By दिनेश शुक्ल | Jun 28, 2019
मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार बने भले ही छह माह से अधिक का समय हो गया हो लेकिन प्रदेश में गठबंधन की सरकार चला रहे कमलनाथ अपनी सरकार को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। यह असमंजस उन्हीं की सरकार में शामिल निर्दलीय, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के विधायकों के मंत्री बनाने की माँग को लेकर है। जिसको लेकर समय-समय पर यह विधायक अपनी आवाज बुलंद करते रहते हैं। यही नहीं काँग्रेस पार्टी के अंदर भी कई वरिष्ठ विधायक ऐसे हैं जिन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। प्रदेश में काँग्रेस की सरकार बनने के बाद गुटों में बटी काँग्रेस में मंत्री बनाने को लेकर बवाल मच गया था।
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मध्य प्रदेश काँग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के गुट से 07 विधायकों, ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट से 06 विधायकों और कमलनाथ के गुट से 10 विधायकों को मंत्री बनाया गया। जबकि कमलनाथ मंत्रीमंडल में कुछ ऐसे विधायक भी शामिल किए गए जिनके दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया तीनों से अच्छे संबंध हैं। कमलनाथ मंत्रिमंडल में 28 मंत्री शामिल हैं और सभी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है। सभी मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री बनाने के पीछे की वजह दिग्विजय सिंह की जिद बताई जा रही है क्योंकि उनके पुत्र जयवर्धन सिंह दूसरी बार के विधायक हैं और उन्हें राज्यमंत्री के तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता था लेकिन दिग्विजय सिंह की जिद के आगे कई जूनियर मंत्रीयों को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल गया। वहीं कमलनाथ के करीबी बारासिवनी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक प्रदीप जयसवाल को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। प्रदीप जायसवाल ने काँग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ा था उनकी जगह शिवराज सिंह चौहान के साले संजय मसानी जो ठीक चुनाव के पहले भाजपा छोड़कर काँग्रेस में शामिल हुए थे, उन्हें टिकट दे दिया गया था।
वहीं मंत्रिमंडल गठन के बाद काँग्रेस की कमलनाथ सरकार में शामिल बहुजन समाज पार्टी के दो विधायकों में शामिल पथरिया विधानसभा सीट से विधायक रामबाई और समाजवादी पार्टी के एक विधायक राजेश कुमार शुक्ला सहित तीन निर्दलीयों में से बुरहानपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुरेन्द्र सिंह शेरा ने मंत्री बनाने को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी। विधानसभा के पहले ही सत्र में रामबाई और सुरेन्द्र सिंह शेरा ने मुख्यमंत्री कमलनाथ पर खूब दबाव बनाया। वहीं काँग्रेस पार्टी के पिछोर विधानसभा से वरिष्ठ विधायक के.पी. सिंह कक्का जू, बिसाहुलाल साहू और एंदल सिंह कंसाना ने भी खूब आँखें तरेरीं।
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जबकि प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में बनी काँग्रेस सरकार गिराने को लेकर विपक्ष लगातार सक्रिय है। जिसको लेकर बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं के बयान समय-समय पर आते रहे हैं। वहीं हॉर्स ट्रेडिंग को लेकर भी प्रदेश में खूब चर्चाएं गर्म रही हैं। यही वजह है कि मुख्ययमंत्री कमलनाथ की सरकार पर अभी भी पकड़ ढीली ही है और प्रदेश में विपक्ष ने ऐसा महौल बना दिया है कि बीते छह माह के दौरान कमलनाथ सरकार अब गई कि तब गई की स्थिति बनी हुई है।
दूसरी ओर निर्दलीय, सहयोगी दलों और खुद के वरिष्ठ विधायकों के दबाव के चलते मुख्यमंत्री कमलनाथ स्थिर सरकार का संदेश दे पाने में सफल नहीं हुए हैं। यही वजह है कि वह राज्यपाल से सौजन्य भेंट करने भी जाते हैं तो मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं गर्म हो जाती हैं। मध्य प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में कुल 35 सदस्य हो सकते हैं। मुख्यमंत्री सहित 29 सदस्य इस मंत्रिमंडल में शामिल हो चुके हैं। इस हिसाब से कमलनाथ अपने मंत्रिमंडल में 6 और मंत्रियों को रख सकते हैं। वहीं 8 जुलाई 2019 से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है जिसमें बजट पास करवाने के लिए सरकार को एक बार फिर सदन में बहुमत दर्शाना होगा। जबकि मंत्रीमंडल में शामिल होने के लिए दबाव बना रहे विधायक मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर हवा दे रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ लगातार इसको टालते दिख रहे हैं। प्रदेश में 114 विधायकों सहित चार निर्दलीयों, दो बीएसपी और एक एसपी विधायक का समर्थन प्राप्त है। जहाँ बीएसपी सुप्रीमो अपनी पार्टी को सरकार में प्रतिनिधित्व देने को लेकर कमलनाथ को पत्र लिख चुकी हैं तो वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव ने भी मंत्रिमंडल में अपने इकलौते विधायक को शामिल न करने को लेकर नराजगी जताई थी। जबकि लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा में नम्बरों का गणित बदला है। अब विधानसभा में बीजेपी के 109 विधायकों की जगह 108 विधायक ही बचे हैं क्योंकि मंदसौर से बीजेपी विधायक बीएस डामोर ने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है जिसके चलते विधानसभा में बीजेपी के नम्बर कम हो गए हैं। जिसका लाभ प्रत्यक्ष और आप्रत्यक्ष रूप से काँग्रेस की कमलनाथ सरकार को मिलेगा। लेकिन अब देखने वाली बात यही होगी कि गठबंधन की सरकार चला रहे कमलनाथ मंत्रिमंडल विस्तार कब और कैसे करते हैं।
-दिनेश शुक्ल