जब वे दिन नहीं रहे तो... (व्यंग्य)

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By संतोष उत्सुक | May 22, 2020

जब वे दिन नहीं रहे तो... (व्यंग्य)

उनमें कोरोना के लक्षण तो नहीं थे लेकिन तबीयत खराब लग रही थी। सुन रखा था कि कई बार निशान नहीं दिखते लेकिन कोरोना अंदर छिपा होता है। डर लग रहा था कि कहीं टेस्ट करवाना पड़ गया और कोरोना निकला तो परेशानी बढ़ जाएगी। अभी तो वे राष्ट्रीय बंद नीति के तहत घर में थे और पत्नी द्वारा बार बार रचाए गए नए नए स्वादों का मज़ा ले रहे थे। उन्होंने भी कपड़े धोना, फैलाना, उतारना, तह लगाना सीख लिया था। प्रेस करने के बारे में उन्होंने एक दोस्त की सलाह मान ली थी कि आजकल घर से बाहर जाना नहीं है, कपड़े इस्त्री कर पहनो तो बैठे या लेटे रहने के कारण कुछ देर में ही बल पड़ जाते हैं। इसलिए बिना इस्त्री किए ही पहनना शुरू कर दिया था, बिजली और समय दोनों बच रहे थे। 

 

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तबीयत ठीक न होने के कारण परेशानी बढ़ने लगे थे, बिना चाहते हुए भी अब चाहने लगे थे कि किसी डाक्टर को दिखा ही दें। कम से कम समय रहते पता चल जाए, अगर दवा खानी हो तो किसी सहृदय पुलिसवाले से मंगाकर खा लें नहीं तो चिकित्सालय में भर्ती होकर पत्नी का सच्चा प्रेम ही प्राप्त कर लें। सोच रहे थे काश, सरकार ही उनके घर आकर उनका टेस्ट करवा देती तो पता चल जाता कि उनकी तबीयत खराब क्यूं लग रही है। एक दिन उनकी ख़ुशी का पारावार न रहा जब उन्हें पता चला कि लॉकडाउन के अगले सत्र में संभावित विधायक द्वारा बनाई गई सामाजिक स्वास्थ्य निर्माण संस्था घर घर जाकर टेस्ट करेगी। संस्था के लोग अपना डॉक्टर लेकर आए तो उन्होंने बताया कि उन्हें छत पर जाकर सांस लेने में, इधर उधर देखते हुए टहलने में या फिर जब भी पानी पीते हैं तबीयत खराब होती लगती है। 

 

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डॉक्टर ने पूछा इधर उधर क्या दिखता है तो उन्होंने बताया कि छत से दिख रहा नीला आसमान, खाली सड़कें, साफ़ सुथरे हरे वृक्ष, पक्षी, मोर, हिरण देखकर परेशान सा हो जाता हूं नीचे उतरकर पानी पीता हूं तो गले में खराश सी होने लगती है। डॉक्टर ने समझाया कि आजकल जो भी देख रहे हैं आप उसके अभ्यस्त नहीं हैं, पानी भी आप शुद्ध पी रहे हैं जो आपके गले में खराश पैदा कर रहा है। यह सब आम इंसान के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं हैं। आप छत पर टहलना बंद कर दें और पानी भी उबाल कर पिएं और यह सोच कर समय व्यतीत करें कि ज़िंदगी का यह फेज़ अस्थायी है, जब वे दिन न रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे। डॉक्टर के इस डायग्नोज़ के बाद अब उन्हें अच्छा लगने लगा था। उन्हें विशवास हो गया था कुछ दिन बाद सब पहले जैसा होने वाला है।  


- संतोष उत्सुक

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