सनातन धर्म पर हमला करने के लिए अचानक से इतने सारे आक्रांता कहां से आ गये हैं?

By दीपक कुमार त्यागी | Sep 18, 2023

देश में 2024 के लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ गई हैं, राजनेता मतदाताओं को हर-हाल में अपने पक्ष में करने के लिए बेहद ही व्याकुल हैं। जिसके चलते ही आजकल चंद राजनेता अपने ऊल-जलूल बयानों से देश की एकता-अखंडता, सामाजिक व धार्मिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे बयानवीर राजनेता अपने क्षणिक राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए अब तो 'सनातन धर्म' को भी निशाना बनाने से नहीं चूक रहे हैं। हालांकि अहंकार में वशीभूत यह चंद लोग भूल रहे हैं कि 'सनातन धर्म' हमारे प्यारे भारत देश की आत्मा है, मूल पहचान है, कम से कम उसे तो अपनी ओछी राजनीति के लिए निशाना ना बनाये, लेकिन वह फिर भी बाज नहीं आते हैं। आज देश में एक बार फिर से कुछ लोगों के द्वारा 'सनातन धर्म' को समाप्त करने की बात सार्वजनिक मंचों से की जाने लगी है। लेकिन यह लोग भूल जाते हैं कि सत्य, अहिंसा परोपकार आदि के मूलमंत्र के आधार पर आदिकाल से कार्य करने वाले 'सनातन धर्म' को मुस्लिम शासकों, अंग्रेजी हुकूमत व ईसाई मिशनरियों ने भी दुनिया से मिटाने के लिए हजारों वर्षों तक तरह-तरह के हथकंडे अपनाए थे, लेकिन फिर भी वह इस 'सनातन धर्म' को समाप्त नहीं कर पाये और 'सनातन धर्म' की ओजस्वी धर्म ध्वजा को दुनिया में फहराने से रोक नहीं पाए।


वैसे देखा जाए तो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऊल-जलूल बोलना आजकल हमारे देश में एक फैशन बन गया है। जिस तरह से आज हमारे प्यारे देश भारत में कुछ जिम्मेदार लोगों के द्वारा 'सनातन धर्म' के बारे में तरह-तरह की अनर्गल, तथ्यहीन बयानबाजी की जा रही है, क्या इस तरह की ऐसी झूठी या सच्ची बात किसी अन्य धर्म व मजहब के बारे में कहने की इन राजनेता व लोगों के अंदर हिम्मत है। आज अपने वोटबैंक को साधने की खातिर यह चंद राजनेता लोग 'सनातन धर्म' को निशाना बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं और एक नई झूठी तथ्यहीन परिभाषा गढ़ने के साथ जनता को 'सनातन धर्म' के खिलाफ बरगलाने में लगे हुए हैं।

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जबकि 'सनातन धर्म' के बारे में कटु सत्य यह है कि जनता के बीच सत्य, अहिंसा, परोपकार सहिष्णुता जैसे आदि कारणों से 'सनातन धर्म' आदिकाल से ही देश व दुनिया में बड़े पैमाने पर आम जनमानस के बीच स्वीकार्य है। दुनिया में यही एकमात्र धर्म ऐसा है, जिस धर्म में सत्य पर आधारित बात होती है, अगर आत्मा की बात होती है तो परमात्मा की भी बात होती है। वहीं हमारे आराध्य भगवान राम व कृष्ण आदि अगर पुरुष के रूप में हैं, तो वह मां दुर्गा-लक्ष्मी के स्त्री के रूप में भी विराजमान हैं और सम्मान के साथ पूजनीय हैं। वहीं 'सनातन धर्म' में जीव, जंतु व मानव भी हैं, तो धरा पर उपस्थित साक्षात दिव्य अलौकिक प्रकृति भी है। 'सनातन धर्म' में इतनी अधिक सरलता है कि कोई भी व्यक्ति वेद, पुराण, मंत्रों आदि को जाने बिना भी पूरे अधिकार के साथ 'सनातन धर्म' का अनुयाई हो सकता है। 'सनातन धर्म' की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसके अनुयायी ईश्वर को मानने वाले आस्तिक भी हैं और नास्तिक भी। 'सनातन धर्म' की सबसे बड़ी खूबी यह है कि हमारे घरों में स्थापित किए गए मंदिर में भी अलग तरह की देवी-देवताओं की बहुत सारी प्रतिमाएं होती हैं और धर्म में इतनी ज्यादा सरलता है कि एक परिवार के सदस्य भी अलग-अलग देवी-देवताओं के उपासक हो सकते हैं। एक ही पूजा घर में विभिन्न देवी-देवताओं की एक साथ पूजा करके विश्व का सबसे प्राचीन धर्म 'सनातन धर्म' विविधताओं के बावजूद भी समाज को एकजुट रहने का हर-पल संदेश देता है। जिस धर्म में लोगों के जीवन में अहम स्थान रखने वाली प्रकृति, जल, थल, वायु व अग्नि की भी पूजा की जाती हो। जो धर्म अपने हर अनुयायियों को यह सिखाता हो कि आप जीवन में किसी भी मानव, जीव-जंतु से ऐसा ही व्यवहार करें जैसा कि व्यवहार आप खुद दूसरे से अपने लिए चाहते हैं। जो धर्म सभी धर्मों की जननी माना जाता है आज कुछ नादान लोग उसको समाप्त करने का सपना देखने कार्य रहे हैं। उस महान 'सनातन धर्म' पर लोगों से भेदभाव करने का निराधार बेतुका आरोप लगा रहे हैं। 


वैसे भी हमारे देश के इन सभी तथाकथित बयानवीरों को यह समझना चाहिए कि 'सनातन धर्म' का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो, जिन बातों का हम लोगों के जीवन में शाश्वत महत्व हो वही बातें 'सनातन धर्म' में कही गई है। इसलिए ही दुनिया मानती है कि सत्य सनातन है, ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही 'सनातन धर्म' भी सत्य है। वह सत्य जो कि आदिकाल से दुनिया में चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा। देखा जाये तो 'सनातन धर्म' के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि का हर एक व्यक्ति के जीवन में शाश्वत महत्व है और यह तथ्य दुनिया के अन्य सभी धर्मों के उदय के पूर्व ही हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा वेदों में प्रतिपादित कर दिये गये थे। फिर भी कुछ लोग ऐसे महान धर्म को समाप्त करने की हसरत अपने दिल में पाल कर बैठे हैं। इन लोगों को समझना होगा कि आदिकाल से ही 'सनातन धर्म' हर एक व्यक्ति को अनुशासित जीवन जीने की कला सिखाने का कार्य करता है, ना कि लोगों के बीच जहर भरने का कार्य करता है। लेकिन अब देश की जनता को भी समझना होगा कि चंद राजनेता वोटबैंक के लिए बार-बार अपनी 'काठ की हांडी चढ़ाते हैं' जिसको अब चढ़ने से रोकना होगा और देश व समाज के हित में कार्य करने वाले लोगों को चुनकर आगे बढ़ाना होगा, तब ही बार-बार जहर उगलने वाले नेताओं की नफ़रत की दुकान बंद होगी और  'सनातन धर्म' के मानव जगत के उद्देश्य पूर्ण होंगे।


-दीपक कुमार त्यागी

(वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक)

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