By अंकित सिंह | Nov 22, 2023
राजस्थान में 25 नवंबर को मतदान होने हैं। 3 दिसंबर को इसके नतीजे होंगे। राजस्थान में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। दोनों ही दल अपने-अपने हिसाब से जातीय समीकरण को साधने की पूरी कोशिश में हैं। हालांकि, राजस्थान में कांग्रेस के लिए एक चुनौती इस वक्त बड़ी बनती हुई दिखाई दे रही है और यह चुनौती गुर्जर समाज के वोट बैंक को अपने साथ रखने की है।
राजस्थान में दावा किया जा रहा है कि गुर्जर समाज कांग्रेस से पूरी तरीके से नाराज है। राजस्थान में करीब 50 विधानसभा सीटों पर गुर्जर समाज के पकड़ है। 2018 में गुर्जर समाज ने कांग्रेस के पक्ष में बढ़-कर कर वोट दिया था। इसका बड़ा कारण यह था कि गुर्जरों को यह लगा था कि कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। उस समय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ही थे। सचिन पायलट ने जमीन पर पार्टी के लिए काफी काम किया था। लेकिन जब सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो कहीं ना कहीं गुर्जरों में जबरदस्त नाराज की देखने को मिली। 2018 के चुनावों में, कांग्रेस ने 11 गुर्जर उम्मीदवार उतारे और उनमें से आठ विजयी हुए थे।
गुर्जरों की महत्ता को देखते हुए इस वक्त बीजेपी और कांग्रेस में इस समाज को साधने की पूरी कोशिश हो रही है। भाजपा ने जहां 10 गुर्जर उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस ने 11 को टिकट दिया है। 2018 में कांग्रेस के 8 गुर्जर विधायक चुने गए थे। भाजपा कहीं ना कहीं गुर्जर समाज के वोट बैंक को लेकर पूरी तरीके से सक्रिय नजर आ रही है। साथ ही साथ सचिन पायलट को भी उनके गढ़ में घेरने की तैयारी में है। इस वक्त देखे तो गुर्जर समाज खुलकर भाजपा का समर्थन कर रहे हैं और यह खुद कांग्रेस पार्टी के नेताओं को भी पता चलने लगा है। यही कारण है कि कहीं ना कहीं भाजपा के बड़े नेताओं के निशाने पर सचिन पायलट की तुलना में अशोक गहलोत ज्यादा है। इस बार गुर्जर बेल्ट में खासकर पूर्वी राजस्थान में बीजेपी की उम्मीदें ज्यादा बढ़ी हुई हैं। भाजपा की ओर गुर्जर के झुकाव का एक कारण यह भी है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल जनवरी में गुर्जरों के देवता देवनारायण के 1,111वें 'अवतरण महोत्सव' के असवर पर भीलवाड़ा में एक कार्यक्रम को संबोधित किया था।
कांग्रेस आलाकमान के लिए राजस्थान की चुनौती पिछले तीन-चार सालों से सिर दर्द की स्थिति बनी हुई है। सचिन पायलट समेत 2020 में 18 विधायकों ने गहलोत सरकार से विद्रोह कर दिया था। सरकार को भी खतरा दिखाई देने लगा था। हालांकि कहीं ना कहीं आलाकमान की सक्रियता से सरकार बच गई और पायलट भी पार्टी में बने रहे। लेकिन अशोक गहलोत जो चाहते थे वही हुआ। सचिन पायलट को सबसे पहले उपमुख्यमंत्री पद से हटाया गया। इसके बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष से भी हटा दिया गया। इस कदम ने भी गुर्जर मतदाताओं को कांग्रेस से दूर किया है। जिस तरह गहलोत के निशाने पर पायलट रहे हैं उसने भी गुर्जरों को कांग्रेस से दूर किया है। यही कारण है कि भाजपा गुर्जरों को साधने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना कर रही है। इन सबके बीच गुर्जर बहुल इलाकों में सचिन पायलट की मांग लगातार बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। कांग्रेस के नेताओं की ओर से सचिन पायलट को प्रचार में बुलाया जा रहा है। पायलट परिवार के गढ़ माने जाने वाले दौसा के मित्रपुरा का एक गुर्जर परिवार कांग्रेस से 2018 में जीत के बाद पायलट की 'बेइज्जती' का बदला लेने की बात कह रहा है।