आज से कौन से बैंक हो गए खत्म, लोगों पर क्या पड़ेगा असर और क्यों पड़ी मर्जर की जरूरत आसान भाषा में जानें

By अभिनय आकाश | Apr 01, 2020

केंद्र सरकार के 10 सरकारी बैंको को मिलाकर चार नए बैंक बनाने के फैसले आज से लागू हो गए। 4 मार्च 2020 को वित्त मंत्री की बैठक में यह निर्णय लिया गया था। बैंक के विलय की योजना सबसे पहले दिसंबर 2018 में पेश की गई थी, जब आरबीआई ने कहा था कि अगर सरकारी बैंकों के विलय से बने बैंक इच्छित परिणाम हासिल कर लेते हैं तो भारत के भी कुछ बैंक वैश्विक स्तर के बैंकों में शामिल हो सकता है। ऐसे में आज इस फैसले के लागू होने की जरूरतों, नफा-नुकसान और इससे आपके जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से आपको बताएंगे। 

सबसे पहले जान लीजिए किन बैंकों का विलय हुआ है। 

विलय-1

पंजाब नैशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स तथा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (दूसरा सबसे बड़ा बैंक, कारोबार-17.95 लाख करोड़ रुपये)

विलय-2

केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक (चौथा सबसे बड़ा बैंक, कारोबार-15.20 लाख करोड़ रुपये)

विलय-3

यूनियन बैंक, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक (पांचवां सबसे बड़ा बैंक, कारोबार-14.6 लाख करोड़ रुपये)

विलय-4

इंडियन बैंक, इलाहाबाद बैंक (सातवां सबसे बड़ा बैंक, कारोबार-8.08 लाख करोड़ रुपये)

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मर्जर की जरूरत क्यों पड़ी

सबसे बड़ा सवाल जो हर किसी के मन में उठता है कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी। सब सही तो चल रहा था? तो जवाब है नहीं, सब सही नहीं चल रहा था। बैंकों के ऊपर कर्ज का दबाव बढ़ता जा रहा था, बैंकों की कामई खर्च के हिसाब से कम हो रही थी। आसान भाषा में कहे तो उन्हें घाटा हो रहा था। बैंकों के विलय होने के बाद उनको चलाने में लगने वाले लागत में कमी होगी और दूसरा एनपीए यानी नान परफार्मिंग एसेट भी कम होगा। कई सरकारी बैंकों का एनपीए काफी बढ़ गया है। ऐसे में सरकार के पास विलय करना मजबूरी है। जानकारों के मुताबिक कई बैंकों का एनपीए सात फीसदी के पार जा चुका है। ऐसे में विलय करने से सरकार बैंकों के एनपीए को कम कर सकेगी। 

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एनपीए कम होने से क्या फायदा होगा

सरकारी बैंकों का औसत 12 प्रतिशत के लगभग है। इन 10 सरकारी बैंकों का एनपीए पांच से सात फीसदी तक कम होने की उम्मीद है। नतीजतन बैकों को लोन देने में आसानी होगी और ग्राहकों को बड़ा बैंक नेटवर्क मिलेगा। 

अच्छी अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय वजह 

इस विलय का अंतरराष्ट्रीय कारण भी जान लीजिए। किसी भी अच्छी अर्थव्यवस्था (जिनकी जीडीपी काफी अच्छी है) वाले देशों में ज्यादा बैंक नहीं होते हैं। कई देशों में माना जाता है कि अर्थव्यवस्था को सही तौर पर चलाने के लिए पांच से 10 बड़े बैंक भी पर्याप्त हैं। 

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इससे पहले भी मोदी सरकार ने किया था बैंकों का विलय

मोदी सरकार ने ही सबसे पहले बैंकों के विलय की शुरुआत की थी। सबसे पहले भारतीय स्टेट बैंक में अपने सहयोगी पांच बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय किया था उनमें स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एवं जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, बैंक स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, भारतीय महिला बैंक (बीएमबी) शामिल हैं। इसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक और विजया बैंक का विलय हुआ था। 

अब आंकड़़ों के खेल के बाद सीधे-सीधे आपको बताते हैं कि इन बैंकों में आपका अकाउंट है तो आपको क्या फर्क पड़ने वाला है। 

सबसे पहला बदलाव आपके अकाउंट नंबर और कस्टमर आईडी बदल जाएंगे। जैसे मान लीजिए पंजाब नेशनल बैंक में ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक का विलय हो गया और आपका बैंक अकाउंट ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक में है तो आपकी खाता संख्या और कस्टमर आईडी में बदलाव होगा। बेहतर होगा कि आप अगर इन मर्ज होने वाले बैंकों के अकाउंट होल्डर हैं तो अपना ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर अपडेट करवा लें। इससे आपको किसी भी बदलाव की जानकारी मिल सकेगी। 

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दूसरा बदलाव ये होगा कि ग्राहकों को नए अकाउंट नंबर या IFSC कोड मिलेंगे, उन्हें नए डिटेल्स इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, इंश्योरंस कंपनियों, म्यूचुअल फंड, नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) आदि में अपडेट करवाने होंगे।

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तीसरे बदलाव कि बात करें तो मर्जर के बाद सभी इसीएस, एसआईपी के नए निर्देश जारी किए जाएंगे।  SIP या लोन EMI के लिए ग्राहकों को नया इंस्ट्रक्शन फॉर्म भरना पड़ सकता है। 

चौथा बदलाव: घर से दस मिनट की दूरी पर गए और बैंक से नोट निकाल लिए ऐसा नहीं होगा। मान लीजिए कि आंध्रा बैंक और यूनियन बैंक दोनों की ब्रांचे आस पास ही हैं तो फिर एक्वायर करने वाला बैंक दूसरे बैंक के ब्रांच को तो बंद करेगा ही। 

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साल 1991 के वक्त जब नरसिंह राव की सरकार थी और देश आर्थिक संकट से गुजर रहा था उस वक्त के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भी उस वक्त के रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे ए नरसीमण से कहा था कि वो एक ऐसी कमेटी बनाए जिससे 20-25 सरकारी बैंकों की बजाए आठ--दस सरकारी बैंक रह जाए। लेकिन उस वक्त ये हो न सका। यूपीए की सरकार के दौरान मनमोहन सिंह ने एक बार फिर ऐसी कोशिश की लेकिन राजनीतिक विरोध कहे या इच्छाशक्ति का आभाव की वो ऐसा चाह कर भी नहीं कर सके। 


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