Karnataka Election: जब सोनिया गांधी के पीछे-पीछे बेल्लारी पहुंचीं सुषमा स्वराज, लड़ाई हार गईं लेकिन युद्ध जीत लिया

By अभिनय आकाश | Apr 24, 2023

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और 10 मई को वोट डाले जाएंगे। ऐसे में तमाम दलों की तरफ से जोर आजमाइश का दौर भी जारी है। कर्नाटक में चुनाव हों और साल 1999 में हुई बेल्लारी जंग को याद न किया जाए ऐसा हो नहीं सकता। वो भी ऐसी जंग जो कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही पार्टियों की दिग्गज नेताओं के बीच हुई हो। 1999 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की सुषमा स्वराज और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के बीच हाई-वोल्टेज चुनाव प्रतियोगिता ने बेल्लारी निर्वाचन क्षेत्र को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया। हालांकि स्वराज चुनाव हार गईं, लेकिन उन्होंने बेल्लारी के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव बनाया और बीजेपी को कर्नाटक में अपना आधार बनाने में मदद की। वह हर साल वरमहालक्ष्मी उत्सव मनाने के लिए जिले का दौरा करती थीं। एक वादा जो उन्होंने 1999 में अपनी हार के बाद लोगों से किया था। लेकिन बेल्लारी में उनके करीबी सहयोगी जनार्दन रेड्डी और भाजपा नेता श्रीरामुलु के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों ने 2011 में उन्हें बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। 

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1999 की अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने की सरकार गिर चुकी थी और 13वें लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थी। कांग्रेस में सोनिया युग का प्रारंभ हो चुका था। कांग्रेस के भीतर विद्रोह फिर शरद पवार, पीए संगमा, तारिक अनवर ने विदेशी मूल का मुद्दा बनाकर पार्टी छोड़ नई पार्टी बना ली। ये पहली दफा था कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा इतनी प्रखरता से उठा। 1998 का दिल्ली विधानसभा का चुनाव हारकर सुषमा स्वराज राष्ट्रीय राजनीति में वापस लौटी थीं। जब यह खबर आई कि सुषमा कर्नाटक की बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ेंगी। सभी दंग रह गए क्योंकि यहीं से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव लड़ने जा रही थी। देशी बेटी बनाम विदेशी बहू के नाम से इस चुनाव को बुलाया जा रहा था। सुषमा ने भी सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा खूब उठाया। सुषमा स्वराज ने सोनिया गांधी के खिलाफ जमकर चुनाव प्रचार किया। यहां तक की कन्नड़ में भाषण तक देना सीख लिया था। सुषमा स्वराज ने स्थानीय मतदाताओं से सहज संवाद के लिए कन्नड़ सीखनी शुरू की और करीब एक महीने के भीतर ही वह कन्नड़ सीखने में कामयाब हुईं। उनके कन्नड़ में दिए गए भाषण की कई क्लिप आज भी इंटरनेट पर मिल जाएंगे। 

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सुषमा स्वराज को इस वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से शाबाशी भी खूब मिली। अटल ने कहा था कन्नड़ भाषा पर उनका अधिकार देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गया। मुझे डर है कर्नाटकवासी उन्हें अपने यहां ही न रख लें और दिल्ली जाने से मना करें। हांलाकि सुषमा 56 हजार वोटों से हार गई। मगर उनका कद बढ़ गया। वो अटल सरकार में मंत्री बन गईं। बीजेपी की पहली महला मंत्री। समय बीता 2004 के चुनाव में बीजेपी का इंडिया शाइनिंग का नारा फ्लाॅप साबित हुआ। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और लगा कि सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनना तय है। एक बार फिर सुषमा ने ही कमान संभालते हुए घोषणा की कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो वो अपने पद से त्यागपत्र दे देंगी। अपना सिर मुंडवा कर पूरा जीवन एक भिक्षुक की तरह बिताएंगी। किसी नेता ने इससे पहले शायद ही ऐसी घोषणा कि होगी। हांलाकि सुषमा स्वराज को ऐसा कुछ नहीं करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने सोनिया की जगह डाॅ. मनमोहन सिंह को आगे कर दिया। सितंबर 2013 में भी सुषमा ने सोनिया के पीएम बनने के सवाल पर 2004 की तरह ही बात की थी। एक कार्यक्रम में सुषमा ने कहा ''मैंने हमेशा कहा है कि सोनिया गांधी हमारे देश में इंदिरा गांधी की पुत्र वधु और राजीव गांधी की पत्नी के रूप में आई थीं और इस प्रकार वो हमारे प्यार और स्नेह की हकदार हैं। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वो हमारे सम्मान की भी हकदार हैं। लेकिन वो अगर प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं तो मैं नहीं कहूंगी। देश लंबे समय तक विदेशी शासन के अधीन रहा है और आजादी के लिए कई लोगों ने अपने प्राण गंवाए। अगर 60 साल की आजादी के बाद हम किसी विदेशी को शीर्ष पर बिठाते हैं तो इसका मतलब यह होगा कि 100 कोरड़ लोग असक्षम हैं। इससे लोगों की संवेदनशीलता प्रभावित होगी। यही कारण था कि मैंने 1999 में बेल्लारी से चुनाव लड़ा और ये मेरे लिए एक मिशन था। बेल्लारी में मैं लड़ाई जरूर हार गई लेकिन युद्ध जीत लिया था।  

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