By अनुराग गुप्ता | Feb 08, 2022
नयी दिल्ली। देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के राष्ट्रपति बनने की कहानी काफी दिलचस्प है। साल 1967 में कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। जबकि उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस के. सुब्बाराव चुनाव लड़ रहे। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष ने मोर्चा खोल रखा था। फिर भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हार नहीं मानी और समाजवादी जयप्रकाश नारायण को याद किया।
राष्ट्रपति चुनाव
राजनीति से संन्यास ले चुके जयप्रकाश नारायण ने 22 अप्रैल, 1967 को एक बयान जारी किया था। जिसके बाद डॉ. जाकिर हुसैन का समर्थन करने वाले सामने आए और कांग्रेस एक हो गया। 6 मई, 1967 को देश के तीसरे राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने वाले थे। तभी शाम के वक्त ऑल इंडिया रेडिया का प्रसारण बीच में रोक दिया गया था और फिर राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों की घोषणा हुई।
राष्ट्रपति चुनाव में कुल 8,38,170 वोट पड़े थे। जिसमें से डॉ. जाकिर हुसैन को 4,71,244 वोट मिले थे। जबकि के. सुब्बाराव को 3,63,971 वोट मिले और इस तरह देश को पहला मुस्लिम राष्ट्रपति मिला। उस दिन पुरानी दिल्ली से एक जुलूस राष्ट्रपति भवन तक निकला। मुस्लिम समुदाय बहुत ज्यादा उत्साहित था क्योंकि उनके बीच का एक व्यक्ति सबसे बड़े पद पर पहुंच गया था।
डॉ. जाकिर हुसैन ने 13 मई, 1967 को संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। उस वक्त उन्होंने एक भाषण भी दिया था, जो काफी चर्चित हुआ था। 8 फरवरी, 1897 को आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में जन्में डॉ. जाकिर हुसैन की उपलब्धियां शिक्षाविद के तौर पर लगातार बढ़ती रही हैं। उनका बचपन काफी कठिनाईयों भरा रहा है। महज 10 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया था और फिर 4 साल बाद मां का निधन हो गया था। इसके बावजूद उन्होंने अपने हौसले को कभी कम नहीं होने दिया।
जाकिर हुसैन ने मजबूत इच्छा शक्ति के साथ आगे का सफर तय करने का निश्चय किया और उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी चले गए और फिर वहा के लौटने के बाद महज 29 साल की उम्र में जामिया मिलिया इस्लामिया के उप कुलपति बन गए। इतना ही नहीं जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की नींव रखने वाले 18 लोगों में से एक थे। साल 1920 में इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी और फिर 1925 में इसे अलीगढ़ से दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया था।
पहला कार्यकाल नहीं कर पाए थे पूरा
शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य करने वाले जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था। हालांकि वो अपना पहला कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। क्योंकि 1956 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जाकिर हुसैन को राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी थी लेकिन तबीयत सही नहीं होने की वजह से उन्होंने पंडितजी को इनकार कर दिया था। इसके बावजूद जब पंडितजी ने उनसे बात की तो वह तमाम परेशानियों के बावजूद बिहार चले गए और राज्यपाल पद की जिम्मेदारी संभाली।