कौन हैं बिलकिस बानो, जिनका 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार हुआ था? ऐसे छूट गए गैंगरेप के 11 गुनहगार

By अभिनय आकाश | Aug 17, 2022

हम जिस समाज में रहते हैं वहां बलात्कार, पीड़िताओं के लिए आगे बढ़ना। एक आम जिंदगी जीना कितना मुश्किल होता है कि उसके लिए थोड़ी छूट लेकर असंभव शब्द का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। कितनी महिलाएं आज के दौर में भी ऐसी हैं जो आपबीती की शिकायत तक नहीं करतीं। संभवत: इसीलिए संपादकीय नीति और कानून दोनों ये कहते हैं कि बलात्कार पीड़िता की पहचान जाहिर नहीं की जा सकती है। ऐसा करने पर सजा का प्रावधान भी है। ऐसे में अगर सामूहिक बलात्कार और फिर पूरे परिवार की हत्या का मामला एक नाम से पहचाना जाने लगे तो आपको समझ जाना चाहिए कि बात अपराध की जघन्यता तक सीमित नहीं रही होगी। और भी बहुत कुछ हुआ होगा। हम बात कर रहे हैं 2002 के बिलकिस बानो गैंगरेप और सामूहिक हत्या की। गुजरात दंगों के सबसे चर्चित मामलों में से एक बिलकिस बानो मामला दो दशक बाद चर्चा में आया। ऐसे में आज आपको बताएंगे कि ये मामला क्या था और दोषियों को किस आधार पर छोड़ा गया। 

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11 दोषी गुजरात सरकार की सजा माफी नीति के तहत रिहा 

जिस दिन लाल किले की प्राचीर से महिलाओं के सम्मान की बात कही गई। ठीक उसी दिन गुजरात दंगों के दौरान एक महिला का गैंगरेप करके परिवार की हत्या करने वाले 11 दोषी गोधरा की जेल से बाहर आ गए। बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सभी 11दोषी गुजरात सरकार की सजा माफी नीति के तहत गोधरा उप-जेल से रिहा किये गए। गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन लोगों की रिहाई की मंजूरी दी थी।

तीन चरणों में रिहा किया जाएगा 

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 जून को सभी राज्यों को पत्र लिखकर बताया था कि भारत की आज़ादी की 76वीं सालगिरह पर मनाये जा रहे आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान कुछ श्रेणियों के बंदियों की सज़ा माफ़ कर उन्हें तीन चरणों में रिहा करने का प्रस्ताव है। गृह मंत्रालय के अनुसारक पात्रता मानदंडों को पूरा करने वाले कैदियों को तीन चरणों में रिहा किया जाएगा। 15 अगस्त, 2022, 26 जनवरी, 2023 और 15 अगस्त, 2023। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था।

बिलकिस बानो कौन हैं और 2002 में उनके साथ क्या हुआ था?

 साल के दूसरे महीने का 27वां दिन एक दुखद घटना के साथ इतिहास के पन्नों में दर्ज है। दरअसल 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन से रवाना हुई साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में उन्मादी भीड़ ने आग लगा दी। इस भीषण अग्निकांड में अयोध्या से लौट रहे तीर्थयात्रियों और कारसेवकों की मौत हो गई। गोधरा स्टेशन पर पिछले दिन की घटना के बाद राज्य में हिंसा भड़कने के बाद बिलकिस दाहोद जिले के राधिकपुर गांव से निकल गई। बिलकिस के साथ उसकी बेटी सालेहा, जो उस समय साढ़े तीन साल की थी, और उसके परिवार के 15 अन्य सदस्य थे। कुछ दिन पहले बकर-ईद के अवसर पर उनके गांव में हुई आगजनी और लूटपाट के डर से वे भाग गए। 3 मार्च 2002 को परिजन छप्परवाड़ गांव पहुंचे। चार्जशीट के मुताबिक उन पर हंसिया, तलवार और लाठियों से लैस करीब 20-30 लोगों ने हमला किया था। हमलावरों में 11 आरोपी युवक भी थे। बिलकिस, उसकी मां और तीन अन्य महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और उन्हें बेरहमी से पीटा गया। राधिकपुर गांव के मुसलमानों के 17 सदस्यीय समूह में से आठ मृत पाए गए, छह लापता थे। हमले में केवल बिलकिस, एक आदमी और एक तीन साल का बच्चा बच गया। हमले के बाद कम से कम तीन घंटे तक बिलकिस बेहोश रही। होश में आने के बाद, उसने एक आदिवासी महिला से कपड़े लिए और एक होमगार्ड से मिली जो उन्हें लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन ले गया। उन्होंने हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी के पास शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई के अनुसार इस शिकायत में भौतिक तथ्यों को दबाया और उसकी शिकायत का एक विकृत और छोटा संस्करण लिखा। गोधरा राहत शिविर पहुंचने के बाद ही बिलकिस को मेडिकल जांच के लिए सरकारी अस्पताल ले जाया गया। उसके मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और सुप्रीम कोर्ट ने उठाया। फिर सीबीआई द्वारा जांच का आदेश दिए गए।

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सीबीआई ने अपनी जांच में क्या पाया?

सीबीआई ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी की सुरक्षा के लिए पोस्टमार्टम परीक्षण को बहुत ही कम तरीके से किया गया था। सीबीआई जांचकर्ताओं ने हमले में मारे गए लोगों के शव निकाले और कहा कि सात शवों में से किसी में भी खोपड़ी नहीं थी।सीबीआई के मुताबिक पोस्टमार्टम के बाद लाशों के सिर काट दिए गए थे, ताकि शवों की शिनाख्त न हो सके।

गुजरात से बाहर महाराष्ट्र

बिलकिस बानो को जान से मारने की धमकी मिलने के बाद मुकदमे को गुजरात से बाहर महाराष्ट्र ले जाया गया। मुंबई की अदालत में, छह पुलिस अधिकारियों और एक सरकारी डॉक्टर सहित 19 लोगों के खिलाफ आरोप दायर किए गए थे। जनवरी 2008 में एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या, गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत आरोपों का दोषी ठहराया। हेड कांस्टेबल को आरोपी को बचाने के लिए "गलत रिकॉर्ड बनाने" का दोषी ठहराया गया था। अदालत ने सबूतों के अभाव में सात लोगों को बरी कर दिया। सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई। अदालत ने माना कि जसवंतभाई नई, गोविंदभाई नई और नरेश कुमार मोर्धिया (मृतक) ने बिलकिस के साथ बलात्कार किया था, जबकि शैलेश भट्ट ने उसकी बेटी सालेहा को जमीन पर "पटकर" मार डाला था। दोषी ठहराए गए अन्य लोगों में राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप वोहानिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, नितेश भट्ट, रमेश चंदना और हेड कांस्टेबल सोमभाई गोरी शामिल हैं। कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।

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उसके बाद क्या हुआ?

मई 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार मामले में 11 लोगों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास को बरकरार रखा और पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों सहित सात लोगों को बरी कर दिया। अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकिस को दो सप्ताह के भीतर मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपये देने का निर्देश दिया। उसने 5 लाख रुपये के मुआवजे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और शीर्ष अदालत के समक्ष एक याचिका में राज्य सरकार से अनुकरणीय मुआवजे की मांग की थी।

2014 की नहीं 1992 की नीति के तहत हुई सज़ा माफ़

गुजरात में 2014 में नयी और संशोधित माफी नीति प्रभाव में आयी थी, जो अब भी प्रभावी है। दोषियों की श्रेणियों के बारे में विस्तृत दिशानिर्देश हैं जिनमें यह बताया गया है कि किन्हें राहत दी जा सकती है और किन्हें नहीं। दो या दो से अधिक व्यक्तियों की सामूहिक हत्या के लिए और बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के दोषी सज़ायाफ़्ता कैदियों की सज़ा माफ़ नहीं की जाएगी। चूंकि, 2008 में दोषसिद्धि हुयी थी, उच्चतम न्यायालय ने 1992 की माफी नीति के तहत हमें इस मामले में विचार करने का निर्देश दिया, जो 2008 में प्रभाव में था। उस नीति में विशेष रूप से यह स्पष्ट नहीं था कि किसे माफी दी जा सकती है और किसे नहीं। वर्ष 2014 में आयी नीति की तुलना में वह उतनी विस्तृत नहीं थी -अभिनय आकाश

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