भारतीय जनता पार्टी दो से 303 सीटों पर पहुंच गई है। अब भाजपा को कोई उत्तर भारत की पार्टी नहीं कहता है। आज भाजपा पूरे देश में मजबूती के साथ खड़ी नजर आती है। भाजपा के उत्थान में सबसे बड़ा योगदान उन लाखों−करोड़ों मतदाताओं का है जिन्होंने भाजपा का तब भी साथ दिया जब वह दो पर थी और तब भी साथ दे रही है जब वह 303 पर पहुंच गई है। भाजपा के वोटरों ने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि वह जिस दल का साथ देते हैं उसके (भाजपा) ऊपर साम्प्रदायिकता फैलाने का आरोप चस्पा है। इन्हीं आरोपों के चलते देश की करीब 14 प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने कभी भाजपा के पक्ष में मतदान नहीं किया। यही नहीं मुलसमान हमेशा उस उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंग करते रहे जो भाजपा के उम्मीदवार को हराने की क्षमता रखता था। मुसलमानों की इस सोच का वर्षों तक कांग्रेस, वामपंथी और उसके बाद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलामय सिंह यादव, बहुजन समाज पार्टी की नेत्री मायावती, राष्ट्रीय लोकदल के अजित सिंह, राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और अब आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी उन हिन्दुओं की आवाज मानी जाती थी जो देश में जारी तुष्टिकरण की राजनीति की मुखालफत करते थे और संघ और भाजपा की उस विचारधारा का समर्थन करते थे, जिसमें सामान नागरिक संहिता, एक देश−एक संविधान, जनसंख्या नियंत्रण, कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करने एवं 35 ए हटाने, राजनीति को परिवारवाद और अपराध मुक्त करने की बात कही जाती थी। इसी प्रकार अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने सहित काशी−मथुरा जैसे तमाम विवादित मुद्दों के पक्ष में खुलकर हिन्दुओं की दावेदारी की वकालत की जाती थी। अपनी विचारधारा के चलते राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को तो प्रतिबंधित तक होना पड़ा। आज भी महात्मा गांधी की हत्या को संघ की विचारधारा से जोड़कर देखा जाता है। भाजपा पर अनेकों बार साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोप लगे, साम्प्रदायिक हिंसा का मतलब हिन्दू−मुसलमानों के बीच लड़ाई−झगड़ा रहता था, लेकिन भाजपा का वोटर कभी भी इधर−उधर नहीं हुआ।
दरअसल, भारत में जब भी साम्प्रदायिकता की बात चलती है तो उसका आशय हिन्दू मुस्लिम सम्बंधों में आपसी द्वेष से लिया जाता है। यदि साम्प्रदायिक समस्या के समाधान की भी बात की जाती है तो भी हिन्दू मुस्लिम विरोध को समाप्त करने का ही अर्थ लिया जाता है। असल में भारत में सम्प्रदाय का तात्पर्य ही हिन्दू−मुस्लिम विभाजन से है। देश की बड़ी आबादी आज भी यही मानती है कि मोदी सरकार का दो−दो बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाना इसीलिए संभव हो पाया क्योंकि देश की बहुसंख्यक मतदाता, गैर भाजपाई दलों की तुष्टिकरण की सियासत से त्रस्त हो गए थे। भाजपा आलाकमान ने भी दोनों चुनावों में हिन्दुत्व को खूब भुनाया था, लेकिन अबकी से सरकार बनाने के बाद भाजपा आलाकमान के सुर बदले−बदले नजर आ रहे हैं। भाजपा और आरएसएस के खिलाफ रहे मुसलमान अब पार्टी आलाकमान को वोट बैंक नजर आने लगा है। भाजपा मुसलमानों के सामने बांह फैलाकर खड़ी हो गई है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार जैसे ही लोकसभा सदस्यों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के दौरान संसद भवन में अपने संबोधन में सबका साथ−सबका विकास के बाद सबका विश्वास जीतने की बात कही, सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ हमले तेज हो गए। उनको ट्रोल किया जाने लगा। सोशल मीडिया का यह रवैया गलत था, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि मोदी के सबका विश्वास जीतने की बात कहे जाने के बाद देश में हालात बिगड़ने लगे हैं। हाल में जो साम्प्रदायिक घटानाओं में बढ़ोत्तरी हुई है, सोशल मीडिया इसके लिए मोदी के बयान को जिम्मेदार ठहरा रहा है, लेकिन शायद इसकी चिंता भाजपा आलाकमान या संघ को नहीं है। होनी भी नहीं चाहिए लेकिन जब बात तुष्टिकरण की चलती है तो ऐसा लगता है कि अब भाजपा और अन्य दलों में कोई खास फर्क नहीं रह गया है। भाजपा उन सभी मुद्दों और विचारधारा को तिलांजलि देती जा रही है जो कभी उसका एजेंडा हुआ करता था। अब वह सामान नागरिक संहिता, एक देश−एक संविधान, जनसंख्या नियंत्रण, कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करने एवं 35 ए हटाने, राजनीति को परिवारवाद और अपराध मुक्त करने की बात उतनी बेबाकी से नहीं कहती है जितनी सत्ता में आने से पहले कहती थी। इसी प्रकार अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने सहित काशी−मथुरा जैसे तमाम विवादित मुद्दों पर भी भाजपा ही नहीं संघ भी गोल−मोल नजर आता है। इसकी बजाए आरएसएस और भाजपा नेता मौलानाओं से लेकर देवबंद और नदवा तक के चक्कर लगा रहे हैं, जिस पर इनको सफाई भी देनी पड़ रही है।
इसीलिए तुष्टिकरण की सियासत करने वालों द्वारा दारूल उलूम के वर्तमान मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी की आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार से मुलाकात की जरूरत पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। छोटी−छोटी घटनाओं को साम्प्रदायिकता का रंग देकर उछाला जा रहा है। चाहे टीएमसी सांसद नुसरत का सिंदूर लगाना हो या फिर दंगल गर्ल का इस्लाम के नाम पर फिल्म इंडस्ट्री को बॉय−बॉय कह देना। सबको मुद्दा बनाया जा रहा है। मोदी राज में एक नया ट्रेंड पनप रहा है हर झगड़े को साम्प्रदायिक रंग दे देने का। कोई लड़का मदरसे में नहीं पढ़ना चाहता है तो वह इससे बचने के लिए अपने ऊपर हमले का ड्रामा रचता है और कहता है उसे वंदे−मातरम बोलने के लिए मारा−पीटा गया। दिल्ली में पार्किंग विवाद को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया। मेरठ में दबंगई के कारण कुछ हिन्दू पलायन को मजबूर हो गए, लेकिन प्रशासन ने यह बात स्वीकारी ही नहीं।
अलीगढ़ में कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने एक मुस्लिम युवक की महज इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि वह गीता और रामायण पढ़ता था। उन्होंने पीड़ित व्यक्ति से धर्मग्रंथ छीन लिया और उसका हारमोनियम भी तोड़ दिया। इसी प्रकार भाजपा अपने सदस्यता अभियान की सफलता के लिए मुस्लिम महिलाओं पर ध्यान केन्द्रित करती है। प्रदेश की मुस्लिम महिलाओं को भरोसा दिलाया जाता है कि उनकी हित चिन्तक सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ही है। सदस्यता अभियान को लेकर उत्तर प्रदेश भाजपा मुख्यालय में हुई उच्च स्तरीय बैठक में अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम महिलाओं को अधिक से अधिक संख्या में भाजपा से जोड़ने के प्रस्ताव को एकमत से मंजूरी दी जाती है तो इसका खामियाजा अलीगढ़ की रहने वाली मुस्लिम महिला को उठाना पड़ जाता है। शाहजमाल एडीए कॉलोनी में रहने वाली गुलिस्ताना ने भाजपा के सदस्यता अभियान में सामान्य सदस्य बनने की प्रक्रिया को पूरा किया। वह भाजपा महावीरगंज मंडल की भाजपा महिला मोर्चा की प्रभारी रूबी आसिफ खान के साथ रघुनाथ पैलेस में हुए भाजपा के कार्यक्रम में गई थीं। जहां मिस्ड काल के जरिए भाजपा की सामान्य सदस्य बनीं।
गुलिस्ताना के मकान मालिक को जब इस बात की जानकारी हुई तो उसने तत्काल उसे घर खाली करने की चेतावनी दे दी। सामान भी हटवाने को कहा। थोड़ी देर बाद उसको घर से निकाल दिया गया। परेशान महिला देहलीगेट थाने पहुंची और लिखित शिकायत की। इस शिकायत पर मकान मालिक के बेटे को पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। हालांकि शिकायत दर्ज होने के बाद पुलिस ने मकान मालिक के बेटे को हिरासत में ले लिया है और जांच शुरू कर दी है। वहीं मकान मालिक के बेटे सलमान का कहना है कि उस महिला पर कई महीनों का किराया बकाया था। मांगने पर उसने सदस्यता का झूठा नाटक खड़ा कर दिया।
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हालात यह हैं कि मौलाना इस्लाम का हवाला देकर कहते हैं कि किसी मुस्लिम लड़की का गैर मुस्लिम से शादी करना हराम है, लेकिन वह यह नहीं बताते कि फिर गैर मुस्लिम लड़की कैसी स्वीकार हो जाती हैं। सोचने वाली बात यह है कि जिस भाजपा ने अपनी विचारधारा के सामने साम्प्रदायिकता का आरोप लगने की भी चिंता नहीं की, उसी की सरकार में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में अतिक्रमण हटाया नहीं जाता है। अवैध निर्माण तोड़े नहीं जाते।
चुनाव के समय भाजपा ने कश्मीर से धारा 370 और 35 ए खत्म करने की बात कही थी, लेकिन अब सरकार बनने के बाद कोई पार्टी नेता इस पर दो टूक नहीं बोलता है। अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाने के लिए भाजपा आलाकमान की तरफ से चुप्पी ओढ़ ली गई है। इससे राम भक्त नाराज हैं। कहा यह जा रहा है कि भाजपा में जो बदलाव नजर आ रहा है उसकी वजह इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे हो सकते हैं। लोकसभा चुनाव में 303 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से दोबारा केंद्र की सत्ता पर काबिज होने वाली भाजपा को अबकी बार 90 अल्पसंख्यक बहुल्य जिलों में 50 प्रतिशत से अधिक सीटें मिले हैं। इसके जरिए उसने अल्पसंख्यक विरोधी पार्टी बताने वाले विपक्ष के दावों को एक तरह से खारिज किया है। इन अल्पसंख्यक बहुल जिलों की पहचान 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने की थी।
अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी अधिक होने के साथ ही इन जिलों में सामाजिक−आर्थिक एवं मूलभूत सुविधाओं के संकेतक राष्ट्रीय औसत से कम हैं। ऐसे 79 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने अधिकतम 41 सीटें जीतीं जो 2014 के मुकाबले सात सीट ज्यादा थी। कांग्रेस के हिस्से आई सीटें लगभग आधी हो गईं और 2014 में जहां 12 सीटें थीं, वहीं अब महज छह रह गईं। एक विश्लेषक ने दावा किया कि मुस्लिमों ने इस बार किसी एक पार्टी या एक उम्मीदवार के पक्ष में सामूहिक रूप से मतदान नहीं किया। वहीं दूसरी तरफ 27 मुस्लिम उम्मीदवारों ने हाल में संपन्न चुनावों में जीत हासिल की।
गौरतलब है कि देश के 130 करोड़ लोगों में लगभग 14.2 प्रतिशत मुस्लिम हैं। अल्पसंख्यक बहुल जिलों में भाजपा को सबसे अधिक लाभ पश्चिम बंगाल में मिला जहां 18 ऐसी सीटें हैं। उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज में मुस्लिमों की आबादी 49 प्रतिशत है, जहां भाजपा के देबश्री चौधरी को जीत मिली। भाजपा का इस संबंध में कहना है कि तीन तलाक मुद्दा मुस्लिम महिलाओं को भाजपा के करीब लाने में काफी मददगार साबित हुआ है। मुस्लिम महिलाओं को अब यह भरोसा हो चुका है कि भाजपा उनके भविष्य की चिन्ता कर रही है। ऊपर से हाल के दिनों में मदरसा बोर्ड में नाजनीन अंसारी को सदस्य मनोनीत करने से लेकर सौफिया अहमद को अल्पसंख्यक आयोग का सदस्य बनाने एवं आसिफा जमानी को उर्दू एकेडमी का चेयरमैन बनाने समेत मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी सरकार में बढ़ाने से मुस्लिम महिलओं का झुकाव तेजी से पार्टी की तरफ हो रहा है। भाजपा इसका सामयिक लाभ चाहती है। इसीलिए वह सदस्यता अभियान के दौरान अपना मुख्य फोकस अल्पसंख्यक विशेष कर मुस्लिम महिला वर्ग पर देती है तो तीन तलाक के मसले को भी ठंडा नहीं पड़ने दिया जा रहा है।
खैर, भाजपा की मुस्लिमों के प्रति भले ही सोच बदल गई हो लेकिन मुसलमानों को अभी भाजपा की सोच पर विश्वास नहीं हो रहा है। इसीलिए भाजपा की नीयत पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। वहीं भाजपा के कोर वोटर्स भी नहीं समझ पा रहे हैं कि पार्टी इतना बदल कैसे सकती है?
-अजय कुमार