हाथरस सत्संग हादसे से उपजते सवालों के जवाब आखिर कौन देगा?

By कमलेश पांडे | Jul 05, 2024

लीजिए, भीड़ प्रबंधन (क्राउड मैनेजमेंट) में विफल सेवादारों और उनको 'बैक सपोर्ट' दे रहे प्रशासनिक हुक्मरानों की नादानी या लापरवाही या फिर दोनों से एक और जघन्य हादसा हो गया, जिसने 121 लोगों की इहलीला समाप्त कर डाली। वहीं, इस घटना में अन्य 38 लोग घायल भी हुए हैं। इस मामले की गम्भीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मृतकों में उत्तरप्रदेश के 18 जिलों सहित हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश के भी कई लोग  शामिल हैं। इस घटना से सिविल और पुलिस प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि उनकी लापरवाही से एक बार फिर राजनीतिक नेतृत्व लांक्षित हुआ है।


पहला सवाल यही है कि हाथरस में जिस सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में यह भगदड़ मची, जिसके बाद लोग हताहत हुए, उस बाबा का अब तक पता घटना के तत्काल बाद क्यों नहीं चला? जिस तरीके से एफआईआर में आरोपी बाबा का नाम नहीं डाला गया, वह भी चिंता की बात है। आखिर क्या हुआ, उसको धरती खा गई या पाताल निगल गया, पुलिस प्रशासन को यह बताना होगा, या फिर उसे ढूंढकर कानून के कठघरे में लाना होगा, ताकि समुचित सजा मुकर्रर करवाई जा सके।


दूसरा सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में हाथरस जिले के थाना सिकंदराराऊ क्षेत्र के गांव रतीभानपुर में आयोजित भोले बाबा के सत्संग में अचानक भगदड़ मच गई, लेकिन उससे पहले भीड़ नियंत्रण यानी क्राउड मैनेजमेंट के बारे में सोचा तक नहीं गया। यह उस कथित बाबा और उनके सेवादारों की तो लापरवाही है ही, लेकिन स्थानीय अनुमण्डल और जिला प्रशासन भी इस हादसे के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। क्योंकि किसी भी कार्यक्रम के आयोजन के लिए पूर्व प्रशासनिक स्वीकृति की आवश्यकता इसलिए पड़ती है ताकि समय रहते ही क्षेत्र विशेष में नागरिक सुविधाओं की आपूर्ति की जा सके, सुरक्षा के समुचित उपाय किये जा सके या फिर कोई आकस्मिक दुर्घटना होने पर लोगों को हताहत होने से बचाया जा सके। 

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तीसरा सवाल यह है कि इतनी बड़ी जुटान के बाद भी प्रशासन हाथ पर हाथ धरकर क्यों बैठा रहा? आखिर उसने एम्बुलेंस, अग्निशमन दस्ता, चिकित्सा सुविधाएं, आवागमन व्यवस्था, पेयजल, चलंत शौचालय आदि के लिए न तो कोई पूर्व उपाय किये और न ही तात्कालिक प्रबंध! क्योंकि यदि ऐसा किया गया होता तो इतनी बड़ी संख्या में लोग हताहत नहीं होते। वहीं, हादसे के बाद भी जो प्रशासनिक संवेदनशून्यता और व्यवस्थागत लाचारी/लापरवाही सामने आई, उसने भी अब तक हुए जनस्वास्थ्यगत विकास के तमाम दावों की कलई खोल दिए। 


चतुर्थ सवाल यह है कि इस हादसे के लिए जिम्मेदार कौन है? अनुमण्डल प्रशासन, जिला प्रशासन, राज्य प्रशासन या फिर केंद्र की बैशाखी वाली गठबंधन सरकार? या फिर वह निजीकरण, जो सरकारी संस्थाओं को दीमक की तरह चाट चुका है अपने निजी लाभ के लिए! और इसकी हकीकत तब सामने आती है जब कोई बड़ी घटना-दुर्घटना या हादसे हो जाते हैं।


पांचवां सवाल यह है कि इस हादसे के मृतकों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, जो दलित और ओबीसी वर्ग के हैं। बावजूद इसके, इतनी बड़ी लापरवाही के बाद भी मृतकों के लिए जो महज 2-2 लाख रुपये के मुआवजे घोषित किये गए हैं, वो ये जाहिर करते हैं कि हमारे देश-प्रदेश में गरीब लोगों के जान की कोई कीमत नहीं है। जबकि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जो प्रशासनिक विफलता का जीता-जागता उदाहरण है। इसलिए मुआवजे की राशि भी बढ़ाकर कम से कम 10-10 लाख रुपये किये जाने चाहिए। यही विपक्षी दलों की मांग भी है।


छठा सवाल यह है कि सरकारी व्यवस्था आखिर कब सुधरेगी? क्योंकि राहत विभाग की ओर से दी गई सूची के अनुसार, इस हादसे में अब तक 121 लोगों की मौत हो चुकी है और 28 लोग घायल हैं। सभी घायलों का अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। लेकिन सरकारी अस्पतालों की कुव्यवस्था किसी से छिपी हुई नहीं है, जहां बेड पर सफेद चादर और फल की टोकरी मुख्यमंत्री के आगमन के समय ही नजर आती है, अन्यथा नहीं। 


सातवां सवाल यह है कि पूर्व की घटनाओं की तरह इस हादसे की भी लीपापोती तो नहीं की जाएगी। क्योंकि इस घटना के मृतकों में सबसे ज्यादा लगभग 112 महिलाएं शामिल हैं। कहीं, आधी आबादी के खिलाफ यह कोई साजिश तो नहीं है। चूंकि हाथरस भगदड़ स्थल की जांच फोरेंसिक टीम ने की है। इसलिए इसे भी स्पष्ट करना होगा।लोगों को उम्मीद है कि सरकार और प्रशासन इस घटना पर लीपापोती से बाज आएगा और मृतकों के परिजनों को न्याय उपलब्ध करवाएगा। अन्यथा विपक्ष ने भी दो टूक कह दिया है कि यदि पीड़ितों को न्याय नहीं मिला वो चरणबद्ध आंदोलन करेंगे और दोषियों को सजा दिलाएंगे। क्योंकि इस घटना ने सभी बड़े नेताओं और अधिकारियों को एक बार फिर से विचलित कर दिया है।


आठवां सवाल यह है कि क्या यह घटना 'भोले बाबा' उर्फ नारायण साकार हरि द्वारा आयोजित सत्संग के दौरान उनकी चरण धुली लेने के क्रम में घटित हुई है, जैसी की चर्चा भी है। इसलिए फोरेंसिक टीम को अपने डॉग स्क्वॉड के साथ इस नजरिए से भी जांच करनी चाहिए। 


नवम सवाल यह है कि जब पुलिस प्रशासन ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 105, 110, 126(2), 223 और 238 के तहत 'मुख्य सेवादार' कहे जाने वाले वेद प्रकाश मधुकर और इस धार्मिक कार्यक्रम के अन्य आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। तो फिर पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में बाबा का नाम गायब क्यों है? इतना ही नहीं, जब एफआईआर में कहा गया है कि ढाई लाख से अधिक श्रद्धालुओं की भीड इकट्ठी हो गई थी, जिसके कारण और आयोजक द्वारा अनुमति की शर्तों का पालन न किए जाने के कारण यातायात अवरुद्ध हो गया, तो फिर प्रशासन एक्टिव क्यों नहीं हुआ। आरोप तो यह भी है कि आयोजनकर्ताओं के द्वारा कार्यक्रम में जुटी भीड की संख्या छिपाकर और अधिक लोगों को बुलाया गया था। ऐसे में फिर वही सवाल कि तब प्रशासन क्या कर रहा था? वह सोया हुआ क्यों था? उसने एहतियाती उपाय समय रहते क्यों नहीं किये। यह जांच का विषय है। वहीं, जांच होने तक वहां के डीएम, एसएसपी और एसडीएम को अविलंब बदला जाना चाहिए।


सुकून की बात यह है कि इस हादसे को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने जो सख्त रुख अपनाया है, वह महज दिखावा नहीं है बल्कि राजनीतिक संवेदनशीलता का परिचायक है। इससे पता चलता है कि फायर ब्रांड हिन्दू मुख्यमंत्री और उनके मातहत प्रशासन ऐसे धार्मिक आयोजनों में हुई लापरवाही के प्रति संवेदनशील है। वहीं, प्रतिपक्ष का आरोप है कि ये हिंदुओं के हित चिंतक नहीं, बल्कि धर्म के धंधेबाज हैं। ये पूंजीवादी ताकतों के धार्मिक एजेंडे के मुखौटे हैं, ताकि वर्गीय अंतर्विरोधों को भुलावे में रखकर मजदूर क्रांति होने से रोका जाए। 


भले ही सीएम योगी ने गत मंगलवार को कहा था कि हमारी सरकार इस घटना की तह में जाकर साजिशकर्ताओं और जिम्मेदारों को उचित सजा देने का काम करेगी। राज्य सरकार इस पूरी घटना की जांच करा रही है। हम इसकी तह में जाएंगे और देखेंगे कि यह हादसा है या साजिश? लेकिन घड़ियाली आंसू हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर कहा गया कि हाथरस में ग़रीब लोग अपनी तकलीफ़ों का हल पाने के लिए जिस ढोंगी बाबा के कथित सत्संग में गए थे, वह घटना के बाद से ही फ़रार है। दूसरों के गम दूर करने की डींगें हांकने वाला अपने भक्तों के सबसे दुखद क्षणों में ही नौ-दो ग्यारह हो गया। भगवान के नाम पर लाखों को लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने वाला सूरज पाल अब इतनी हिम्मत भी नहीं जुटा पाया कि अपने भक्तों के बीच आकर दो शब्द कह सके। उसपर 5 मुक़दमे पहले से दर्ज हैं, कोरोना के टाईम पर भी इसने नियमों की अनदेखी की थी। इसलिए सवाल ये है कि इस पाखंडी का नाम एफआईआर में क्यों नहीं है?


समझा जाता है कि इस सार्वजनिक धिक्कार के बाद यानी घटना के एक दिन बाद कथित बाबा ने अपनी सफाई दी और कहा कि मैंने भगदड़ से बहुत पहले वह सत्संग स्थल छोड़ दिया था। इसलिए उन्होंने इस भगदड़ के लिए असामाजिक तत्वों को जिम्मेदार ठहराया। वहीं, उन्होंने ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉ ए पी सिंह को अधिकृत किया है। बाबा के शब्दों में.....मृतकों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना है, प्रभु से प्रार्थना है कि जल्द स्वस्थ करें।


बकौल मुख्यमंत्री योगी, सेवादार स्थानीय प्रशासन के अफसरों को ऐसे आयोजनों में अंदर नहीं जाने देते। ऐसे में अधिकारियों को लगा कि धार्मिक आयोजन है, इसलिए सेवादारों को ही जिम्मेदारी संभालनी चाहिए। बड़े कार्यक्रम इसी तरह से होते हैं। पुलिस सुरक्षा के सबसे बाहरी घेरे में रहती है। लोग भी धार्मिक आयोजनों में अनुशासित रहते हैं। लेकिन आयोजन जब कुछ स्वार्थी लोगों के औजार बन जाते हैं तो यह अनुशासन भंग हो जाता है। इतना ही नहीं, घटना के बाद भी उन्होंने इसे छिपाने की कोशिश की। जब घायलों को अस्पताल ले जाया जा रहा था तो सेवादार भाग निकले। 


यदि ऐसा है तो यह और भी गम्भीर बात है। इसलिए मुख्यमंत्री के मुताबिक, कुछ विशेष टीमें बनाई गई हैं, जो प्रारंभिक जांच के बाद आगे की कार्रवाई करेंगे। फिर भी लोग यहां तक कह चुके हैं कि जिस तरह से दवा घटिया होती है तो बीमारी बढ़ती है। उसी तरह से जब कानून घटिया होता है तो अराजकता बढ़ती है। लिहाजा, धर्म को नियंत्रित करने के लिए भी अब समावेशी कानून बनाने की जरूरत है। इसलिए योगी-मोदी सरकार को ही इस मामले में भी कुछ करना होगा।


निःसन्देह, हाथरस की घटना अत्यंत ही दु:खद और हृदयविदारक है। इसलिए योगी सरकार ने इस पूरे मामले के लिए एडिशनल डीजी आगरा की अध्यक्षता में मंडलायुक्त अलीगढ़ को शामिल करते हुए एक टीम बनाकर जांच शुरू की है। ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह हादसा है या कोई साजिश। वहीं, राज्य सरकार ने हाथरस की इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की जांच माननीय उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग से ज्यूडिशियल इंक्वायरी भी करवाने की घोषणा की है। जिसमें पूर्व आईएएस अधिकारी हेमंत राव और पूर्व आईपीएस अधिकारी भवेश कुमार सिंह को भी शामिल किया गया है।


बहरहाल, सरकार को चाहिए कि वह ऐसी घटनाओं की हुई जांच के मद्देनजर एक श्वेत पत्र जारी करे, ताकि आमलोगों को पता चल सके कि अब तक के उसके जांच आयोगों की उपलब्धि क्या है और अबतक कितने लोगों को सजा हुई है। यदि ऐसा संभव नहीं है तो इस हृदयविदारक हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए न केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बल्कि उनके तमाम विभागीय मंत्रियों व उनके मातहत कार्यरत वरिष्ठ अधिकारियों को अपने अपने पद से अविलंब इस्तीफा दे देना चाहिए। क्योंकि अब यह तय हो चुका है कि मौजूदा राजनीतिक व प्रशासनिक टीम आमलोगों के जान-माल की हिफाजत के योग्य नहीं है।


अंत में सवाल यह भी है कि क्या ऐसे बड़े आयोजनों की संभावित अनहोनी के बारे में पूर्वानुमान आम जनता लगाएगी, एहतियाती उपाय भी वह खुद करेगी, जबकि उसकी गाढ़ी कमाई पर करारोपण पर करारोपण करके जनप्रतिनिधियों की फौज और नौकरशाही से जुड़े लोग गुलछर्रे उड़ाएंगे और अपनी नैतिक जिम्मेदारी पर मुंह निपोड़ लेंगे। यह बेहद शर्मनाक लोकतांत्रिक प्रचलन है। इसे अविलंब बन्द किया जाना चाहिए। सबकी जिम्मेदारी अन्यथा पद त्याग फिक्स किया जाना चाहिए। जी, कानूनन, ताकि भविष्य में ऐसी बड़ी लापरवाही नहीं देखनी-सुननी पड़े।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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