराज के बारे में तो यह भी कहा जा रहा है कि जैसे अमित शाह के अध्यक्षीय कार्यकाल में नड्डा ने कुछ समय तक कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में काम किया था वही भूमिका शिवराज को भी पार्टी में दी जा सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह उनके लिए सम्मानजनक दायित्व होगा। फिलहाल तो भाजपा में एक ही चर्चा है कि अब किस नेता को वीआरएस मिलने जा रहा है? लोकसभा चुनाव नजदीक हैं ऐसे में माना जा रहा है कि मोदी-शाह की जोड़ी आगामी दिनों में कई और फैसलों से सबको चौंका सकती है।
-नीरज कुमार दुबे