By अंकित सिंह | Jan 03, 2022
परिवारवाद की राजनीति से खुद को दूर बताने वाली भाजपा 2019 में बदायूं लोकसभा सीट से संघमित्रा मौर्य को टिकट देकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। संघमित्रा मौर्य उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य कभी बसपा के कद्दावर नेता रहे। लेकिन 2017 के चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा में शामिल होना जरूरी समझा। पार्टी ने भी उन्हें उपहार देते हुए योगी सरकार में मंत्री बना दिया। हालांकि आश्चर्य की बात यह भी रही कि स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे कद्दावर नेता की बेटी को समाजवादी पार्टी के गढ़ बदायूं से टिकट देकर कहीं ना कहीं भाजपा ने बड़ा दांव खेला। संघमित्रा का जन्म 3 जनवरी 1985 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने लखनऊ मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई की है।
पिता की वजह से संघमित्रा मौर्य की राजनीति में दिलचस्पी लगातार रही है। वर्ष 2010 में वह एटा में जिला पंचायत सदस्य चुनी गई थीं। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में वह एटा जिले की अलीगंज विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा 2014 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा था लेकिन यहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उस वक्त तक उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा के दिग्गज नेता थे। हालांकि पिता के पार्टी बदलने के साथ ही संघमित्र मौर्य ने भी भाजपा का दामन थाम लिया और इन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में बदायूं से पार्टी की ओर से टिकट दिया गया।
बदायूं में समाजवादी पार्टी के लंबे समय से चले आ रहे वर्चस्व को तोड़ते हुए इन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में वहां भाजपा का पताखा लहराया। कांटे की टक्कर वाले मुकाबले में संघमित्रा मौर्य ने मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव को 18454 वोटों से हराया। बदायूं सीट पर सपा का लंबे समय से दबदबा रहा है। 2009 और 2014 में यहां से मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेंद्र यादव ने चुनाव ने जीत हासिल की थी। कुल मिलाकर देखें तो संघमित्रा मौर्य की गिनती भाजपा के तेजतर्रार महिला नेताओं में होती है। वह संसद में भी काफी सक्रिय रहती हैं तो वही अपने लोकसभा क्षेत्र में भी लगातार दौरे पर रहती हैं। पिता की सियासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी संघमित्रा मौर्य ने बखूबी निभाया है।