अफगानियों को अपने यहाँ शरण देने से क्यों कतरा रहे हैं दुनिया के इस्लामिक देश ?

By संतोष पाठक | Aug 24, 2021

अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के मंडराते खतरे के बीच ही अफगानी लोगों ने अपना मुल्क छोड़ना शुरू कर दिया था। हालांकि इसकी शुरुआत तो उसी दिन हो गई थी जिस दिन अमेरिका ने सार्वजनिक तौर पर यह घोषणा की थी कि अमेरिकी सेना अफगानिस्तान को छोड़ कर अब अपने देश लौट जाएगी। तभी से यह माना जाने लगा था कि अब वह दिन दूर नहीं है जब तालिबानी अफगानी सरकार चलाते नजर आएंगे। हालांकि उस समय यह उम्मीद किसी को नहीं थी कि अमेरिका से प्रशिक्षित अफगानी सैनिक बिना लड़े ही हथियार डाल देगी, उस समय किसी को यह उम्मीद भी नहीं थी कि राष्ट्रपति अशरफ गनी अपने देश के लोगों को खूनी तालिबान के सहारे छोड़कर भाग जाएंगे। बल्कि अब जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति बार-बार आकर सफाई दे रहे हैं, तालिबानी आतंकी कमांडर (जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादियों की सूची में शामिल हैं) के सहयोग से अमेरिकी लोगों को काबुल एयरपोर्ट से एयरलिफ्ट करा रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि अफगानी सरकार और अफगानी नागरिकों को धोखे में रख कर अमेरिका ने पहले ही तालिबान को सत्ता सौंपने का समझौता कर लिया था। अमेरिका के इस षड्यंत्र, पाकिस्तान की चालबाजियों और अफगानी राष्ट्रपति की कायरता का खामियाजा अब अफगानिस्तान की देशभक्त जनता को भुगतना पड़ रहा है। उन्हें अपनी जान बचाने और अपनी बहन-बेटियों और पत्नी की इज्जत बचाने के लिए मुल्क छोड़कर भागना पड़ रहा है। इसलिए पिछले कई दिनों से एयरपोर्ट से दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं।

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मुल्क छोड़कर क्यों भाग रहे हैं अफगानी नागरिक ?


अफगानिस्तान, एक मुस्लिम देश है। अमेरिकी सेना की मौजूदगी के दो दशकों के दौरान भी वहां का राष्ट्रपति मुस्लिम ही बनता रहा है। हाल ही में देश छोड़कर भागने वाले गनी भी मुसलमान थे और अब बंदूक के सहारे सत्ता हासिल करने वाले तालिबानी भी मुसलमान हैं। तो ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि मुस्लिम तालिबानी शासक के बावजूद मुसलमानों को ही देश छोड़कर क्यों भागना पड़ रहा है ? हिन्दू, सिख और अन्य धर्मों के लोगों का अफगानिस्तान छोड़ने का कारण तो समझ में आ रहा है लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग जिस तरह से अपना देश छोड़कर भाग रहे हैं, उससे कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं।  संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक 4 लाख के लगभग लोग अफगानिस्तान से पलायन कर चुके हैं। सबको साथ लेकर चलने की नौटंकी भरे दावे करने वाले तालिबान का असली चेहरा जैसे-जैसे सामने आता जाएगा वैसे-वैसे अफगान से पलायन करने वालों का आंकड़ा भी बढ़ता चला जाएगा। 

 

दुनिया के 57 मुस्लिम देश क्या मुसलमानों के नाम पर सिर्फ नौटंकी करते हैं ?


अफगानिस्तान छोड़कर भागने वाले लाखों मुस्लिम शरणार्थी कहां जाएं ? आखिर दुनिया में कितने देश इन्हें शरण देने को तैयार हैं ? दुनिया के कई देश इन मुसलमानों को अपने देश में क्यों नहीं आने देना चाहते हैं ? सबसे बड़ा सवाल तो यह खड़ा हो रहा है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले दुनिया के 57 मुस्लिम देश आखिरकार अपने मुस्लिम भाईयों को शरण क्यों नहीं दे रहे हैं ? जनसंख्या के आधार पर विश्व का सबसे बड़ा धर्म ईसाई है और दूसरे नंबर पर इस्लाम है। मुसलमानों की आबादी ज्यादा होने के कारण दुनिया के 57 देशों ने अपने आपको इस्लामिक देश घोषित कर रखा है, जिसमें भारत से अलग हुआ हमारा पड़ोसी पाकिस्तान भी शामिल है। इन 57 देशों ने दुनिया भर के मुसलमानों का भला करने के नाम पर इस्लामिक सहयोग संगठन के नाम से एक संगठन भी बना रखा है। पिछले कई दशकों से कश्मीर मसले पर पाकिस्तान की शह पर यह संगठन भारत के खिलाफ प्रस्ताव पारित करता रहा है लेकिन जब मुसलमानों पर चीनी अत्याचार या अमेरिकी बर्बरता की खबरें आती हैं तो इन्हें सांप सूंघ जाता है। 

 

दुनिया के इन 57 मुस्लिम देशों का दोहरा रवैया देखिए कि ये अफगानिस्तान से पलायन करने वाले अपने ही मुस्लिम बहन-भाईयों को अपनाने को तैयार नहीं हैं। इनमें से ज्यादातर देशों ने तो बकायदा ऐलान कर अपने देश के दरवाजों को अफगानी नागरिकों के लिए पूरी तरह से बंद कर दिया है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब इन 57 मुस्लिम देशों का यह दोहरा रवैया सामने आया है। इससे पहले रोहिंग्या मुस्लिम और सीरियाई मुस्लिम समस्या के समय भी इन 57 मुस्लिम देशों ने अपने ही मुस्लिम बहन-भाईयों को शरण देने से इंकार कर दिया था। 

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इसके विपरीत अमेरिका, ब्रिटेन सहित दुनिया के कई देश अफगानी नागरिकों को शरण देने के लिए नीतियों की घोषणा कर रहे हैं। ब्रिटेन ने अफगानिस्तान से 3 हजार ब्रिटिश और देश की सेना के साथ काम कर चुके इतने ही अफगानी लोगों को वहां से सुरक्षित निकालने के लिए अपने सैनिक काबुल भेज दिए हैं। इसके साथ ही ब्रिटेन ने 20 हजार अफगानी लोगों को शरण देने की नई नीति का भी ऐलान किया है। लड़कियों, महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को इसमें प्राथमिकता दी जाएगी। कनाडा ने भी सरकारी कर्मचारी, महिला नेता और तालिबान द्वारा सताए गए 20 हजार अफगानियों को शरण देने का ऐलान किया है। यहां तक कि अफगानिस्तान को इस दलदल में फंसाने वाले अमेरिका ने भी तालिबानी लोगों को शरण देने के लिए योजना का ऐलान कर दिया है। लेकिन इन 57 मुस्लिम देशों का दिल अपने ही मुस्लिम बहन-भाईयों के लिए पिघलने को तैयार नहीं है। 

 

अमेरिकी डर और डॉलर के लालच में तैयार हुए कई मुस्लिम देश ?


इन मुस्लिम देशों के स्वार्थ और लालच की इंतहा देखिए कि ये धर्म के नाम पर अपने मुस्लिम बहन-भाईयों को शरण देने के लिए तैयार नहीं है लेकिन जब अमेरिका ने अपना डंडा घुमाया और मदद के नाम पर डॉलर का लालच दिखाया तो कई मुस्लिम देश अमेरिकी योजना के तहत इन्हे शरण देने को तैयार हो गए लेकिन वो भी अस्थायी तौर पर। कई मुस्लिम देशों ने तो अफगानी नागरिकों को निकलने का रास्ता देने के लिए भी अमेरिका से चार्ज कर लिया। इसका ऐलान भी इन मुस्लिम देशों ने नहीं बल्कि अमेरिकी विदेश मंत्री ने किया। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के मुताबिक लगभग 13 देश अस्थायी तौर पर अफगानी नागरिकों को शरण देने के लिए और लगभग 12 देश निकाले गए लोगों को ले जाने के लिए पारगमन केंद्र एवं रास्ते की सुविधा देने के लिए तैयार हो गए हैं। अल्बानिया, कनाडा, कोलंबिया, कोस्टा रीका, चिली, कोसोवो, उत्तरी मकदूनिया, मेक्सिको, पोलैंड, कतर, रवांडा, यूक्रेन और यूगांडा , अफगानी नागरिकों को अस्थायी तौर पर शरण देंगे। जबकि बहरीन, ब्रिटेन, डेनमार्क, जर्मनी, इटली, कजाखस्तान, कुवैत, कतर, ताजिकिस्तान, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और उज्बेकिस्तान पारगमन केंद्र की सुविधा देंगे।


मुसलमानों पर दुनिया के किसी भी देश को भरोसा नहीं 

 

हालांकि अमेरिकी और यूरोपीय प्रभाव वाले ज्यादातर देश उन्हीं अफगानी नागरिकों को शरण देंगे जिन्होंने अमेरिकी मिशन के समय अमेरिकी सेना का साथ दिया था। इसके साथ ही ये देश धार्मिक तौर पर सताए गए अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों, महिलाओं और तालिबानी डर से देश छोड़ने वाले सरकारी कर्मचारी, सांसद, नेता और पत्रकारों को भी शरण देंगे। लेकिन फिर यहां सवाल यह खड़ा हो रहा है कि आम अफगानी मुसलमान जाए तो कहां जाए ? मुस्लिम देश उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं और दुनिया के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश उनसे डर रहे हैं क्योंकि उन्होंने लगातार धोखा करके दुनिया के सभी देशों का विश्वास खो दिया है।

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सीरिया संकट के समय फ्रांस, जर्मनी जैसे जिन यूरोपीय देशों ने मानवता के नाम पर 10 लाख से ज्यादा मुसलमानों को शरण दी थी, ऐसे सारे देश आज की तारीख में मुस्लिम कट्टरपंथ और मुस्लिम आतंकवाद की समस्या से जूझ रहे हैं। ब्रिटेन जैसे दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की हालत भी इन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने खराब कर रखी है। मुस्लिम आबादी के आधार पर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष देश भारत भी रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों से त्रस्त है। यही वजह है कि दुनिया के कई देश अब डर की वजह से इन मुसलमानों को अपने देश में आने नहीं देना चाहते हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने तो बकायदा ऐलान करके कहा है कि फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ के अन्य देश मिलकर अफगानिस्तान से आ रहे अनियमित प्रवास को रोकने के लिए मजबूत नीति बनाएंगे। 

 

अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि ये 57 देश जानबूझकर मुस्लिम शरणार्थियों को अपने देश में शरण नहीं देते हैं। इसकी बजाय ये 57 देश तमाम तरह के ऐसे इंतजाम करते हैं कि ये मुसलमान भाग कर यूरोपीय देश जाएं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और भारत जैसे देशों में शरण लेकर वहां पर मुस्लिम आबादी बढ़ाएं और फिर शरिया-इस्लाम-अल्लाह के नाम पर कानून बनाने की मांग करें। अगर ये देश इनकी मांगों को मानने से इंकार कर दें तो कट्टरपंथ और आतंकवाद का सहारा लेकर इन देशों में दहशत फैलाय़ें। चीन और रूस जैसे देशों ने तो इनके नापाक मंसूबों पर लगाम लगा रखी है। लेकिन ब्रिटेन और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश अपनी अंदरूनी कमियों की वजह से इन पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि दुनिया का आम मुसलमान भी यह सोचे कि इसी दुनिया के ईसाई, हिंदू, सिख जैसे अन्य तमाम धर्मों के लोग उन पर भरोसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं ? 


-संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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