By अंकित सिंह | Nov 24, 2020
बिहार विधानसभा में सोमवार को एआईएमआईएम के एक नवनिर्वाचित सदस्य ने उर्दू में शपथ लेते हुए ‘हिंदुस्तान’ शब्द के स्थान पर ‘भारत’ शब्द का उपयोग किया और इसी नाम के उपयोग की वकालत भी की। उर्दू में शपथ ग्रहण के दौरान ‘हिंन्दुस्तान’ के स्थान पर ‘भारत’ शब्द के उपयोग को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। असदुद्दीन ओवैसी कह पार्टी एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने उर्दू में शपथ लेने के क्रम में उसके प्रारूप में लिखित ‘हिंदुस्तान’ के बजाय संविधान में प्रयुक्त शब्द ‘भारत’ का उपयोग करने का अनुरोध किया। इसपर सदन के प्रोटेम स्पीकर जीतन राम मांझी ने कहा कि भारत का संविधान तो हमेशा से चला आ रहा है, आज कोई नई बात नहीं है, सभी उसी नाम पर शपथ लेते हैं। शपथ ग्रहण के बाद जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया कि उन्हें ‘हिंदुस्तान’ शब्द से क्या आपत्ति है, इमान ने कहा, मुझे इस शब्द को लेकर कोई आपत्ति नहीं थी, मात्र एक संशोधन था।
सबसे पहले आपको यह बता देते हैं कि अख्तरुल इमान पूर्णिया के अमौर विधानसभा क्षेत्र से विधायक है। इन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू के सबा जफर को हराया है। इमान के राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई थी। 1985 में उन्होंने राजनीतिक तौर पर खुद को आगे बढ़ाने की शुरुआत की। 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने कोचाधामन से राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता भी। 2010 में वह उस सीट को बचाने में कामयाब रहे। कोचाधामन से वह 2014 तक विधायक रहे। 2013 में अख्तरुल इमान अचानक सुर्खियों में आ गए। उन्होंने योगासन के सूर्य नमस्कार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। सरकार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को लागू करने का आरोप लगाया।
2014 में अख्तरुल इमान ने राष्ट्रीय जनता दल का दामन छोड़ जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने किशनगंज सीट से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा पर मतदान के दिन से 10 दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस के मोहम्मद अंसारउल हक का यह कहते हुए समर्थन कर दिया कि वह मुसलमानों का वोट बढ़ते नहीं देना चाहते हैं। इसके बाद अख्तरुल इमान की राजनीति हैदराबाद के एआईएमआईएम की तरफ झुकने लगी। 2015 में वह इसके सदस्य बने और कोचाधामन से एक बार फिर से बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा। रैलियों में पार्टी के कार्यकर्ता इन्हें शेरे-ए-बिहार बुलाते थे और बिहार का असदुद्दीन ओवैसी के तौर पर पेश करते थे।
इसी दौरान अख्तरुल इमान ने कहा था कि जब पासवान और यादव समाज के लोगों की अपनी पॉलिटिकल पार्टी हो सकती है तो फिर मुसलमानों का क्यों नहीं हो सकती है। हालांकि 2015 में वह जदयू के मुजाहिदीन आलम से चुनाव हार गए। लेकिन वह एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने एक बार फिर से किशनगंज सीट से अपनी उम्मीदवारी ठोकी लेकिन इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इमाम लगातार सीमांचल को स्पेशल स्टेटस देने की मांग करते रहे हैं। बिहार में मुस्लिम ध्रुविकरण को लेकर उनकी राजनीति काफी चमकदार रह सकती है। जिस तरीके से उन्होंने शुरुआत में ही इतनी सुर्खियां बटोर ली है, कहीं ना कहीं आने वाले दिनों में वह बिहार में मुसलमानों के नेता के तौर पर उभर सकते हैं।