प्रियंका गांधी वाड्रा का सक्रिय राजनीति में आना बीजेपी को रास नहीं आ रहा। पार्टी के कुछ नेताओं ने तो उन पर निजी हमले भी करने शुरू कर दिए। वैसे बीजेपी के नेता कैमरे पर भले ही इस बात को नहीं स्वीकारें लेकिन प्रियंका की लोकप्रियता का अंदाजा उन्हें पहले से है। यूपी में प्रचार के दौरान प्रियंका को देखने किस कदर भीड़ जुटती थी ये सभी को मालूम है...ये बात अलग है कि प्रियंका मां और भाई के लिए सिर्फ रायबरेली और अमेठी में प्रचार करती दिखीं जो कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। कई लोगों का मानना है कि प्रियंका के प्रचार का तरीका उन्हें उनकी दादी इंदिरा गांधी की याद दिला देता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या प्रियंका का जादू रायबरेली और अमेठी के बाहर भी चलेगा ?
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कांग्रेस ने प्रियंका को पूर्वी यूपी की कमान सौंपकर विरोधियों को संकेत दे डाला है कि अब लड़ाई आर-पार की होगी। प्रियंका को पार्टी में शामिल करने के बाद उत्साहित कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीधे-सीधे कह डाला कि अब उनकी पार्टी फ्रंटफुट पर खेलेगी। मतलब लोकसभा चुनाव में खासकर यूपी में कांग्रेस का अंदाज आक्रामक होगा। राहुल पिछले कई सालों से यूपी में अपनी सियासी जमीन तलाश रहे हैं...लेकिन अब तक उन्हें असफलता ही हाथ लगी है। विधानसभा चुनाव में अखिलेश से गठबंधन करने के बाद पार्टी की जो दशा हुई उसे हर कोई जानता है। लेकिन हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली जीत ने राहुल का हौसला बढ़ा दिया है। जब मायावती और अखिलेश ने अपने गठबंधन से कांग्रेस को अलग कर दिया तो फिर उसके पास एक ही विकल्प बचा था...अकेले चुनाव लड़ने का। लेकिन मोदी से टक्कर ले रहे राहुल और कांग्रेस को इस बात का बखूबी पता था कि यूपी जैसे राज्य में कुछ हासिल करने के लिए उन्हें कुछ बड़ा सोचना होगा। और उसी सोच के तहत कांग्रेस ने प्रियंका को अपना हथियार बनाया है।
अब सवाल उठता है कि क्या प्रियंका अपने दम पर यूपी में कांग्रेस के लिए वोट हासिल कर सकती हैं ? ये सवाल इसलिए अहम है क्योंकि एक तरफ मायावती-अखिलेश का गठबंधन है तो दूसरी तरफ मोदी-योगी की जुगलबंदी। क्या इन दिग्गज नेताओं के बीच प्रियंका कांग्रेस को नई दिशा दे पाएंगी। राहुल ने प्रियंका को पूर्वी यूपी की कमान सौंपी है जिसमें मोदी का चुनाव क्षेत्र वाराणसी भी आता है। पूर्वी यूपी में लोकसभा की 42 सीटें हैं...और कांग्रेस को लगता है कि अगर प्रियंका का जादू चला तो उसके हिस्से 10 से 15 सीटें आ सकती हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस के हिस्से सिर्फ दो सीटें आईं थी...रायबरेली और अमेठी। अब इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रियंका के सामने कितनी बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के लिए मायावती और अखिलेश के वोटबैंक में सेंध लगाना आसान नहीं होगा। अगर मुस्लिम वोट बैंक की बात करें तो मुस्लिम समुदाय के लोग किसी कांग्रेस उम्मीदवार को तभी वोट देंगे जब उन्हें उसकी जीत सुनिश्चित दिखाई देगी। नहीं तो फिर ये तबका मायावती और अखिलेश के साथ होगा। रही बात सवर्णों की तो मोदी सरकार ने आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का कार्ड खेलकर मास्टर स्ट्रोक खेला है। लेकिन प्रियंका की नजर सबसे ज्यादा प्रदेश के युवा वोटरों पर होगी। पार्टी को भी लगता है कि प्रियंका के कमान संभालने के बाद बड़ी संख्या में युवा वोटर कांग्रेस के प्रति आकर्षित होंगे।
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राहुल पिछले कुछ समय से देश के युवाओं को पार्टी से जोड़ने में लगे हैं। राहुल न सिर्फ समय-समय पर युवाओं के साथ संवाद स्थापित करने में लगे हैं बल्कि उन्हें दावत देकर रेस्तरां में खाने पर भी मिल रहे हैं। अभी पिछले हफ्ते ही राहुल दिल्ली में एक रेस्तरां में युवाओं के साथ दिखे थे। मेरा मानना है कि राहुल ने प्रियंका को पार्टी का महासचिव बनाकर बड़ा दांव खेला है।
पार्टी में आने के बाद प्रियंका न सिर्फ यूपी और देश में कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगी...बल्कि उनका चुनाव मैदान में उतरना भी तय माना जा रहा है। चर्चा तो ये भी है कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव भी लड़ सकती हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। अटकलें ये भी लगाई जा रही हैं कि अगर सोनिया बढ़ती उम्र के चलते रायबरेली से चुनाव लड़ने से इनकार करती हैं तो हो सकता है पार्टी प्रियंका को वहीं से उम्मीदवार बनाए। चुनावी साल है लिहाजा अटकलों का बाजार गर्म रहेगा...लेकिन इतना तो तय है कि प्रियंका के कांग्रेस में शामिल होने से देश में राजनीति गरमा गई है। अब बीजेपी के लोग कांग्रेस पर वंशवाद की राजनीति करने का आरोप लगाकर जितना भी हमला बोलें...लेकिन इतना तो तय है कि प्रियंका से निपटने के लिए अमित शाह और उनकी टीम को नई रणनीति बनानी होगी। अगर प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से उनके विरोधियों में डर लगने लगा है तो फिर ये जान लीजिए आगामी चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है।
-मनोज झा
(लेखक पूर्व पत्रकार रह चुके हैं)