By दिनेश शुक्ल | Jun 29, 2019
राहुल गांधी के सख्त तेवरों से जहाँ काँग्रेस पार्टी के दिग्गजों में खलबली मच गई है वहीं इस्तीफों का दौर शुरू हो गया है। हाल ही में राहुल गांधी ने कहा था कि मुझे इसी बात का दुख है कि मेरे इस्तीफे के बाद किसी मुख्यमंत्री, महासचिव या प्रदेश अध्यक्ष ने हार की जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा नहीं दिया। दरअसल, एक सप्ताह पहले यूथ कांग्रेस के नेता कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के घर के बाहर इकट्ठा हुए थे। यूथ काँग्रेस नेता चाहते थे कि राहुल गांधी अपना इस्तीफा न दें जिसके लिए वह राहुल गांधी से बात कर उन्हें मनाने पहुँचे थे। वहीं राहुल गांधी के समर्थन में उनके घर के बाहर जब काँग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बैठे, तो राहुल ने सभी को अपने घर पर आमंत्रित किया और उनसे अपने दिल की बात की।
राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा दिया कि ''अब मैं कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष नहीं रहूंगा। आप लोग चिंता मत करिए। मैं कहीं जाने वाला नहीं हूं, यहीं रहूंगा और मजबूती से आप सब की लड़ाई लड़ूंगा।" राहुल ने कहा, "आज मैं चुनाव हारा हूं। अगर एक अंगुली मैं किसी पर उठाता हूं, तो तीन अंगुलियां मेरी तरफ उठेंगी, लंबा संघर्ष है। जिसको तुरंत सत्ता चाहिए वो बीजेपी में जा सकता है। जो संघर्ष के दौर में मेरे और पार्टी के साथ रहेगा, वही पार्टी का सच्चा सिपाही है।" जब इस सबके बाद भी काँग्रेस संगठन में बैठे नेताओं के कान पर जूँ न रेंगी तो राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा कि, “मुझे इसी बात का दुख है कि मेरे इस्तीफे के बाद किसी मुख्यमंत्री, महासचिव या प्रदेश अध्यक्षों ने हार की जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा नहीं दिया।''
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जिसके बाद पार्टी में इस्तीफों का दौर शुरू हो गया और अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के महासचिव दीपक बाबरिया सहित विभिन्न राज्यों के करीब 150 पदाधिकारीयों ने राहुल गांधी को अपना इस्तीफा भेज दिया है। दीपक बाबरिया मध्य प्रदेश काँग्रेस के प्रदेश प्रभारी भी थे जिन्होंने लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया है। दीपक बाबरिया से पहले शुक्रवार को ही पार्टी के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कांग्रेस के विधि और सूचना अधिकार विभाग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने ट्वीट कर इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर भी लोगों को दी। इसी बीच मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का भी बयान सामने आया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी सही हैं। मैं नहीं जानता कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है, लेकिन मैंने पहले इस्तीफे की पेशकश की थी। मैं हार के लिए ज़िम्मेदार हूं। मुझे दूसरे नेताओं के बारे में पता नहीं है।
वहीं इन इस्तीफो के बीच अब मध्य प्रदेश में संगठन किसके हाथ होगा यह चर्चा शुरू हो गई है। प्रदेश में छह माह पहले हुए विधानसभा चुनावों में मिली आप्रत्याशित जीत के बाद उत्साही काँग्रेस को लोकसभा चुनाव में मुँह की खानी पड़ी। 2014 लोकसभा चुनाव में प्रदेश में काँग्रेस की सरकार न रहते हुए भी दो लोकसभा सीटों पर काँग्रेस पार्टी छिंदवाड़ा और गुना से चुनाव जीती थी वहीं उपचुनाव में झाबुआ-रतलाम सीट पर भी काँग्रेस के कांतिलाल भूरिया जीत कर संसद पहुँचे थे। लेकिन इस बार सिर्फ छिंदवाड़ा सीट ही पार्टी जीत सकी वह भी बहुत कम वोटों के अंतर से जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना में चारों खाने चित हो गए। अमेठी से राहुल गांधी की हार के बाद गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार को पूरे उत्तर भारत में एक बड़ी हार के रूप में देखा जा रहा है।
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कमलनाथ ने मध्य प्रदेश काँग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनने के बाद विधानसभा चुनाव तो जीत लिया लेकिन लोकसभा चुनाव में वह अपना जादू बरकरार नहीं रख पाए। यही कारण है कि अब उनके इस्तीफे की माँग जोर पकड़ने लगी है। यही नहीं सिर्फ छिंदवाड़ा सीट जीतने और प्रदेश में सभी संसदीय सीटों पर हार को लेकर भी कमलनाथ पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं। इस बीच प्रदेश संगठन का अध्यक्ष कौन हो इस पर चर्चाएं तेज हो गई हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर उनका खेमा लामबंद हो गया है तो वहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी इस दौड़ में शामिल हैं जिन्हें दिग्विजय सिंह का समर्थन मिला हुआ है हालांकि वह विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनाव हार चुके हैं। तो वहीं पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कमलनाथ से पहले प्रदेश अध्यक्ष रहे अरूण यादव को फिर से काँग्रेस कमेटी की कमान सौंपे जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। प्रदेश में पिछड़े वर्ग की आबादी को ध्यान में रखते हुए अरूण यादव को एक बार फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने पिछले दिनों पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण भी दिया है।
इन सबके बीच युवा चेहरों को तरजीह दिए जाने को लेकर यूथ काँग्रेस भी लामबंद हो रही है। प्रदेश काँग्रेस कमेटी में कार्यकारी अध्यक्ष और सरकार में कैबिनेट मंत्री जीतू पटवारी को अध्यक्ष बनाने को लेकर भी एक खेमा सक्रिय हो गया है। जीतू पटवारी अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी में राष्ट्रीय सचिव भी हैं। वहीं विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने 04 कार्यकारी अध्यक्षों सहित 19 उपाध्यक्ष, 25 महासचिव, 40 सचिव और 8 नए जिला अध्यक्ष बनाए थे। चार कार्यकारी अध्यक्षों में दो जीतू पटवारी और बाला बच्चन सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं तो दो रामनिवास रावत और सुरेन्द्र चौधरी कुछ खास करने में नाकाम रहे हैं।
इस बीच आदिवासी चेहरे को प्रदेश की कमान सौंपने को लेकर भी चर्चा जोरों पर है। हालांकि कांतिलाल भूरिया आदिवासी नेता के रूप में प्रदेश काँग्रेस संगठन की कमान संभाल चुके हैं लेकिन वह कुछ बेहतर कर पाने में सफल नहीं रहे। वहीं युवा आदिवासी नेता के तौर पर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री उमंग सिंगार का नाम भी चर्चाओं में है। उमंग सिंगार आदिवासी नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष तथा प्रदेश की उपमुख्यमंत्री रही जमुना देवी के भतीजे हैं।
लेकिन इन सब चर्चाओं के बीच अभी यह तय कर पाना बड़ी टेढ़ी खीर है कि आखिर मध्य प्रदेश काँग्रेस संगठन की कमान किसको सौंपी जाती है। यह तभी स्पष्ट हो पाएगा जब पूरी तरह से प्रदेश संगठन राहुल गांधी को अपने इस्तीफे सौंप दे और फिर राहुल गाँधी या फिर अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी का जो भी अध्यक्ष हो वह यह निर्णय करे कि उसे राष्ट्रीय स्तर पर किन नेताओं के साथ काम करना है और राज्यों में कमजोर हो चुके संगठन को मजबूती कैसे देनी है साथ ही सूबों में कैसे नेतृत्व की दरकार है।
-दिनेश शुक्ल